खेल मंत्री किरेन रिजिजू जी! खेलेगा या झेलेगा इण्डिया?
लाखों शारीरिक शिक्षक-प्रशिक्षक दो वक्त की रोटी को मोहताज
योगी और मोदी जी क्या यही है सबका साथ, सबका विकास?
श्रीप्रकाश शुक्ला
नई दिल्ली। हमारे देश के होशियार खेल मंत्री किरेन रिजिजू 2028 ओलम्पिक खेलों को लेकर एक बड़ा लक्ष्य तय कर चुके हैं। लक्ष्य है मेडल टैली में शीर्ष 10 में स्थान बनाना। एक भारतीय होने के नाते मैं तो चाहता हूं कि हमारा मुल्क शीर्ष पर काबिज हो लेकिन सिर्फ फौरी घोषणाओं से कोई भी राष्ट्र खेलों की महाशक्ति नहीं बन सकता। जिस राष्ट्र को अपने अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों और शारीरिक शिक्षकों की पीड़ा का भान न हो वह भला अमेरिका, चीन, रूस, जर्मनी, इंग्लैण्ड जैसे देशों की खेल-शक्ति को कैसे चुनौती दे सकता है? आज देश की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश के खेल प्रशिक्षक तथा शारीरिक शिक्षक भुखमरी के दौर से गुजर रहे अपने परिवारों के साथ खून के आंसू रो रहे हैं लेकिन योगी सरकार रामराज्य आ जाने की खुशी में बंशी बजा रही है।
खेल मंत्री किरेन रिजिजू जी उत्तर प्रदेश की सल्तनत पर भारतीय जनता पार्टी की ही सरकार है जहां लगभग साढ़े चार सौ महिला-पुरुष अंशकालिक खेल प्रशिक्षक तो हजारों शारीरिक शिक्षक अपने हक की लड़ाई लड़ते-लड़ते चूर-चूर हो गये हैं। आपने खेलो इण्डिया के रूप में बेशक अच्छी शुरुआत की हो लेकिन बिना प्रशिक्षकों और शारीरिक शिक्षकों की मेहनत के खेलों में यशगान होना बिल्कुल असम्भव है। माना कि कोरोना संक्रमण के इस दौर में खेल गतिविधियां सामान्य तरीके से चला पाना मुश्किल है लेकिन मेरा मानना है कि खेल प्रशिक्षकों और शारीरिक शिक्षकों को प्रोत्साहित कर हर लक्ष्य सहजता से हासिल किया जा सकता है।
रिजिजू जी खेल और राजनीति में बड़ा फर्क होता है। यदि स्वस्थ भारत का सपना साकार करना है तो आपको हर राज्य की खेल गतिविधियों पर ध्यान देना होगा। अफसोस की बात है कि उत्तर प्रदेश के अंशकालिक खेल प्रशिक्षक राजधानी लखनऊ में बार-बार अपना दुखड़ा रो रहे हैं लेकिन कुम्भकर्णी नींद सोई योगी आदित्यनाथ सरकार जगने का नाम ही नहीं ले रही है। निजी स्कूल-कालेज के शारीरिक शिक्षक तो अपना दुखड़ा भी नहीं रो सकते। योगी जी ओलम्पिक में पदक जीतने वालों को मालामाल करने का भरोसा दे रहे हैं लेकिन जिन्हें ओलम्पिक चैम्पियन तैयार करना है वह बेचारे अण्डे के ठेले लगाने और बूट पालिश करने को मजबूर हैं।
सोशल मीडिया पर गौर करें तो केन्द्रीय खेल मंत्रालय को खुश करने के लिए इन दिनों आनलाइन खेल गतिविधियों को प्रश्रय देने वालों की बाढ़ सी आ गई है। खेलो इण्डिया अभियान को 50 करोड़ से अधिक लोगों का समर्थन मिल चुका है। खेल प्रशिक्षकों और शारीरिक शिक्षकों की इस नौटंकी पर मुझे असीम वेदना है। खेलो इण्डिया से नौनिहालों को जोड़ा जाना यकीनन बहुत जरूरी है लेकिन यह काम प्रशिक्षकों और शारीरिक शिक्षकों के बिना कतई सम्भव नहीं है। सच कहें तो जिन-जिन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकारें हैं उनमें अपवादस्वरूप हरियाणा को छोड़ दें तो कहीं की भी स्थिति ताली पीटने लायक नहीं है।
खेल मंत्री जी, देखा जाए तो खेलो इण्डिया अभियान से पहले भी हमारे देश में बहुत से खेल अभियान चलाए जा चुके हैं जिनमें पायका के जायका से हर कोई रूबरू है। पायका हो या खेलो इण्डिया अभियान इनको लेकर जनता के अरबों रुपये तो खर्च हो गए लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ भी अच्छा नहीं हुआ। जब तक बुनियादी बातों पर ध्यान नहीं दिया जाएगा तब तक खेलों का विकास कतई सम्भव नहीं है। रिजिजू जी खेलो इण्डिया के झूठे आंकड़ों से आप खुश हो सकते हैं लेकिन आवंटित खेल बजट और प्रतिभाओं के आंकड़ों पर गौर करें तो हम प्रति बच्चे पर सालाना 50 रुपये ही खर्च कर रहे हैं। महोदय साढ़े चार रुपया प्रतिमाह और 13 पैसे प्रतिदिन के खर्च पर भारत को शक्तिमान बनाने का काम सिर्फ और सिर्फ राजनीतिज्ञ या फिर चाटुकार खेलनहार ही कर सकते हैं।
हमारा खेलप्रेमी राष्ट्र खेल विकास के पिछले पन्नों पर नजर डाले तो आजादी के करीब 37 साल बाद देश में पहली खेल नीति बनी थी तो आजादी के करीब 53 साल बाद मुल्क में अलग से खेल मंत्रालय बना। हमारा सवाल मुल्क के 56 खेल संगठन पदाधिकारियों से भी है, जिन्हें क्रिकेट के मुकाबले बाकी खेलों की बदहाली को समझना होगा। खेल संघों से जुड़े खेलनहारों और प्रदेश के खेल मंत्रियों को इस बात की गांठ बांध लेनी चाहिए कि बिना खेल प्रशिक्षकों और शारीरिक शिक्षकों की मदद के हम कोई लक्ष्य हासिल नहीं कर सकते।
किसी को उत्तर प्रदेश के अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों और शारीरिक शिक्षकों की पीड़ा का भान हो या नहीं पिछले कुछ दिनों से मैं वाकई परेशान हूं। सच्चाई यह है कि अप्रैल महीने से उत्तर प्रदेश के साढ़े चार सौ अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों को जहां फूटी कौड़ी नसीब नहीं हुई वहीं देशभर के लाखों निजी स्कूलों में कार्यरत रहे शारीरिक शिक्षकों को भी इस दरमियान कुछ भी हाथ नहीं लगा है। पिछले महीने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में खेल निदेशालय के सामने अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों ने जूता पॉलिश कर जहां अपनी व्यथा बताई वहीं शारीरिक शिक्षकों की तरफ न ही सरकार का ध्यान गया न ही धन्नासेठों ने गौर फरमाना जरूरी समझा। जो भी हो खेल संचालनालय और शिक्षा विभाग की हठधर्मिता देखकर हम तो यही कहेंगे कि हमारा देश खेलेगा नहीं बल्कि अब गुरबत का दौर झेलेगा। योगी और मोदी जी क्या यही है आपका- सबका साथ, सबका विकास का फार्मूला?