उम्मीदों का बोझ ढोती खिलाड़ी बेटियां
दिव्या काकरान ने बढ़ाया प्रेमनाथ अखाड़े का मान
श्रीप्रकाश शुक्ला
नई दिल्ली। बेटियों को बोझ मानने वालों को हम बता दें कि बेटियां ताउम्र अपने घर-परिवार के साथ ही समाज की उम्मीदों का भी बोझ उठाती हैं। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की रहने वाली (फिलहाल दिल्ली निवासी) दिव्या काकरान इस बात का जीता जागता उदाहरण है। पहलवान दिव्या ने अपने करिश्माई प्रदर्शन से न सिर्फ अपने बाबा और माता-पिता के सपने को साकार किया बल्कि दिल्ली के गुरु प्रेमनाथ अखाड़े के संस्थापक का भी देश-दुनिया में नाम अमर कर दिया।
दिल्ली में गुरु प्रेमनाथ अखाड़ा है। इस अखाड़े में गरीब बच्चों के सपनों को पंख लगाए जाते हैं। फिलवक्त इस अखाड़े का संचालन विक्रम कुमार सोनकर कर रहे हैं। गुरु विक्रम सोनकर को कुश्ती का अच्छा प्रशिक्षक माना जाता है। वह भारत के प्रमुख पहलवान प्रेमनाथ (अर्जुन अवार्डी, ओलम्पियन) के पुत्र हैं। अपने पिता के निधन के बाद विक्रम सोनकर अखाड़े को सुचारु रूप से चला रहे हैं। विक्रम कुमार के पिता प्रेमनाथ का सपना था कि उनके अखाड़े से कोई खिलाड़ी निकले जोकि ओलम्पिक में मेडल जीत कर लाए। पिताजी के सपने को पूरा करने के लिए विक्रम कुमार ने भारतीय खेल प्राधिकरण के प्रशिक्षक की नौकरी छोड़, देश के लिए ओलम्पिक मेडलिस्ट तैयार करने का रास्ता चुना और उस रास्ते पर अब उनको पहली कामयाबी मिल चुकी है। दिव्या काकरान को अर्जुन अवार्ड मिलना, गुरु प्रेमनाथ अखाड़े की सबसे बड़ी सफलता है।
किसी पुत्र के लिए पिता के सपने को पूरा करने से बड़ी कोई दूसरी उपलब्धि नहीं हो सकती। गुरु प्रेमनाथ चाहते थे कि उनके अखाड़े से कोई पहलवान ओलम्पिक में मेडल जीतकर आए। अपने पिताजी के सपने को पूरा करने के लिए ही विक्रम दिन-रात एक कर रहे हैं। विक्रम को भरोसा है कि प्रेमनाथ अखाड़े से निकली दिव्या ओलम्पिक में मेडल जीत सकती है। विक्रम कहते हैं कि पहली बार हमारे अखाड़े से किसी पहलवान को अर्जुन अवार्ड मिला है और वह है बिटिया दिव्या। विक्रम कहते हैं मैं इस खुशी को बयां नहीं कर सकता। मेरे अखाड़े की यह बहुत बड़ी अचीवमेंट है।
विक्रम प्रेमनाथ अखाड़े को न केवल सुचारु रूप से चला रहे हैं बल्कि इस अखाड़े के बच्चे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेल मंचों पर पदक भी जीत रहे हैं। इस अखाड़े की दिव्या काकरान ने खुद को कई बार साबित किया है। दिव्या को यहां तक पहुंचाने में उसकी मेहनत के अलावा पिता सूरज पहलवान की कोशिशें, कोच विक्रम की मेहनत और बड़े भाई देव की कुर्बानी अहम है। दिव्या के अलावा इंदु चौधरी, सिमरन और उन्नति राठौर भी इस अखाड़े का नाम रोशन कर चुकी हैं। इस अखाड़े से जुड़े कई और पहलवान भी बड़ी सफलता की ओर आगे बढ़ रहे हैं।
दिव्या बताती हैं- मैं नौ साल से प्रेमनाथ अखाड़े में प्रैक्टिस कर रही हूँ। विक्रम सर ने हमेशा मेरा साथ दिया और प्रोत्साहित किया। मैं उन्हीं के सिखाए रास्ते पर चलकर मुल्क का नाम रोशन करने में सफल हुई। दिव्या कहती हैं कि अर्जुन अवार्ड मिलने के बाद भी मेरे पैर जमीन पर हैं। वह काफी गरीब परिवार से सम्बन्ध रखती हैं। पिता और दादा भी पहलवानी का शौक रखते थे, लेकिन गरीबी के कारण कभी आगे नहीं बढ़ सके। परिजनों ने अपने सपने मेरी आंखों में देखे और मैंने उन्हें पूरा किया। पहलवानी के लिए खर्च भी नहीं निकल पाता था ऐसे में लड़कों के साथ दंगल में कुश्ती करके उन्हें धूल चटाती थी और उससे मेरा खर्च निकलता था।
अब तक तीन दर्जन से अधिक मेडल जीत चुकी दिव्या बताती हैं कि गुरु प्रेमनाथ अखाड़े में 150 बच्चे प्रैक्टिस करते हैं जिसमें 80 लड़कियां और 70 लड़के शामिल हैं। विक्रम सर बच्चों से कोई फीस नहीं लेते। सभी पहलवान बस अपने खाने-पीने का खर्च खुद उठाते हैं। कुछ पहलवान अखाड़े में ही रहते हैं। विक्रम बताते हैं कि हमने कभी कोई फीस नहीं ली। प्रेमनाथ अखाड़े में सबकुछ फ्री है, बस बच्चे अपने खाने-पीने का खर्चा खुद उठाते हैं।