अब नहीं सुनाई देगा रैना है ना का शोर
श्रीप्रकाश शुक्ला
जब सारा देश आजादी का जश्न मनाने में मशगूल था, उसी दरम्यान भारतीय क्रिकेट के जय-वीरू ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहकर करोड़ों खेलप्रेमियों का दिल तोड़ दिया। महेन्द्र सिंह धोनी ने सही समय पर क्रिकेट छोड़ी लेकिन भारत के मध्यक्रम के बाएं हाथ के बल्लेबाज 33 वर्षीय सुरेश रैना के संन्यास ने सबको चौंका दिया है। शायद भारतीय क्रिकेट के इतिहास में यह एक दुर्लभ उदाहरण होगा जब आपसी समझ और व्यवहार के कारण मैदान पर दिखने वाले दो आत्मीय मित्रों ने राम-लक्ष्मण सदृश साथ-साथ वनगमन की भांति एक साथ ही क्रिकेट को अलविदा कहा। सुरेश रैना भारतीय क्रिकेटप्रेमियों में विश्वास का पर्याय रहे यही वजह रही जब भी टीम इंडिया संकट में होती लोग रैना है ना की बात कहने लगते। खैर, रैना के क्रिकेट छोड़ने के निर्णय से उसके चाहने वालों में मायूसी जरूर है।
भारतीय क्रिकेट में धोनी के करिश्माई प्रदर्शन के आगे रैना का न तो कोई रिकार्ड टिकता है और न ही कद लेकिन टीम इंडिया के मजबूत प्रदर्शन में मध्यक्रम के बल्लेबाज सुरेश रैना की बिंदास बल्लेबाजी को नकारा नहीं जा सकता। अपनी ताबड़तोड़ बल्लेबाजी और विशिष्ट खेल तकनीक के कारण सुरेश रैना अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपनी एक अलग पहचान रखते थे। अपने शुरुआती क्रिकेट जीवन में वामहस्त सुरेश रैना का सर्वाधिक प्रतिभावान खिलाड़ियों में शुमार रहा है। रैना ने अपने क्रिकेट करियर में पहला वन-डे जहां वर्ष 2005 में राहुल द्रविड़ की कप्तानी में खेला वहीं 2006 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ उन्होंने टी-20 में आगाज किया। वनडे और टी-20 में रैना के बल्ले ने खूब आग उगली लेकिन टेस्ट क्रिकेट में उनका बल्ला अशांत रहा। सुरेश रैना ने 2010 में श्रीलंका के खिलाफ टेस्ट कैप पहनी थी लेकिन वह क्रिकेट की इस विधा में अपनी प्रतिभा से सही न्याय नहीं कर सके और उन्हें सिर्फ 18 टेस्ट खेलने का ही अवसर मिल सका। हालांकि क्रिकेट के तीनों प्रारूपों में सुरेश रैना पहले ऐसे भारतीय बल्लेबाज हैं जिन्होंने सैकड़े लगाए, बाद में इस सूची में रोहित शर्मा का नाम जुड़ा।
देखा जाए तो 2010 के बाद सुरेश रैना ने लगातार शानदार प्रदर्शन किया, खूब रन बनाए और टीम इंडिया को कई बार संकट से उबारते हुए शानदार जीत दिलाईं। रैना में मैच के अंत तक धैर्य से खेलने और जरूरत पड़ने पर ताबड़तोड़ खेलने की विलक्षण क्षमता थी, इसी कारण उनके प्रशंसकों ने इन्हें राहुल द्रविड़ की भांति मिस्टर भरोसेमंद की उपाधि भी दे दी थी। रैना ने आईपीएल में चेन्नई सुपरकिंग्स की टीम में भी कई मौकों पर धोनी के साथ लगभग हारे हुए मैच जीतकर क्रिकेट प्रशंसकों को मंत्रमुग्ध किया। सुरेश रैना का क्रिकेट करियर और उनके आंकड़े बेशक बहुत प्रभावी न हों लेकिन हमें इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि एक मध्यक्रम के बल्लेबाज को प्रायः लम्बी पारी तब ही मिलती है जब शीर्ष क्रम लगभग ध्वस्त हो जाए। सुरेश रैना अंतिम ओवरों में विध्वंसक बल्लेबाजी के लिए जाने जाते रहे। इस लिहाज से टेस्ट में उनका 26.5 का औसत व स्ट्राइक रेट 53.1, एकदिवसीय में 35.3 औसत व स्ट्राइक रेट 93.5 और टी-20 में 29.2 के औसत के साथ 124.7 रन का औसत सुरेश रैना की प्रतिभा और खेल क्षमता को ही दर्शाता है।
उत्तर प्रदेश के इस वामहस्त बल्लेबाज ने आईपीएल समेत क्रिकेट के सभी प्रारूपों में लगभग 14 हजार रन बनाए। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह चुके सुरेश रैना अभी आईपीएल में खेलते रहेंगे ऐसे में उनकी बल्लेबाजी का अंतिम आंकड़ा क्या होगा, इसे कहना मुश्किल है। जो भी हो सुरेश रैना के पास लगभग दो-तीन साल की क्रिकेट अभी बाकी है लिहाजा क्रिकेट प्रेमी आईपीएल में उनके बेजोड़ खेल का अभी भी दीदार कर पाएंगे। एक ईमानदार खिलाड़ी अपनी क्षमता का हर वक्त आकलन करता रहता है, ऐसे में निश्चित रूप से सुरेश रैना ने अपने संन्यास के पीछे धोनी के प्रति अपने प्रेम और सम्मान के अतिरिक्त अपने प्रदर्शन में पिछले दो-तीन वर्षों में आई गिरावट को भी आधार बनाया होगा।
रैना ने महज 33 साल की उम्र में संन्यास का फैसला लिया है। उनके इस फैसले को जहां कुछ लोग जल्दबाजी में लिया निर्णय करार दे रहे हैं वहीं रैना के साथ अंडर-19 के दिनों से खेले रुद्र प्रताप सिंह इस फैसले से ज्यादा हैरान नहीं हैं। आर.पी. सिंह कहते हैं कि उन्होंने जूनियर दिनों से रैना के साथ काफी क्रिकेट खेली है। मुझे लगता है यह फैसला हर शख्स व्यक्तिगत तौर पर अपनी फिटनेस देखकर लेता है, उसे पता होता है कि वह टीम इंडिया में वापसी कर सकता है या नहीं। मुझे लगता है रैना के संन्यास के फैसले में इस बात की भी भूमिका रही होगी।
रैना की जहां तक बात है उन्होंने अपना आखिरी इंटरनेशनल मैच 2018 में खेला था। वह इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के सबसे सफल बल्लेबाजों में से एक हैं। 193 आईपीएल मैचों में रैना ने 5368 रन बनाए हैं। आर.पी. सिंह कहते हैं कि 'कौन जानता है कि अगर वह आईपीएल में 1000 रन बनाएं और फिर से इंटरनेशनल क्रिकेट में वापसी के बारे में सोच लें, लेकिन जब आप संन्यास का फैसला लेते हो, तो काफी सोच-समझकर लेते हो। रैना ने जरूर इस बारे में गहराई से सोचा होगा। हो सकता है रैना देश से बाहर की टी-20 लीग में खेलते दिखें, जैसे युवराज सिंह ने किया, इसमें कुछ गलत नहीं है। मुझे बस उनके अचानक फैसले से हैरानी हुई, कुछ समय पहले वह मुझसे टेस्ट क्रिकेट में वापसी की बात कर रहे थे। भले ही भारतीय क्रिकेटप्रेमी धोनी के विशाल कद के पीछे रैना की उपलब्धियों को कमतर मानते हों लेकिन इस छोटे उस्ताद को ऐसे खिलाड़ी के रूप में जरूर याद रखेंगे जिसने एकदिवसीय और टी-20 दोनों विश्व कप में शतक जमाया हो। क्रिकेटप्रेमी सुरेश रैना के पिछले पैर को जमीन पर टिकाकर अपने बल्ले से मैदान के पार भेजे जाने वाले छक्कों को भी खूब याद करेंगे। हर खिलाड़ी को एक न एक दिन अपने खेल करियर को विराम देना ही होता है, पर हर भारतीय क्रिकेट के जय-वीरू को हमेशा याद करेगा।
अब जम्मू-कश्मीर के युवाओं की मदद करेंगे रैना
अपने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास के बाद सुरेश रैना ने अपनी दूसरी पारी का खुलासा करते हुए कहा कि अब वह जम्मू-कश्मीर के युवा क्रिकेटरों की मदद करेंगे। पाठकों को बता दें सुरेश रैना के पूर्वज जम्मू-कश्मीर के ही हैं, इसलिए वह उनकी मातृभूमि है। बकौल सुरेश रैना मैं वहां के रूरल इलाकों में युवाओं के लिए स्कूल और कॉलेज खोलने का मन बना रहा हूं, जहां बच्चों की मास्टर क्लास के साथ मेंटल टफनेस कोर्स, फिटनेस ट्रेनिंग और स्किल ट्रेनिंग होगी वहां बारीकी से युवा क्रिकेटरों को ऐसी चीजें सिखाई जाएंगी। सुरेश रैना ने अपने इंस्ट्राग्राफ में आगे लिखा, चूंकि मेरे पूर्वज कश्मीर से ताल्लुक रखते हैं और मैं खुद को घाटी में अपनी जड़ों से जुड़ा हुआ महसूस करता हूँ, मूलरूप से कश्मीरी पंडित के रूप में, मैंने जम्मू-कश्मीर में अपने बच्चों और युवाओं के लिए मजबूत खेल कौशल, क्रिकेट को विकसित करने की आवश्यकता महसूस की है। यह एक विनम्र शुरुआत है और मैं युवाओं के लिए क्रिकेट को एक मजबूत जुनून बनाने और सही मार्गदर्शन और प्रेरणा के साथ खेल में सफलता पाने के लिए इसे आगे ले जाने की योजना बना रहा हूं। चूंकि मैंने अपनी पूरी यात्रा में संघर्ष और कठिनाइयों को देखा है, इसलिए मैं उन कठिनाइयों से संबंधित हो सकता हूँ, जो वे लगातार आतंकवाद और आतंकी हिंसा के बीच झेल रहे हैं। उत्तर प्रदेश मेरी कर्मभूमि है, मुझे यह भी लगता है कि जम्मू और कश्मीर भी मेरी भूमि है और यह लोग मेरे अपने भाई-बहन हैं। मुझे आशा है कि मैं जम्मू और कश्मीर से शुरू होने वाले एक राष्ट्रव्यापी अभियान में अपना योगदान दे पाऊंगा।