गुरबत से निकला बाहुबली एथलीट नीरज चोपड़ा
नीरज के पिता सतीश मध्य प्रदेश में करते हैं खेती
खेलपथ प्रतिनिधि
नई दिल्ली। भारतीय जेवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा ने टोक्यो ओलम्पिक 2020 के लिए क्वालीफाई कर लिया है। कोहनी की चोट से उबरकर वापसी कर रहे नीरज ने शानदार प्रदर्शन किया। ओलम्पिक 2020 के क्वालीफाई करने वाले नीरज चोपड़ा एक बार इतना फूट-फूट कर रोये थे कि चुप कराना मुश्किल हो गया था। भारत के इस बाहुबली एथलीट से हम टोक्यो ओलम्पिक में मेडल की उम्मीद कर सकते हैं।
कोहनी की चोट से उबरने के बाद वापसी करते हुए नीरज ने दक्षिण अफ्रीका में एथलेटिक्स सेंट्रल नॉर्थ ईस्ट मीटिंग में 87.86 मीटर थ्रो के साथ यह उपलब्धि हासिल की। नीरज के कोच रहे नसीम अहमद ने खुशी जताते हुए कहा कि यह देश के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। ओलम्पिक में मिल्खा सिंह और पीटी ऊषा एथलेटिक्स में चौथे स्थान पर रहे, पर मेडल से वंचित रहे थे। एक बार फिर से भारतीय खिलाड़ी ओलम्पिक में मेडल की दौड़ में है। मुझे पूरी उम्मीद है कि नीरज जेवलिन थ्रो में देश को मेडल जिताने में जरूर कामयाब रहेगा।
22 साल के नीरज चोपड़ा 2019 में कोहनी में चोट के कारण पूरे सत्र से बाहर रहे थे। चोट से उबरने के दौरान नीरज आईएएएफ वर्ल्ड चैम्पियनशिप, डायमंड लीग और एशियन चैम्पियनशिप से चूक गए थे। उनकी अंतिम प्रमुख अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता 2018 जकार्ता एशियाई खेल थी। वहां उन्होंने 88.06 मीटर के राष्ट्रीय रिकॉर्ड के साथ स्वर्ण पदक जीता था। चोट के लगभग डेढ़ साल बाद उन्होंने अपने चौथे प्रयास में 85 मीटर का ओलम्पिक क्वालिफिकेशन मार्क हासिल किया और इस अंतरराष्ट्रीय मुकाबले में टॉप पर रहे।
टोक्यो ओलम्पिक 2020 में पहुंचने के फौरन बाद नीरज ने ट्वीट करते हुए लिखा कि प्रतिस्पर्धा में लौटकर अच्छा लग रहा है। सभी की शुभकामनाओं और सहयोग के लिए धन्यवाद। मैं परिणाम के साथ खुश हूं क्योंकि मैं सत्र के लिए वॉर्मअप होने के लिए प्रतियोगिता में गया था। जब मैंने पहले तीन थ्रो (सभी 80 मीटर से ऊपर) के साथ अच्छा किया, तो चौथे प्रयास में थोड़ा और जोर लगाने का फैसला किया और कामयाब रहा।
24 दिसंबर 1997 को जन्मे नीरज चोपड़ा मूलरूप से हरियाणा में पानीपत जिले के गांव खंदरा के रहने वाले हैं और उन्होंने चंडीगढ़ के सेक्टर-10 स्थित डीएवी कॉलेज से बीए प्रथम वर्ष की पढ़ाई की है। नीरज ने 2011 से 2015 तक पंचकूला स्थित ताऊ देवीलाल स्टेडियम में एथलेटिक्स खेल नर्सरी में ट्रेनिंग की थी। इसके बाद वह सेना में चले गए।
16 लोगों का संयुक्त परिवार
चंडीगढ़ के डीएवी कॉलेज में बीए सेकेंड ईयर के छात्र नीरज आजकल वहीं ट्रेनिंग ले रहे हैं। नीरज के पिता चार भाई हैं और 16 लोगों का संयुक्त परिवार है। नीरज का परिवार पूरी तरह से खेती पर ही निर्भर है। चार भाइयों और पांच बहनों में सबसे बड़े नीरज ने संयुक्त परिवार की जिम्मेदारियों के बीच यह मुकाम हासिल किया है। पूरे परिवार के पास आठ एकड़ भूमि है। पिता सतीश मध्य प्रदेश में खेती करते हैं।
दोस्त ने बदल दी जिंदगी
नीरज की कामयाबी के पीछे सबसे बड़ा हाथ उनके दोस्त जयवीर का है। 12 साल की उम्र में जब नीरज पानीपत जाने लगे तो वहां सीनियर खिलाड़ी जयवीर से मुलाकात की, जिन्होंने नीरज की छह फीट से ज्यादा की हाइट देखकर जेवलिन खेलने के लिए कहा। शुरुआत में कई बार मन जेवलिन के लिए नहीं हुआ, लेकिन जयवीर ने उसका हमेशा साथ दिया। उसकी कोशिशों के कारण ही आज नीरज स्टार खिलाड़ी बन पाये हैं।
जापान में नीरज के लिए गूंजा था बाहुबली का नारा
भारत के स्टार भाला फेंक खिलाड़ी नीरज चोपड़ा जापान में महाबली के नाम से मशहूर हो गए हैं। जापान के खिलाड़ी ट्विटर पर नीरज चोपड़ा को बाहुबली बुला रहे हैं। उनका कहना है कि अब नीरज जापान के टोक्यो ओलम्पिक में भाला हवा में लहराएगा। विदेशी खिलाड़ी नीरज चोपड़ा को भारत का सबसे बड़ा सुपरस्टार कहकर बुला रहे हैं। इस बारे में चाचा भीम चोपड़ा का कहना है कि नीरज का अगला उद्देश्य टोक्यो ओलम्पिक में पदक लाना है।
अच्छी जेवलिन खरीदने तक के पैसे नहीं थे नीरज के पास
जेवलिन थ्रोअर बनने के दौरान नीरज के समय एक दौर यह भी आया कि उनके पास जेवलिन (भाला) खरीदने तक के पैसे नहीं थे। अच्छी जेवलिन की कीमत डेढ़ लाख रुपये थी पर नीरज ने हौसला नहीं खोया। पिता सतीश कुमार व चाचा भीम सिंह चोपड़ा से सात हजार रुपये लेकर सस्ता जेवलिन खरीदा और हर दिन आठ घंटे अभ्यास किया।
इसी अभ्यास के बूते नीरज ने अंडर-16, 18 और 20 की मीट जीती व नेशनल रिकॉर्ड बना डाला। इसके बाद इंडिया कैंप में नीरज का चयन हुआ। शुरुआती दौर में नीरज ने जेवलिन थ्रो सीखने के लिए कहीं से ट्रेनिंग नहीं ली, बल्कि यू ट्यूब पर वीडियो देखकर इस खेल में खुद को बेहतर बनाया।
जब फूट फूटकर रोए थे नीरज
नीरज चोपड़ा ने नौ साल पहले पानीपत के शिवाजी स्टेडियम से जेवलिन थ्रो करनी शुरू की थी। दोस्त जयवीर से प्रेरित होकर नीरज ने भाला फेंकना शुरू किया था। चाचा भीम बताते हैं कि उसने नीरज को सात हजार रुपये का जेवलिन खरीदकर दिया था। एक दिन नीरज ने जेवलिन थ्रो किया और भाला पत्थर पर जा लगा। आगे से भाले की नोंक टूट गई। जब वो शाम को नीरज को घर के लिए लेने के लिए स्टेडियम में गए तो नीरज एकांत में बैठकर रो रहा था। उसने नीरज से बहुत पूछा लेकिन उसने रोने का कारण नहीं बताया। फिर उसके दोस्त ने बताया कि भाले की नोंक टूट गई है इसलिए वो रो रहा है। इस पर वो हंसने लगे थे। फिर उन्होंने नीरज से पूछा कि नया भाला कितने का आएगा। नीरज ने जब भाले की कीमत 50 हजार रुपये बताई तो वो भी चिंतित हो गए थे। लेकिन उन्होंने इस बारे में अपने परिवार में बात की और नीरज के लिए वह 50 हजार रुपये का भाला खरीदकर दिया।