आग में जलीं भ्रष्टाचार की करतूतें

मामला जिला खेल परिसर कम्पू में लगी आग का

जांच के नाम पर हो गई लीपापोती

श्रीप्रकाश शुक्ला

ग्वालियर। सर कहां हो आपके भ्रष्टाचार की काली करतूतें आग के हवाले हो चुकी हैं। रविवार को ग्वालियर के राजमाता विजया राजे सिंधिया जिला खेल परिसर कम्पू के स्टोर में लगी आग के साक्ष्य, कर्मचारियों के अलग-अलग कथन कुछ यही कहानी कह रहे हैं। रविवार को लाखों की खेल सामग्री आग के हवाले होने के बाद जांच के नाम पर दो घण्टे की औपचारिकता संदेह को ही बल दे रही है। इस मामले के दोनों जांच अधिकारियों में से एक निष्पक्ष जांच को अंजाम देने की बजाय ग्वालियर डीएसओ रामाराव नागले को एन-केन-प्रकारेण बचाने का काम कर रहा है। बेहतर होगा संचालक खेल डा. थाउसेन जांच किसी और से कराएं।       

गौरतलब है कि रविवार 8 सितम्बर को चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्थाओं वाले ग्वालियर के राजमाता विजया राजे सिंधिया जिला खेल परिसर कम्पू का स्टोर आग की जद में आ गया। आग से लाखों रुपये की खेल सामग्री खाक हो गई है। आग लगने की वजह शॉर्ट सर्किट बताई जा रही है, जबकि रविवार का दिन होने और कर्मचारियों के कथनों से लगता है कि आग लगी नहीं बल्कि लगाई गई है। पाठकों को हम बता दें कि ग्वालियर का जिला खेल कार्यालय पिछले कुछ समय से अनियमितताओं को लेकर चर्चा में है। यहां हुई अनियमितताओं की अनुगूंज विधान सभा में भी सुनाई दे चुकी है। अनियमितताओं की जांच के लिए एक समिति भी बनाई गई है लेकिन वह नौ दिन चले अढ़ाई कोस वाली उक्ति को ही चरितार्थ कर रही है। जो भी हो रविवार को स्टोर में लगी आग के मामले में संचालनालय खेल भोपाल द्वारा दो सदस्यीय जांच समिति (जिला खेल अधिकारीद्वय मुन्नू कुमार धौलपुरी और अरुण सिंह) बनाने के बाद कम्पू पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करा दी गई थी।

रविवार की शाम करीब साढ़े चार बजे कम्पू स्थित खेल विभाग के कार्यालय में बाबू हितेन्द्र पाल ने स्टोर से धुआं निकलते देखा तो इसकी सूचना डीएसओ रामाराव नागले को दी। कर्मचारियों का कहना है कि स्टोर का ताला खोले जाने पर कमरे की सीलिंग में आग लगी होने के साथ खेल सामग्री भी आग की जद में आ चुकी थी। आग लगने की सूचना फायर ब्रिगेड को भी की गई तथा विभाग के कर्मचारियों ने अपने स्तर से भी आग पर काबू पाने की कोशिश की। आखिरकार फायर कर्मचारियों ने आग को तो शांत कर दिया लेकिन लाखों रुपए का खेल सामान नहीं बचाया जा सका। विभागीय सूत्र बताते हैं कि स्टोर में लगी आग से करीब 25 से 30 लाख रुपये की खेल सामग्री जलकर नष्ट हो चुकी है। क्षति का सही आकलन बिल, वाउचर और स्टोर रजिस्टर से मिलान के बाद ही चल सकेगा।

...और दो घण्टे में ही हो गई जांच

संचालक खेल ने इस अग्निकांड की तह तक पहुंचने के लिए सोमवार, नौ सितम्बर को शिवपुरी डीएसओ मुन्नू कुमार धौलपुरी और श्योपुर डीएसओ अरुण सिंह को जांच की जवाबदेही सौंपी। यह दोनों जांच अधिकारी शाम छह बजे जिला खेल परिसर पहुंचे तथा दो घण्टे की औपचारिकता निर्वहन कर वापस लौट गए। प्रथम दृष्टया मामला संगीन होने के चलते दोनों जांच अधिकारियों को वहां रुक कर स्टोर में रखे सामान का बिल, वाउचर और स्टॉक रजिस्टर से मिलान करना था ताकि पता चलता कि स्टोर में कितना सामान था और उसमें से कितना जल गया और कितना सुरक्षित बचा है। इस मामले को जिस तरह से हल्के में लिया गया, उससे संदेह को ही बल मिल रहा है। खेल एसोसिएशनों के पदाधिकारियों का कहना है कि पिछले तीन साल से विभाग से खिलाड़ियों को खेल सामग्री मिली ही नहीं।

दो दिन बाद पहुंची पुलिस टीम

आग लगने के ठीक दो दिन बाद कम्पू पुलिस के अधिकारी खेल विभाग के कार्यालय पहुंचे और जांच की प्रक्रिया प्रारम्भ की जबकि थाने और विभाग के बीच मात्र एक दीवार है। दो दिन बाद जांच को पहुंचे पुलिस वालों को कितने सही सबूत मिले होंगे, यह सोचनीय बात है। विभागीय अधिकारी ने खुद कबूला है कि जिस स्टोर में खेल सामग्री रखी गई थी, वहां आग पर काबू करने के लिए कोई सीज फायर नहीं था,जिससे की तत्काल आग पर काबू पाया जा सकता। इसके अलावा विभाग के स्टोर में रखे खेल सामान का बीमा भी नहीं था। बीमा नहीं होने के सवाल पर डीएसओ रामाराव नागले का कहना है कि इस तरह की विभाग में कोई योजना नहीं है। अब सवाल यह उठता है कि इस अग्निकांड में कहीं विभाग की इन्हीं कमजोरियों का फायदा तो नहीं उठाया गया।

परिसर में ही रहते हैं रामाराव नागले और हितेन्द्र पाल

देखा जाए तो जिला खेल परिसर कम्पू में ही डीएसओ रामाराव नागले और कम्प्यूटर आपरेटर हितेन्द्र पाल रहते हैं। रविवार को लगी आग की जानकारी सबसे पहले तो गेट पर तैनात सुरक्षा कर्मियों को होनी चाहिए थी लेकिन इसका पता हितेन्द्र को सबसे पहले हुआ। रविवार का दिन होने से चूंकि स्टोर बंद था, सो तय है वहां एक बल्ब भी नहीं जल रहा होगा ऐसे में शॉर्ट सर्किट की वजह समझ से परे है। भोपाल के एक अधिकारी का कहना है कि मामला संगीन है, यदि सही तरीके से जांच हो तो रामाराव नागले को 10 साल की सजा हो सकती है।

 

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