आओ खेलों से खिलवाड़ पर ताली पीटें

मध्य प्रदेशः कागजों में ही खेल गया खेलों का सामान

श्रीप्रकाश शुक्ला

ग्वालियर। इन दिनों मध्य प्रदेश खेल एवं युवा कल्याण विभाग राष्ट्रीय चर्चा का विषय है। यह चर्चा प्रदेश के खिलाड़ियों के उत्कृष्ट प्रदर्शन को लेकर नहीं बल्कि जिलों से लेकर राजधानी भोपाल तक खेलों की सामग्री में हुए भ्रष्टाचार तथा फर्जी दस्तावेजों से नौकरी हासिल करने वालों को लेकर है। इस चर्चा के सूत्रधार विभाग के ही कुछ आलाधिकारी हैं। धुंआ उठा है तो आग लगने की बात से इंकार नहीं किया जा सकता। कनबतियों पर यकीन करें तो यहां घोड़ों की कीमत पर खच्चर खरीदे गए तो कई जिलों में ग्रीष्मकालीन शिविरों के लिए प्रतिभाओं को दी जाने वाली खेल सामग्री कागजों में ही खेल गई। खेलों में हुए या हो रहे गड़बड़झाले पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने वालों में सांसद, विधायक तक शामिल हैं।   

कहते हैं कि गुनाह लाख छिपाया जाये पर वह एक न एक दिन उजागर जरूर होता है। खेलों के लिहाज से देखें तो मध्य प्रदेश आज आर्थिक तंगहाल राज्य नहीं है। किसी भी राज्य के लिए सवा दो अरब रुपये का खेल बजट कम नहीं होता। देखा जाए तो प्रदेश में खेलों के कायाकल्प की दिशा में सोचने की पहल 2006 में हुई थी। 2006 के बाद ग्वालियर, भोपाल, जबलपुर में खेलों की एकेडमियां खोली गईं। पुश्तैनी खेल हाकी को धरातल देने के लिए फ्लड लाइटयुक्त कृत्रिम मैदान तैयार हुए। इसी तरह अन्य खेलों के समुन्नत विकास के लिए जमकर सहखर्ची हुई। जब अनाप-शनाप सहखर्ची हो रही थी, उस समय भी आवाज उठी थी लेकिन विभाग ने तब राजधानी के कुछ बड़े समाचार पत्रों के खबरनवीशों को दाना-पानी डालकर मामले पर पर्दा डाल दिया था।

कुछ हिम्मती खबरनवीश समय-समय पर खेल विभाग के गड़बड़झाले को आम पाठकों के सामने लाते भी रहे लेकिन गलतियों को सुधारने की बजाय विभाग ने उनकी कलम तोड़ने पर ज्यादा दिलचस्पी दिखाई। समय बदलते ही विभाग में जैसे ही कुछ अधिकारियों के पर कतरे गए वे अपनी औकात में आ गए। मजेदार बात तो यह है कि कल तक मीडिया मैनेजमेंट में माहिर माने जाने वाले लोग ही आज विभाग के जानी दुश्मन बन गए हैं। कल तक न लिखने की बात करने वाले महाशय ही अब कुछ लिखो-कुछ लिखो की रट लगा रहे हैं। आलम यह है कि जिस तात्या टोपे नगर से प्रदेश भर में खेल परवान चढ़ते हैं वहां भी सबकुछ ठीकठाक नहीं है। खेलप्रेमियों को भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश की सल्तनत से विदाई होने के बाद लगा था कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार पारदर्शिता से खिलाड़ी हित में काम करेगी, सबकी सुनेगी और संविदा प्रशिक्षकों तथा दीगर कर्मचारियों को बेगार से मुक्ति दिलाएगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।

देखा जाए तो प्रदेश के खेल मंत्री जीतू पटवारी उस इंदौर शहर से आते हैं जहां की हर सांस में खेलों से मोहब्बत है। अफसोस खेल विभाग का खुलेआम चीरहरण होते देखने के बाद भी वह द्रोणाचार्य की तरह असहाय हैं। संचालक खेल और युवा कल्याण डॉ. एस.एल. थाउसेन भी बेहद ईमानदार और खेल हितैषी माने जाते हैं लेकिन विभाग में जो हो रहा है उस पर उनकी चुप्पी समझ से परे है। दरअसल, मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार चल जरूर रही है लेकिन उसे आक्सीजन कमल दल वाले ही दे रहे हैं। जो भी हो भ्रष्टाचार की गंगोत्री में हाथ धुलने वाले लोग हर उस चौखट पर जा रहे हैं, जहां से उन्हें बचने की जरा भी उम्मीद नजर आ रही है। कुछ लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि शांति से बैठो, कुछ दिन में फिर से रामराज्य आने वाला है।

मध्य प्रदेश खेल एवं युवा कल्याण विभाग में भर्तियों के गड़बड़झाले पर नजर डालें तो पिछले 12 साल में हुई नियुक्तियों में 50 फीसदी फर्जी दस्तावेजों और लेन-देन से हुई हैं। कुछ साल पहले ग्वालियर में माधवी शर्मा और भिण्ड में आठ साल काम कर चुकी संविदा वालीबाल प्रशिक्षक रीमा चौहान को उनके फर्जी दस्तावेजों को लेकर ही बर्खास्त करने का अप्रिय निर्णय लेना पड़ा था। दरअसल खेल विभाग में तेली का काम तमोली से कराने का रिवाज है, यही वजह है कि न तो सिस्टम सुधर पा रहा है और न ही खिलाड़ियों का भला हो रहा है। हां विभाग बड़े आयोजनों की चोचलेबाजी कर समय-समय पर अपनों को उपकृत करने स्वांग जरूर करता रहता है। मध्य प्रदेश में फर्जी दस्तावेजों से नौकरी हासिल करने का मामला सामने आने पर बेशक कुछ गलतियों पर सुधार हुआ है लेकिन विभाग में कार्यरत सैकड़ों संविदा कर्मियों और व्यापम के माध्यम से हुई 85 नियमित बाबुओं के कागजातों को खंगाला जाए तो 50 फीसदी ऐसे लोग मिलेंगे जोकि फर्जी दस्तावेजों के जरिए विभाग की मलाई छान रहे हैं, इन बाबुओं में भी भोपाल के ही अधिक मिलेंगे।

अब सवाल यह उठता है कि इतने बड़े पैमाने पर यह फर्जीवाड़ा हुआ भी तो आखिर कैसे? सूत्रों की कही सच मानें तो इस गोरखधंधे में विभाग के आला अफसरों सहित जिला खेल अधिकारी और बाबू शामिल हैं। खेल विभाग में फर्जी दस्तावेजों से नौकरी हासिल करने वालों की लम्बी फेहरिस्त है। ग्वालियर-चम्बल सम्भाग में भी नियुक्तियों में जमकर गोलमाल हुआ है। संविदा खेल प्रशिक्षक (ग्रेड-2) सहित दीगर कर्मचारियों से पैसे लेकर नियुक्तियां की गर्इं। इस फर्जीवाड़े में भोपाल खेल एवं युवा कल्याण विभाग की स्थापना शाखा में कार्यरत बाबुओं को कसा जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी हो सकता है। मध्य प्रदेश खेल विभाग में हुए भ्रष्टाचार के कुछ मामले में विधानसभा में भी उठ चुके हैं। जांच समिति के मुखिया विधान सभाध्यक्ष हैं। अब देखना यह दिलचस्प होगा कि भ्रष्टाचार के समंदर में फंसी झींगा मछली बाहर निकलेगी भी या....।   

 

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