मथुरा के स्कूलों में खेल गुरुओं के पद खाली, कैसे बजे ताली

स्पोर्ट्स एक्टिविटी के नाम पर छात्र-छात्राओं से हो रही ठगाई

खेलपथ संवाद

मथुरा। भगवान लीलाधर की नगरी मथुरा में स्कूली खेल भगवान भरोसे हैं। यहां खेल गुरुओं का अभाव होने से छात्र-छात्राएं अपना कौशल नहीं निखार पाते। ओलम्पिक गेम्स में भारतीय खिलाड़ियों से मेडल लाने की उम्मीद तो प्रत्येक देशवासी करता है, लेकिन उनकी तैयारी की ओर कोई ध्यान नहीं देता। हालात यह हो गए हैं कि सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में स्पोर्ट्स की ओर ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है।

जब कोई बच्चा स्वयं की मेहनत से किसी खेल में आगे बढ़ जाता है तो संबंधित खेल एसोसिएशन और सरकारी अमला वाहवाही लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ता है। मथुरा जनपद में 300 उच्च प्राथमिक तथा 545 राजकीय और वित्तीय सहायता प्राप्त स्कूल हैं। इन स्कूलों में कुछ को छोड़ दें तो अधिकांश स्कूलों में स्पोर्ट्स के नाम पर केवल खानापूर्ति की जा रही है। निजी स्कूलों में तो स्पोर्ट्स एक्टिविटी के नाम पर ढाई से तीन हजार रुपये प्रतिमाह अभिभावकों से वसूले जा रहे हैं। दुखद यह कि छात्र-छात्राओं को स्पोर्ट्स एक्टिविटी के नाम पर ग्राउंड में स्वयं खेलने के लिए छोड़ दिया जाता है।

स्पोर्ट्स एक्टिविटी के नाम पर फीस लेने वाले स्कूल संचालकों के पास स्पोर्ट्स के टीचर तक नहीं हैं। एकाध स्कूल में स्पोर्ट्स टीचर हैं तो लेकिन वह किसी स्पोर्ट्स के विशेषज्ञ नहीं हैं। कहीं-कहीं योग प्रशिक्षकों को स्पोर्ट्स टीचर के नाम पर रखा गया है तो कहीं पर स्पोर्ट्स टीचर का पद ही खाली है। निजी स्कूल संचालक फंड होने के बाद भी स्पोर्ट्स के संसाधन नहीं खरीदते हैं। कई स्कूल तो ऐसे हैं जहां पर स्पोर्ट्स का पीरियड सप्ताह में केवल एक बार ही लगता है। इसमें बच्चे इधर-उधर बैठकर अपना टाइम पास करके वापस क्लास में चले जाते हैं।

माध्यमिक शिक्षा जिला क्रीड़ा समिति सचिव डॉ. पदम सिंह कौन्तेय बताते हैं कि जिले में 131 माध्यमिक विद्यालयों में से 24 में ही खेल के शिक्षक हैं। 36 राजकीय विद्यालयों में केवल तीन में खेल शिक्षक हैं। सहायता प्राप्त 93 विद्यालयों में से केवल 20 विद्यालयों में ही खेल शिक्षक हैं। देखा जाए तो माध्यमिक विद्यालयों में 31 खेलों का आयोजन होता है। एडीआईओएस यशपाल सिंह का कहना है कि समय समय पर शिक्षकों की कमी की जानकारी मांगी जाती है, जो शासन को दे दी जाती है।

एकेडमी न होने से बाहर जाते हैं खिलाड़ी

मथुरा में क्रिकेट की दो-तीन एकेडमी को छोड़ दिया जाए तो अन्य एकेडमी के पास केवल मैदान है। इनके पास खेल सिखाने वाले कोच नहीं हैं। जिन अभिभावकों को अपने बच्चों को क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल, बैडमिंटन आदि में आगे बढ़ाना होता है उन्हें आगरा, दिल्ली, नोएडा में प्रशिक्षण दिलाते हैं। जबकि धन के अभाव में मध्यमवर्गीय परिवारों के होनहार बच्चों की प्रतिभा दबकर रह जाती है।

केंद्रीय और दिल्ली पब्लिक स्कूल में होती हैं प्रतियोगिताएं

खेल मैदान और संसाधनों के अभाव में खेल एसोसिएशनों को केंद्रीय और दिल्ली पब्लिक स्कूल में प्रतियोगिताएं करानी होती हैं। यहां केंद्र से खेल के लिए फंड आता है। इसलिए सभी खेलों के शिक्षक और संसाधन उपलब्ध रहते हैं। शिक्षक और संसाधन उपलब्ध होने के बावजूद सीबीएसई स्कूलों में खेलों का स्तर ताली पीटने वाला नहीं कह सकते।

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