उपभोक्ता आयोग के दायरे में कर्मचारी भविष्य निधि सेवाएं

समस्या निराकरण को कर्मचारी खटखटाएं उपभोक्ता अदालत का दरवाजा
खेलपथ संदेश
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने ईपीएफओ को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के दायरे में माना है। कोई भी कर्मचारी भले ही वह सेवानिवृत्त हो गया हो, ईपीएफओ की सेवाओं में कमी या सेवाओं में देरी जैसे मामलों के लिए उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज करा सकता है। पीएफ राशि जमा न होना, पेंशन राशि न मिलना या पीएफ निकासी में देरी जैसे मामलों में उपभोक्ता अदालत से न्याय प्राप्त किया जा सकता है।
कर्मचारी भविष्य निधि यानि ईपीएफ से संबंधित समस्याओं के लिए कर्मचारी उपभोक्ता अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने ईपीएफओ को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के दायरे में माना है। कोई भी कर्मचारी भले ही वह सेवानिवृत्त हो गया हो, ईपीएफओ की सेवाओं में कमी या सेवाओं में देरी जैसे मामलों के लिए उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज करा सकता है। पीएफ राशि जमा न होना, पेंशन राशि न मिलना, या पीएफ निकासी में देरी जैसे मामलों में उपभोक्ता अदालत से आसानी से न्याय प्राप्त किया जा सकता है।
कर्मचारी भविष्य निधि यानि ईपीएफ योजना की स्थापना सन् 1952 में भारत सरकार द्वारा विभिन्न क्षेत्रों के कर्मचारियों के लिए सेवानिवृत्ति बचत योजना प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन द्वारा प्रबंधित इस योजना में कर्मचारियों और नियोक्ताओं दोनों की ओर से एक निश्चित राशि का योगदान अनिवार्य है, जिसका उपयोग सेवानिवृत्ति, नौकरी परिवर्तन या जीवन की विशिष्ट घटनाओं जैसे चिकित्सा आपात स्थिति या घर खरीदने पर किया जा सकता है। ईपीएफ का उद्देश्य कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति के बाद उनके जीवन में वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इस योजना में संचित धनराशि पर ब्याज मिलता है और सेवानिवृत्त होने के समय तक यह एक बड़ी राशि जमा हो जाती है।
कर्मचारियों द्वारा अपनी नौकरी बदलने पर कर्मचारी के ईपीएफ खातों से धनराशि के हस्तांतरण में देरी, धनराशि निकालने में कठिनाई और खाते की शेष राशि में विसंगतियां व समस्याएं आती हैं। वहीं ईपीएफओ के ऑनलाइन पोर्टल में तकनीकी गड़बड़ियों और धीमे प्रसंस्करण समय सहित समस्याओं का आना भी आम बात है। इन परिचालन चुनौतियों ने कर्मचारी सदस्यों में निराशा पैदा की है, जिसके कारण ईपीएफओ को अनुभव और दक्षता में सुधार के लिए अपने सिस्टम और ग्राहक सेवा प्रोटोकॉल को लगातार अपडेट करना पड़ रहा है।
सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ने गत 16 जुलाई, 2025 तक उच्च पेंशन लाभ के लिए 15.24 लाख आवेदनों में से 98.5 फीसदी का निपटान कर दिया है। जिनमें केवल 4,00,573 आवेदनों को ही स्वीकृत किया गया और मांग पत्र भेजे गए। वहीं, 21,995 आवेदन अभी भी समीक्षाधीन हैं। चेन्नई और पुडुचेरी क्षेत्र में अस्वीकृति दर सबसे अधिक रही। यह मुद्दा 2014 के एक सर्कुलर से उपजा है, जिसमें उच्च पेंशन लाभों को केवल एक निश्चित वेतन सीमा से ऊपर कमाने वालों तक सीमित कर दिया गया था। हालांकि, नवंबर 2022 के अपने फैसले में, सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि एक सितम्बर, 2014 से पहले पंजीकृत ईपीएफ सदस्य, जो या तो अभी भी कार्यरत हैं या उस तिथि के बाद सेवानिवृत्त हुए हैं, वे वास्तविक वेतन के आधार पर उच्च पेंशन के पात्र हैं, न कि निर्धारित सीमा के आधार पर। कर्मचारियों की कर्मचारी भविष्य निधि को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने साल 2014 कर्मचारी पेंशन (संशोधन) योजना को वैध ठहराया है। हालांकि कोर्ट ने पेंशन कोष में शामिल होने के लिए 15,000 रुपये मासिक वेतन की सीमा को रद्द कर दिया है। बता दें कि 2014 के इस संशोधन ने अधिकतम पेंशन योग्य वेतन (मूल वेतन और महंगाई भत्ता मिलाकर) की सीमा 15,000 रुपये प्रति माह तय की थी। जबकि संशोधन से पहले, अधिकतम पेंशन योग्य वेतन 6,500 रुपये प्रतिमाह था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 2014 कर्मचारी पेंशन (संशोधन) योजना को वैध ठहाराया है। हालांकि पेंशन कोष में शामिल होने के लिए 15,000 रुपये मासिक वेतन की सीमा को रद्द कर दिया। बता दें कि साल 2014 के संशोधन ने अधिकतम पेंशन योग्य वेतन (मूल वेतन और महंगाई भत्ता मिलाकर) की सीमा 15,000 रुपये प्रति माह तय की थी जबकि पहले अधिकतम पेंशन योग्य वेतन 6,500 रुपये प्रति माह था।
आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा जिन कर्मचारियों ने पेंशन योजना में शामिल होने के विकल्प का इस्तेमाल नहीं किया है, उन्हें छह महीने के भीतर ऐसा करना होगा। पात्र कर्मचारी जो अंतिम तारीख तक योजना में शामिल नहीं हो सके, उन्हें एक अतिरिक्त मौका दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने सन 2014 की योजना में इस शर्त को अमान्य करार दिया कि कर्मचारियों को 15,000 रुपये से अधिक के वेतन पर 1.16 प्रतिशत का अतिरिक्त योगदान देना होगा। स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से विभिन्न क्षेत्रों के कर्मचारियों को राहत मिली है और भविष्य में भी न्याय के लिए उनके लिए उपभोक्ता अदालत के दरवाजे खुले हैं।