श्रवण कुमार की साधना में समाहित साहित्य और समाज सेवा
नायाब शख्सियतः शहरों में रहकर कराया गांवों की पीड़ा का अहसास
श्रीप्रकाश शुक्ला
जीवन में प्रत्येक व्यक्ति के अंतस में कोई न कोई प्रतिभा या गुण होता है, जो उसकी पहचान और आदर का कारण बनता है। आदर या फिर कहें मान-सम्मान हर किसी को भाता है, जिसे पाने के लिए हर व्यक्ति अपनी तरफ से भरसक प्रयास भी करता है। कुछ लोग इसका अपवाद होते हैं, उनमें मान-सम्मान से परे सिर्फ साहित्य और समाज सेवा की धुन होती है। ऐसी ही नायाब शख्सियतों में शुमार हैं श्रवण कुमार बाजपेयी।
मैं इस शख्सियत को लगभग 45 वर्षों से जानता हूं। इनका बचपन से ही साहित्य और समाज से बेहद अनुराग रहा है। शिक्षणेत्तर काल से ही पत्र-पत्रिकाओं में इनके आलेख प्रकाशित होते रहे। बाल्यकाल में ही मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चरित्र को स्वयं में ढाल चुके श्रवण कुमार बाजपेयी से कभी-कभार दूरभाष पर जब भी बात होती है, उनका साहित्य और गांव सेवा का जोश-जुनून जाग उठता है। कभी-कभी भगवान आपको वह नहीं देते जो आप चाहते हैं, इसलिए नहीं कि आप इसके लायक नहीं हैं बल्कि इसलिए कि आप इससे बेहतर के लायक हैं। श्रवण कुमार बाजपेयी भी ऐसे ही लोगों में शामिल हैं।
बचपन में ही सिर से पिता का साया उठ जाने के बावजूद श्रवण अपने नाम के अनुरूप काम में लगे रहे। कविताएं लिखना, अंत्याक्षरी में भाग लेना, वाद-विवाद प्रतियोगिताएं, नाटक और स्काउटिंग इनकी मनचाही कार्य साधनाएं रही हैं। खुद्दारी और आत्मसम्मान इनकी खासियत और धरोहर है। खुद्दारी और आत्मसम्मान किसी इंसान के जीवन में बहुत अहमियत रखते हैं, इनकी वजह से ही व्यक्ति का मस्तक ऊंचा रहता है तथा वह आत्मविश्वास से भरा रहता है। आत्मविश्वास से परिपूर्ण श्रवण कुमार बाजपेयी की रचनाएं आजकल सोशल मीडिया पर खूब पढ़ी और सराही जा रही हैं। इंसान के जीवन की सच्चाइयों को बयां करतीं इनकी रचनाएं जब पढ़ो तो ऐसा लगता है जैसे आपकी गलतियों पर कोई प्रहार कर रहा हो। प्रायः इनकी रचनाओं में पद, प्रतिष्ठा और अहंकार का जिक्र होता है जो लोगों को बहुत अच्छा लगता है, बहुत प्रभावित करता है।
रायबरेली जिले के छोटे से गांव निसगर में 1963 में जन्मे श्रवण कुमार बाजपेयी ने 12वीं तक की शिक्षा नर्मदेश्वर इंटर कॉलेज, रामबाग से हासिल करने के बाद बीएससी की शिक्षा हासिल करने कानपुर चले गए। कानपुर में पढ़ाई करते वक्त उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज जागरण का काम किया। उस दौर में सरिता, मुक्ता, कादम्बिनी आदि प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित उनकी कविताएं खूब पढ़ी और सराही गईं। उन्हीं दिनों सरिता में प्रकाशित इनकी एक रचना तुम हंसो खूब, मैं तुम्हे हंसाता जाऊं काफी लोकप्रिय हुई थी। तब इन स्रोतों से उन्हें इतना पैसा नहीं मिल पाता था कि वे अपना जीवन-यापन ठीक से कर पाते। बीएससी करने के बाद घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण श्री बाजपेयी को रोजी-रोटी की तलाश में मुंबई जाना पड़ा।
मायानगरी में पहुंचने के बाद श्री बाजपेयी ने नवभारत मुंबई में प्रेस रिपोर्टर, उल्हास विकास में नियमित कालम, अपनी पत्रिका मणिमाला के स्वयं प्रकाशन का महती दायित्व निभाया। बहुत कोशिशों के बाद भी साहित्य सेवा और जीवन-यापन के बीच उनका सामंजस्य नहीं बैठा। वह घर-गृहस्थी में ऐसे उलझे की साहित्यिक गतिविधियां से पूर्णतया अलग-थलग से हो गए। कहते हैं कि लाख परेशानियां आएं लेकिन साहित्यप्रेमी का साहित्य अनुराग हमेशा जिन्दा रहता है। मुश्किल चुनौतियों के बाद भी श्री बाजपेयी ने खुद का काव्य-संग्रह लबों को कब तलक खामोश रखूं लिखा। उम्र के 60 बसंत पार कर चुके श्रवणजी अब पूरे मनोयोग से साहित्यिक गतिविधियों, समाजसेवा और कई सामाजिक संस्थाओं के लिए निःस्वार्थ सेवा में जुट गए हैं। वह ग्रामीण लोगों को स्वास्थ्य, शिक्षा और बदलते जमाने की जानकारी देने के लिए अभियान भी चलाते हैं।
फिलवक्त यह देहरादून से प्रकाशित साहित्यिक सचेतना से जुड़कर प्रतिदिन सम्पादक मण्डल द्वारा चाही विषय वस्तु पर कविताएं, गीत और आलेख लिखकर अपनी ज्ञान-पिपासा को शांत कर रहे हैं। सोशल मीडिया में इनकी रचनाएं युवा पीढ़ी को स्फूर्ति प्रदान करती हैं। इनकी कविताओं में समय और समाज की कुरीतियों से लड़ने का जज्बा, दो लाइनों की शायरी जीवन के सही अर्थों में अपनी जैसी कहानी लगती है। इनकी कविताओं में पद, प्रतिष्ठा और समय पर अभिमान न करने की सीख मिलती है। श्री बाजपेयी पानीपत के पूर्वांचल समाज से भी जुड़े हैं जहां इनकी बेबाक टिप्पणियां लोगों को बहुत पसंद आती हैं। श्री बाजपेयी राष्ट्रीय खेल समाचार पत्र खेल-पथ के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्र की प्रतिभाओं को खेलों के प्रति प्रेरित करते हुए उनका प्रोत्साहन करते हैं। परमपिता परमात्मा इन्हें दीर्घायु दे ताकि इनकी रचनाओं से नई पीढ़ी ज्ञान, शिक्षा और समाज के प्रति प्रेमभाव की सीख का लाभ उठाकर राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे सके।