करोड़ों भारतीयों की प्रेरणा विजयी विनेश
पेरिस में किया जांबाज प्रदर्शन दुनिया रखेगी याद
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली। पेरिस ओलम्पिक में कई नामचीन खिलाड़ी जहां अपनी प्रतिभा के साथ इंसाफ नहीं कर सके वहीं कुछ अनजान खिलाड़ियों ने अच्छे भविष्य का संदेश दिया है। इस ओलम्पिक में जांबाज पहलवान विनेश फोगाट का करिश्माई प्रदर्शन तो उसे बिना पदक ओलम्पिक से डिसक्वालीफाई किया जाना न बिसरने वाली कसक है। बहादुर बेटी को इस तरह ओलम्पिक से विदा करना तो ओलम्पिक खेलों के मूलमंत्र की ही तौहीन है।
जीवटता की धनी महिला पहलवान विनेश फोगाट ने 50 किलो वर्ग की कुश्ती स्पर्धा के फाइनल में प्रवेश करके करोड़ों भारतीयों का दिल जीत लिया था। देश उनसेे सोने के पदक की उम्मीद कर रहा था। लेकिन करोड़ों भारतीयों की उम्मीदों पर उस समय वज्रपात हो गया जब पेरिस ओलम्पिक में महज सौ ग्राम वजन ज्यादा होने के कारण उन्हें अयोग्य करार दे दिया गया। विनेश अब इस ओलम्पिक में कोई पदक नहीं जीत सकेंगी। निस्संदेह, जब विनेश इतिहास रचने जा रही थीं, उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया। लेकिन फिर भी आज देश उनके साथ खड़ा है।
खेलप्रेमी सरकार से हस्तक्षेप की मांग की गई। निश्चय ही यह एक दिल तोड़ने वाली घटना है। कहा जा रहा है कि भारत को ओलम्पिक संघ से कड़ा विरोध दर्ज कराना चाहिए। जाहिर है यह फाइनल स्पर्धा थी। भारत सोने के पदक की आस लगा रहा था। इस फैसले को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। दरअसल, भारतीय दल ने विनेश के वजन को 50 किलो तक लाने के लिये थोड़ा समय मांगा था। लेकिन तय वजन से अधिक भार होने के कारण उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया।
असल में, रेसलिंग इवेंट में हिस्सा लेने वाले खिलाड़ियों को अलग-अलग भार वर्ग में वर्गीकृत किया जाता है। रेसलिंग व बॉक्सिंग जैसे खेलों में यह नियम है। ताकि सभी खिलाड़ियों के लिये निष्पक्ष अवसर तय किये जा सकें। यही वजह है कि खिलाड़ी जिस भार वर्ग का चयन करता है, उसे उसी वर्ग में खेलने की इजाजत मिलती है। इसमें किसी तरह की ढील नहीं मिलती। हर स्पर्धा से पहले चिकित्सा जांच व वजन किया जाता है। साथ ही खिलाड़ी के वजन की प्रक्रिया में असफल होने पर उसे प्रतियोगिता से बाहर कर दिया जाता है। फिर पहली प्रतियोगिता में हारे खिलाड़ी को खेलने का मौका दिया जाता है। विनेश के मामले में भी आईओसी ने ऐसा ही फैसला लिया है। लेकिन भारतीयों के लिये यह फैसला असहनीय है।
निस्संदेह, हर भारतीय के लिये यह फैसला कष्टदायक है। वे फाइनल से पहले विनेश को अयोग्य करार दिये जाने की घटना पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं। कतिपय लोग इसे पश्चिमी देशों द्वारा विकासशील देशों के खिलाड़ियों के साथ भेदभाव मानते हैं। उनका मानना है कि भारत सरकार को इस मामले में कड़ा विरोध दर्ज कराना चाहिए। भारतीय ओलम्पिक संघ को भी इससे निबटने के लिये हरसंभव प्रयास करने चाहिए। देश के तमाम बड़े खिलाड़ी और राजनेता विनेश का हौसला बढ़ाने में लगे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा है कि विनेश आप भारत का गौरव हैं और हर एक भारतीय की प्रेरणा हैं। आप में लड़ने की क्षमता है। आप सबल होकर लौटें, सारा देश आपके साथ खड़ा है।
निस्संदेह, सारे देश की ऐसी ही सोच है। भले ही पेरिस ओलंपिक में उनके हाथ निराशा लगी हो, लेकिन उनके सामने तमाम स्वर्णिम अवसर विद्यमान हैं। बेशक, फाइनल में खेलने के लिये वह अयोग्य करार दे दी गई हों, लेकिन वे आगे मेहनत से और मेडल लाएगी। विनेश की जीत प्रशंसनीय थी और उन्होंने भरसक प्रतिबद्धता भी दिखायी। उन्होंने पहले के राउंड ही नहीं जीते बल्कि देश के लोगों का दिल भी जीता। लेकिन यह बात तो जरूर है कि उन्हें उनकी मेहनत का वह फल नहीं मिला, जिसकी वह हकदार थीं। लेकिन एक बात तो तय है कि विनेश और भारतीय खेल दल के कर्ता-धर्ताओं के स्तर पर भी लापरवाही तो हुई है। वजन की निगरानी बेहद सावधानी से होनी चाहिए। लड़कों के मामले में वजन घटाना आसान होता है। लेकिन लड़कियों के स्तर पर यह कठिन होता है क्योंकि उन्हें पसीना कम आता है।
हालांकि, विनेश ने वजन घटाने के लिये कठिन प्रयास किये थे। खान-पान बेहद नियंत्रित किया था। लेकिन कहीं न कहीं कोई खामी तो रह ही गई। बहरहाल इसके बाद भी विनेश जहां तक गई, वो किसी मेडल जीतने से कम नहीं है। वैसे इस मामले में राजनीतिक बयानबाजी करना गलत ही है। साथ ही इस घटना का एक सबक यह भी है कि हमें वैश्विक स्पर्धाओं के नियमों को गंभीरता से लेना चाहिए। विनेश को चांदी का तमगा मिलेगा या नहीं इसका फैसला 13 अगस्त को होगा।