ग्वालियर के द्रोणाचार्य शिवा ने लिखी भारतीय हॉकी में नई पटकथा

ग्वालियर के लाल की सोच और काबिलियत के विदेशी भी कायल

बेटी ने कहा- मम्मी पापा से कहो पेरिस से जल्दी आएं मेडल लाएं

श्रीप्रकाश शुक्ला

ग्वालियर। भारत ने गुरुवार को मजबूत स्पेन को न केवल पराजय के लिए मजबूर किया बल्कि 52 साल बाद लगातार दो ओलम्पिक पदक जीतने का गौरव भी हासिल किया। भारत की युवा पीढ़ी ने पहली बार अपने खिलाड़ियों को तीन साल में दो बार ओलम्पिक पदक जीतते देखा है। इस जीत में एमपी के विवेक सागर सहित टीम के सभी खिलाड़ियों की हार न मानने की जिद तो ग्वालियर के द्रोणाचार्य शिवेन्द्र सिंह चौधरी की सोच और काबिलियत का बड़ा योगदान है।

हर खिलाड़ी की तरह शिवा का सपना था कि वह ओलम्पिक खेले और देश के गौरवशाली हॉकी इतिहास को लौटाए। सेण्टर फॉरवर्ड के रूप में ग्वालियर के शिवेन्द्र सिंह को 2012 में ओलम्पिक खेलने का मौका तो मिला लेकिन भारतीय टीम को पदक दिलाने का उसका सपना पूरा नहीं हो सका। हर खिलाड़ी की तरह शिवेन्द्र सिंह चौधरी के करियर में भी कई बार उथल-पुथल मची, जब वह 2016 ओलम्पिक खेलने का सपना देख रहा था तभी टीम में उसका चयन नहीं हुआ, जबकि वह अच्छा खेल रहा था।

शिवा के हॉकी करियर में ऐसे लम्हे भी आए जब वह पूरी तरह से टूट सा चुका था। ऐसे मुश्किल समय में जब लोग उसकी टांगें खींचकर गिराने का प्रयास कर रहे थे वैसे नाजुक समय में शिवा का हौसला किसी और ने नहीं बल्कि उनकी अंतरराष्ट्रीय पत्नी निशी चौहान ने बढ़ाया। निशी बोलीं मैं आपके साथ हूं। जो सपने देखे हैं उन्हें पूरा करो, बच्चियों की चिन्ता मैं करूंगी। हम अपने पाठकों को बता दें शिवेन्द्र सिंह चौधरी का हॉकी में कोई गॉड फादर कभी नहीं रहा। उसे अपनी मेहनत पर हमेशा भरोसा रहा है। शिवेन्द्र सिंह कहते हैं कि इंसान को नीयत साफ रखते हुए अपने लक्ष्य को हासिल करने को जीतोड़ मेहनत करनी चाहिए।

भारतीय टीम के सर्वश्रेष्ठ हमलावरों में शुमार रहे शिवेन्द्र सिंह चौधरी के जीवन में वह समय भी आया जब उसे टीम इंडिया से ही निकाल दिया गया। एयर इंडिया में भी उसके साथ दोयमदर्जे का व्यवहार होने लगा। इस मुश्किल समय में 2019 में उसे हॉकी इंडिया से कोचिंग का आफर मिला। शिवा का कोचिंग से कभी कोई वास्ता नहीं रहा, वह देश के लिए अभी और खेलना चाहता था। असमंजस की स्थिति में फंसे शिवा को एक बार फिर से हॉकी को जीती पत्नी निशी का सहयोग मिला। निशी ने ही शिवा को समझाया कि वह कोचिंग के माध्यम से भी अपने अधूरे सपने को साकार कर सकते हैं। वह जाएं और अपनी नई पारी की शुरुआत करें। निशी ने दूरभाष पर हुई बातचीत में बताया कि शिवा के जेहन में तब कई सवाल थे। मसलन तुम बच्चियों को लेकर कैसे रहोगी।

निशी के समझाने के बाद शिवेन्द्र सिंह चौधरी न केवल भारतीय टीम से जुड़े बल्कि पांच वर्षों में जो भी विदेशी प्रशिक्षक भारतीय टीम से जुड़ा हर किसी ने उसके काम की प्रशंसा की। विदेशी प्रशिक्षकों का मानना है कि शिवा के होने से भारतीय टीम के खिलाड़ियों को जहां भाषाई समस्या नहीं होती वहीं एक अच्छा खिलाड़ी होना उसका सबसे मजबूत पक्ष है। देखा जाए तो ओलम्पिक में 13 पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम का अतीत शानदार रहा है। खासकर हिटलर की उपस्थिति वाले बर्लिन ओलम्पिक में मेजर ध्यानचंद के खेल और स्वर्ण पदक की चर्चा गाहे-बगाहे होती रहती है। ओलम्पिक के इतिहास में भारत ने आठ स्वर्ण, एक रजत और चार कांस्य पदक जीते हैं। हालांकि, वर्ष 1980 के मास्को ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीतने के बाद फिर टीम सुनहरी सफलता से वंचित रही। उसके बाद तो पदकों का सूखा 41 साल बाद टोक्यो ओलम्पिक में मिले कांस्य पदक से ही टूटा। गुरुवार को भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने एक और कांस्य पदक जीतकर 52 साल बाद लगातार दो ओलम्पिक पदक जीतने का करिश्मा दोहराया है।

पेरिस ओलम्पिक में मजबूत मानी जा रही टीम टोक्यो ओलम्पिक के पदक का रंग नहीं बदल सकी, लेकिन उसकी कामयाबी से परम्परागत भारतीय खेल की प्रतिष्ठा फिर से जरूर स्थापित हुई है। इस बार ग्रुप स्टेज में मजबूत टीमों की उपस्थिति के बावजूद टीम का प्रदर्शन तीसरे स्थान के मुकाबले तक शानदार रहा। फर्क इतना ही रहा कि जहां टोक्यो मुकाबले में भारतीय टीम ने जर्मनी को हराकर कांस्य पदक जीता था, वहीं इस बार जर्मनी से हारकर वह स्वर्ण पदक से दूर हो गई। इस ओलम्पिक में आस्ट्रेलिया-ब्रिटेन को हराना भारतीय हॉकी की बड़ी उपलब्धि रही। विश्वास किया जाना चाहिए कि 1928 में पहली बार ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीतकर भारतीय हॉकी टीम ने जो स्वर्णिम उपलब्धियां हासिल कीं, निकट भविष्य में वह उसे जरूर दोहराएगी। फिर कोई ध्यान चंद और श्रीजेश जैसा दिग्गज खिलाड़ी भारत की गौरवशाली हॉकी परम्परा को आगे बढ़ाएगा।

कांस्य पदक मुकाबले में स्पेन ने भारतीयों को आखिर तक कड़ी टक्कर दी। अंतिम 60 सेकेंड में चार पेनल्टी-कॉर्नर अर्जित किए, लेकिन भारतीय रक्षापंक्ति दृढ़ रही। जैसा कि कोच क्रेग फुल्टन ने कहा, ‘टीम पूरी तरह तैयार थी। दबाव के सामने उसका हौसला नहीं टूटा।’  मुख्य प्रशिक्षक फुल्टन और सहायक प्रशिक्षक शिवेन्द्र सिंह चौधरी भारतीय हॉकी खिलाड़ियों के संघर्ष से बहुत खुश हैं। भारत की इस जीत से बेहद खुश निशी चौहान कहती हैं कि मेरे शिवा का सपना सच हो गया। मेरी बड़ी बेटी पूर्वी सिंह कहती है कि मम्मी पापा से कहो पेरिस से जल्दी मेडल लेकर आएं।

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