उपेक्षित-हताश बुजुर्गों की सुध लेने का समय

आओ बुजुर्गों के लिए बनाएं योजनाएं
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
भारत युवाओं का देश है लेकिन धीरे-धीरे ही सही यहां उम्रदराज लोगों की संख्या भी बढ़ रही है। हमारे देश में बुजुर्गों की स्थिति क्या है यह बताने की जरूरत नहीं है। हमारी हुकूमतों को अब बुजुर्गों के लिए भी कुछ अच्छी योजनाएं बनाने की दरकार है। कोशिश हो कि जीवन की सांझ में बुजुर्गों को स्वास्थ्य देखभाल के लिये पर्याप्त सुविधाएं मिलें। सामाजिक सुरक्षा हो और पेंशन की जरूरत पूरी हो।
फिलहाल तो दुनिया का सबसे युवा देश होने का गौरव भारत को है लेकिन धीरे-धीरे बढ़ती वरिष्ठ नागरिकों की आबादी हमें इस दिशा में गंभीरता से सोचने की जरूरत बता रही है। दरअसल,भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश का चरण वर्ष 2010 में तब आरम्भ हुआ जब देश में कामकाजी आयु वर्ग की आबादी 51 फीसदी हुई। कालांतर इसमें इजाफा हुआ है। जाहिर बात है कि आने वाले वर्षों में इसी अनुपात में वरिष्ठ नागरिकों की संख्या में इजाफा होना तय है। 
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष और इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज द्वारा जारी की गई इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2023 हमारी चिंता बढ़ाती है। रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2050 तक देश में साठ साल से अधिक लोगों की आबादी करीब 21 फीसदी हो जाएगी। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो देश में वरिष्ठ नागरिकों की संख्या 34.7 करोड़ हो जाएगी। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2022 में बुजुर्गों की आबादी करीब दस फीसदी यानी 14.9 करोड़ थी। दरअसल, देश के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की भारत में युवा 2022 रिपोर्ट में भी इस बात की पुष्टि हुई है कि प्रजनन दर में गिरावट के चलते कामकाजी उम्र के लोगों की संख्या में गिरावट देखी जा रही है। वहीं दूसरी ओर बुजुर्ग आबादी की दर में लगातार वृद्धि हो रही है। जहां वर्ष 1991 में बुजुर्ग आबादी का प्रतिशत 6.8 था, वहीं 2016 में यह प्रतिशत 9.2 हो गया। अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2036 तक यह आंकड़ा करीब पंद्रह फीसदी हो जाएगा।
निश्चित रूप से ऐसे में हमें इस चुनौती का मुकाबला करने के लिये तैयार रहना होगा ताकि देश के वरिष्ठ नागरिक सम्मानपूर्वक जीवन-यापन कर सकें। जिसके लिये अभी से तैयारी करनी होगी। हमें ऐसी सरकारी नीतियां बनानी होंगी जो आने वाले समय में बुजुर्गों के कल्याण में सहायक हों। कोशिश हो जीवन के अंतिम पड़ाव में बुजुर्गों को कष्टों का सामना न करना पड़े। यह उनके लिये मुश्किल समय होता है क्योंकि सेवानिवृत्ति के बाद उनके आय के साधन सिमट जाते हैं। फिर भारत में वरिष्ठ नागरिकों की सामाजिक सुरक्षा की नीतियां अनुकूल नहीं हैं। जिसमें सरकार की भागेदारी को बढ़ाया जाना चाहिए। 
कोशिश हो कि जीवन की सांझ में बुजुर्गों को स्वास्थ्य देखभाल के लिये पर्याप्त सुविधाएं मिलें। सामाजिक सुरक्षा हो और पेंशन की जरूरत पूरी हो। कोशिश होनी चाहिए कि विनिर्माण व सेवा क्षेत्रों में कार्यरत युवा आबादी को आने वाले समय में वरिष्ठ नागरिक बनने पर बेहतर सुविधाएं मिल सकें। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट चिंता बढ़ाती है कि आने वाले समय में बुजुर्गों में शामिल होने वाली चालीस फीसदी आबादी गरीब वर्ग से आती है, जिसकी सामाजिक सुरक्षा के लिये कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। अब समय आ गया है कि देश के वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण की योजनाओं को मूर्त रूप दिया जाए। जिसके लिये कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व खर्च बढ़ाया जाए। विडंबना यही है कि वर्ष 2014 के बाद इस अवधि के दौरान सीएसआर खर्च में 89 मिलियन रुपये से 551 मिलियन रुपये वृद्धि के बावजूद यह कुल व्यय का केवल 0.3 प्रतिशत ही है।

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