कप्तान सविता पूनिया का कहना एशियन गेम्स में पदक पक्का

महिला हॉकी टीम की बड़े टूर्नामेंट की तैयारी जारी
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
भारतीय महिला हॉकी टीम ने पिछले कुछ समय में शानदार प्रदर्शन किया है। टोक्यो ओलम्पिक में भले ही भारत की महिला टीम हॉकी में पदक नहीं जीत पाई थी, लेकिन अपने खेल से भारतीय खिलाड़ियों ने सभी का दिल जीत लिया था। इसके बाद राष्ट्रमंडल खेलों में भी भारतीय महिलाओं के खेल की सबने प्रसंशा की थी। द्विपक्षीय सीरीज में भी भारत के प्रदर्शन में लगातार सुधार हो रहा है और वह दिन दूर नहीं है, जब भारतीय महिला टीम हॉकी में बड़ा पदक लेकर आएगी। 
भारत की इस सफलता में टीम की कप्तान सविता पूनिया का अहम योगदान है। गोल पोस्ट के सामने दीवार की तरह खड़ी रहने वाली सविता मैदान के बाहर काफी मेहनत करती हैं और खिलाड़ियों के साथ बातचीत करती हैं। इसी वजह से टीम एकजुट होकर बेहतर प्रदर्शन कर पा रही है। सविता ने बताया कि एक सामान्य लड़की के लिए भारतीय टीम की कप्तान बनने तक का सफर कितना मुश्किल रहा और इसमें उनके परिवार ने कितनी मदद की। इसके अलावा उन्होंने भारतीय टीम की तैयारी और एशियन गेम्स को लेकर भी बात की।
सवालः अपने खेल में एक महिला होने के नाते आपके सामने क्या-क्या कठिनाइयां आईं?
जवाबः थोड़ी परेशानियां तो आती हैं, जब घर से बाहर रहते हो तो आपको ध्यान रखना पड़ता है कि आपके माता-पिता ने भरोसा करके आपको बाहर भेजा है। मेरे लिए यही था कि अनुशासन में रहना है और अपने माता-पिता को गर्व हासिल करने का मौका देना है। यह दिखने के लिए छोटी चीज है, लेकिन इसके मायने बहुत बड़े हैं। मैं हरियाणा से हूं और यहां माता-पिता सोचते हैं कि बेटियों को बाहर भेजें या नहीं। कई बार पड़ोसी या कई बार रिश्तेदार मना करते हैं, लेकिन मेरे घर में ऐसा नहीं था। मेरे माता-पिता दोनों भाई-बहन को समान छूट देते थे। मेरे अंदर यही भावना कि जो छूट मिली है, उसका सही इस्तेमाल करना है।
जब आप खेल में अपना करियर बनाते हो तो बचपन में कुछ पता नहीं चलता, लेकिन बड़े होकर फर्क दिखता है। लड़िकियों की तुलना में लड़के शारीरिक रूप से ज्यादा मजबूत होते हैं। मैंने जब ट्रेनिंग शुरू की और धीरे-धीरे ट्रेनिंग आगे बढ़ी तो मैं घर आकर बताती थी कि आज मैंने इतनी पुश अप की हैं। उस समय मेरा भाई किसी खेल में अपना करियर नहीं बना रहा था, लेकिन वह कहता था कि ये तो मैं भी कर लेता हूं। शारीरिक मजबूती का अंतर तो रहता है, लेकिन यह ज्यादा मायने नहीं रखता। अगर आपने कोई लक्ष्य तय कर लिया है और ठान लिया है कि उसे हासिल करना है, तो परिवार के समर्थन से सब कुछ हासिल किया जा सकता है।
सवालः समाज में लड़कों और लड़कियों को लेकर जो भेदभाव होता है, उस पर आपके क्या विचार हैं?
जवाबः अभी कई जगहों पर जाते हैं तो कई लोग इस चीज पर सवाल करते हैं। ऐसे में मुझसे पहले पापा बोलते हैं कि वो भेदभाव कहां से खत्म होगा। हमें अपने घर से शुरुआत करनी होगी। हम अपने बेटे-बेटी में फर्क न करें। हमें देखकर दूसरे ऐसा करेंगे और उन्हें देखकर बाकी लोग ऐसा करेंगे। वहीं, बच्चों की भी जिम्मेदारी बनती है कि जब उन्हें आजादी मिले तो उसे बर्बाद न करें। बल्कि अपने माता-पिता का सिर गर्व से ऊंचा करें। मुझे भी शुरुआत में इतनी समझ नहीं थी, लेकिन जब समझ आई तो मेरा उद्देश्य यही रहा है कि मैं अपने माता-पिता को खुश होने का मौका दूं। इस पर मैं बाहर की बात करने की बजाय यही कहूंगी कि अगर हम घर से शुरुआत करें तो आने वाले समय में चीजें और बदल सकती हैं। कई चीजें बदली हैं और हम अपने घर से शुरुआत करें तो माहौल और भी बेहतर होगा।
सवालः महिला FIH नेशंस कप में आपकी टीम ने शानदार प्रदर्शन किया। टीम इंडिया कोई भी मैच नहीं हारी। ऐसा प्रदर्शन करने के लिए क्या खास तैयारी की थी और आगे क्या प्लान है?
जवाबः कॉमनवेल्थ के बाद जब हम कैंप में गए थे तो हमें पता था कि यह टूर्नामेंट कितना जरूरी है। अगर हम यह जीतते हैं तो प्रो लीग के लिए क्वालिफाई करेंगे। ऐसे में अगले साल हमें और बेहतर टीमों के साथ खेलने का मौका मिलेगा और हमारी टीम और बेहतर होगी। पिछले साल हमने प्रो लीग खेली थी और हमें पता था कि बड़ी टीमों के खिलाफ खेलने से कितना फायदा मिलता है। हमारे कोच का भी यही कहना था कि साल भर हमनें अच्छी हॉकी खेली है और आखिर में यह टूर्नामेंट है। इसमें इतना समय है और किस चीज पर काम कर सकते हैं, क्या हमारी मजबूती है, जिसे आगे बढ़ाए रख सकते हैं। बैंगलोर में ट्रेनिंग कैंप शानदार रहा था। इसके बाद यही था कि अपना बेस्ट करना है।
सवालः आपकी कप्तानी में भारतीय टीम का डिफेंस शानदार रहा है। क्या गोलकीपर होने के नाते डिफेंस बेहतर करने में आपको कोई मदद मिलती है?
जवाबः हमारे कोच का कहना है कि जो टीम सिर्फ अटैक करती है, वह एक या दो मैच जीत सकती है, लेकिन जो टीम डिफेंस बढ़िया करती है वह पूरा टूर्नामेंट जीतती है। इसी वजह से हमने अपना अटैक और डिफेंस दोनों बेहतर किया। भारत का अटैक पुरुष और महिला हॉकी दोनों में शानदार रहा है। हमने यह समझा की डिफेंस में और काम करने की जरूरत है। सबने इसे समझा और अपनी जिम्मेदारी ली। ऐसे में गोलकीपर के लिए चीजें आसान हो जाती हैं। 
आज के खेल में व्यक्तिगत खेल के साथ कोचिंग भी जरूरी है। हमनें इस पर भी ध्यान दिया। गोलकीपर ने डिफेंस को कोचिंग दी, डिफेंस ने मिडफील्ड को और मिडफील्ड ने अटैक को। एक टीम के रूप में हमने इस पर काम किया और ऐसा नहीं है कि इस टूर्नामेंट में ऐसा किया। हम पिछले कई महीनों से ऐसा करते आ रहे हैं। आज की हॉकी काफी बदल चुकी है। शुरुआत में मैं बहुत कम बोलती थी, तब हमारे कोच एम के कौशिक सर ने मुझे बोला था कि तुम्हें बोलना है, अगर तुम नहीं बोलोगी तो टीम में तुम्हारी कोई जगह नहीं है। उन्हें पता था कि अगर मैं बोलूंगी तो मेरा भी फायदा होगा और टीम की भी मदद होगी। उन्होंने सबसे कहा कि यह कोई विकल्प नहीं है कि आप कोचिंग कर सकते हैं। यह भी आपका काम है और सभी ने इसे गंभीरता से लिया। इससे भी हमें टूर्नामेंट में काफी मदद मिली।
सवालः आप गोलकीपर हैं और साथी खिलाड़ियों के साथ जाकर गोल नहीं कर सकतीं या गोल करने का प्रयास नहीं कर सकतीं। मैच के दौरान बाकी खिलाड़ियों से बातचीत का समय भी कम मिलता है, इससे कप्तानी में कोई परेशानी आती है। 
जवाबः नहीं ऐसा नहीं है, (हंसते हुए) आप शायद पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने यह सवाल किया है। मैच से पहले कोच के साथ हमारी मीटिंग होती है, उसी में यह तय होता है कि हमें कैसे खेलना है। इसके बाद खिलाड़ियों की मीटिंग होती है, जिसमें बाकी तैयारी की जाती है। इसमें एक दूसरे को मोटिवेट करते हैं और एक दूसरे से अगर कुछ खास जरूरत है तो उस पर बात करते हैं। जैसे मुझे डिफेंडर्स से कुछ चाहिए या स्ट्राइकर को कुछ बताना है तो इस पर चर्चा करते हैं। अगर किसी डिफेंस या अटैक पर बात करनी है तो मैच से पहले ही होती है। आनन-फानन में कुछ नहीं होता। हमारे कोच भी यही कोशिश करते हैं कि मैच से एक दिन पहले ही यह तय कर लें कि क्या करना है? मैच वाले दिन किसी को दस चीजें बता दी जाएं तो उसे समझ नहीं आएगा कि क्या करना है। मैच वाले दिन सभी को अपना काम करना होता है। मैच वाले दिन एक मीटिंग में हमें सब कुछ फिर से याद दिलाया जाता है कि कैसे खेलना है। और हाफ टाइम या क्वार्टर टाइम के दौरान हम यह देखते हैं कि वो क्या कर रहे हैं। उस समय मैं कप्तान या सीनियर के रूप में यह बताती हूं कि वो इस तरह डिफेंस या अटैक कर रहे हैं तो हमें इस तरह खेलना है। मुझे कभी गोलकीपर होने के नाते कप्तानी में परेशानी नहीं हुई। आप बाकी खिलाड़ियों से पूछ सकते हैं, शायद उन्हें परेशानी हुई हो। या मेरे आगे जो डिफेंडर होती हैं, मैं उनसे बोल देती हूं कि वो ऐसा खेल रहे हैं तो ये करो, तो मैच के दौरान ये जुड़ाव रहता है।
सवालः अगले महीने भारत को दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ खेलना है। इसके लिए क्या खास तैयारी की है। 
जवाबः सब के लिए मुख्य लक्ष्य एशियन गेम्स हैं। हमारे लिए यह टूर्नामेंट अच्छा रहा है, लेकिन सुधार की गुंजाइश हमेशा होती है। कैंप में यहीं कोशिश है कि जो हमारी मजबूती है, उसे और बेहतर करें और कमजोरियों को दूर करें। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ जो मैच होंगे, उनमें हम खुद को और बेहतर करने की कोशिश करेंगे।
सवालः अगले साल एशियन होने हैं। इनमें महिला टीम से भी काफी उम्मीदें हैं। इसके लिए अभी से कुछ तैयारी शुरू कर दी है, युवा खिलाड़ियो को तैयार कर रही हैं या इसी कोई खास रणनीति पर काम कर रही हैं? और क्या उम्मीद कर रही हैं कि इस बार कौन सा पदक आएगा।
जवाबः बिल्कुल, उम्मीदें तो हमेशा रहती हैं, लेकिन ओलंपिक में जो प्रदर्शन रहा, उसके बाद उम्मीदें बढ़ गई हैं। हमारी भी उम्मीदें उतनी ज्यादा हैं। हमने जो चीजें सीखी हैं, वो यह हैं कि हम नतीजे के बारे में ज्यादा नहीं सोचते और उस प्रकिया में व्यस्त रहते हैं, जो हमें सफलता दिलाती है। क्योंकि प्रदर्शन अच्छा रहेगा तो अपने आप मेडल आएगा, लेकिन सिर्फ यह सोचकर अच्छा नहीं कर सकते कि एशियन गेम्स में मेडल जीतना है। जितना समय है उसमें यही कोशिश है कि खुद को कैसे बेहतर कर सकते हैं। हमारी टीम का खेल कैसे बेहतर हो सकता है। लक्ष्य तो यही है कि हमें स्वर्ण पदक जीतना है, तभी हम ओलंपिक के लिए सीधे क्वालिफाई कर पाएंगे। हालांकि, हम मैच दर मैच अपनी रणनीति बनाते हैं और तैयारी करते हैं। यही चीज हमारे लिए काम करती है। इस टूर्नामेंट में भी पहले लीग मैच फिर सेमीफाइनल और फिर फाइनल के बारे में सोच रहे थे। अगर आप अंतिम नतीजे के बारे में सोचते हैं तो दबाव आता है कि मीडिया में लोग क्या बोलेंगे और बाकी लोग क्या कहेंगे, फैंस क्या बोलेंगे। हमने पहले दबाव की वजह से चीजें खराब की हैं, इसलिए अब इस तरह से नहीं सोचते हैं। हमारी टीम में अच्छी चीज यही रही है कि जूनियर और सीनियर सभी अपना 100 फीसदी देना चाहते हैं। नतीजा क्या होगा, इस बारे में कोई नहीं सोचता है। यह पछतावा नहीं होना चाहिए कि काश मैं ऐसा कर लेती। जो भी नतीजा होगा, अच्छा ही होगा, क्योंकि जब तैयारी अच्छी होती है तो नतीजे अच्छे ही होते हैं।

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