इटावा के जिला क्रीड़ाधिकारी नरेश चंद यादव फंसे नहीं फंसाए गए

इस मामले के तार खेल निदेशालय लखनऊ से जुड़े

लखनऊ में बैठे अधिकारी को पांच लाख के गबन का जिन्न बाहर निकलने का डर

श्रीप्रकाश शुक्ला

इटावा। जिला क्रीड़ाधिकारी इटावा नरेश चंद यादव पर लगे यौन उत्पीड़न के मामले में षड्यंत्र की बू आ रही है। इस षड्यंत्र के तार खेल निदेशालय से जुड़े होने से भी इंकार नहीं किया जा सकता। आज के समय में किसी की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने का महिलाएं सबसे बड़ा हथियार हैं। सत्यपाल सिंह पुलिस अधीक्षक जनपद इटावा का तीन अप्रैल, 2022 का पत्र इटावा के क्रीड़ाधिकारी यादव को जहां क्लीनचिट देता प्रतीत होता है वहीं तीन माह बाद यौन उत्पीड़न का जिन्न बाहर निकलना, कई सवालों को जन्म दे रहा है।

इस मामले में खेलप्रेमियों को जैसा लग रहा है वैसा कतई नहीं है। यह मामला पिछले माह दिवंगत हुए मेजर ध्यानचंद स्पोर्ट्स कॉलेज सैफई के प्रभारी प्राचार्य सुमन कुमार लहरी से जुड़ा प्रतीत हो रहा है। इस मामले में कराटे प्रशिक्षक रेनू गुप्ता की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। दरअसल, नरेश चंद यादव के मामले में प्रशिक्षक रेनू गुप्ता को खेल निदेशालय लखनऊ ने तो रेनू गुप्ता ने दोनों नाबालिग छात्राओं को अपना मोहरा बनाया है।

इस मामले की पटकथा क्यों और किसलिए लिखी गई यह भी बहुत ही दिलचस्प है। दरअसल, जिला क्रीड़ाधिकारी नरेश चंद यादव की इटावा में नियुक्ति के बाद उन्होंने जिले में लगभग पांच लाख रुपये की हेराफेरी या यूं कहें सरकारी धन के गबन का मामला पकड़ा था। शासकीय धन की हेराफेरी में दिवंगत सुमन कुमार लहरी दोषी पाए गए थे। पांच लाख रुपये की इस हेराफेरी की जांच स्थानीय लेखा परीक्षा द्वारा की जा रही थी। लहरी की मृत्यु के बाद जांच तो बंद हो गई लेकिन खेल निदेशालय में बैठे अधिकारी को यह डर खाए जा रहा था कि कहीं नरेश चंद यादव मेजर ध्यानचंद स्पोर्ट्स कॉलेज सैफई का प्राचार्य न बन जाए।

भयाकांत खेलनहार को अंदेशा था कि नरेश चंद यादव यदि सैफई कॉलेज का प्राचार्य बना तो गबन का जिन्न फिर से बाहर निकल आएगा। खैर, खेल मंत्री गिरीश चंद यादव की सूझबूझ से मेजर ध्यानचंद स्पोर्ट्स कॉलेज सैफई का प्रभारी प्राचार्य अलीगढ़ की रीजनल स्पोर्ट्स आफीसर रानी प्रकाश को बना दिया गया। खेल निदेशालय का भयाकांत अधिकारी किसी भी सूरत में नहीं चाहता कि नरेश चंद यादव इटावा के जिला क्रीड़ाधिकारी रहें। प्रथम दृष्टया नरेश चंद यादव खेल निदेशालय की षड्यंत्र का ही शिकार हुए हैं।

तीन माह पहले जब एक जवाबदेह पुलिस आफीसर ने अपने पत्र के माध्यम से जिला क्रीड़ाधिकारी नरेश चंद यादव पर किसी भी गम्भीर प्रकृति का आरोप परिलक्षित नहीं होना बता दिया था तो ऐसी क्या वजह हुई कि मामले को फिर से तूल दिया गया है। इस मामले में कराटे प्रशिक्षक रेनू गुप्ता सीधे तौर पर बेशक संलिप्त न हों लेकिन अपरोक्ष रूप में उनकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। बाल संरक्षण आयोग में शिकायत किया जाना भी सोची-समझी चाल है। जो भी हो यदि जिला क्रीड़ाधिकारी नरेश चंद यादव वाकई निर्दोष हैं तो उनका बाल बांका भी नहीं होने वाला क्योंकि भगवान के यहां देर है, अंधेर कतई नहीं।  

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