मां ने पहुंचाया अर्शदीप को अर्श पर

खुद साइकिल पर बैठाकर 13 किलोमीटर ले जाती थीं
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
हर बच्चे की सफलता में उसके माता-पिता की मेहनत और त्याग समाहित होता है। तेज गेंदबाज अर्शदीप की सफलता में उनकी मां का सबसे बड़ा योगदान है। वह उसे साइकिल पर बिठाकर 13 किलोमीटर ले जाती थीं तथा जब तक वह प्रशिक्षण करता तब तक वहीं बैठी रहती थीं। हम कह सकते हैं कि अर्शदीप को फर्श से अर्श तक उनकी मां ने ही पहुंचाया है।
भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच 9 जून से टी-20 सीरीज का आगाज होने वाला है। इस सीरीज के लिए पंजाब के तेज गेंदबाज अर्शदीप सिंह का भी चयन हुआ है। अर्शदीप टीम में एकमात्र बाएं हाथ के पेसर हैं। नवंबर में टी-20 वर्ल्ड कप होने वाला है। ऐसे में उन पर सभी की नजरें हैं। 
सवाल- आपको भारतीय टीम में चयन के लिए बहुत-बहुत बधाई, आपने क्रिकेट की शुरुआत कैसे की और आप क्रिकेट के अलावा और खेलों में क्यों नहीं गए?
जवाब- जब मैं छोटा था तो हमारे आसपास क्रिकेट का ही माहौल था। मेरा भी इस खेल के प्रति रुझान हुआ। जब घर वालों ने देखा तो उन्होंने मुझे एकेडमी में भेजा और वहीं से मेरी यात्री की शुरुआत हुई।
सवाल- आपके पापा सीआईएसएफ में थे और जैसा आपके कोच ने बताया कि उनका एक शहर से दूसरे शहर ट्रांसफर होता रहता था। ऐसे में आप भी उनके साथ शहर बदलते थे या फिर आपने सारी ट्रेनिंग पंजाब में ही रहकर की?
जवाब- मेरी मां का इसमें सबसे ज्यादा सपोर्ट मिला। वो मुझे साइकिल पर बैठाकर प्रैक्टिस के लिए ले जाया करती थीं। सुबह उठकर वो पहले सभी के लिए खाना बनातीं फिर चंडीगढ़ से 13 किलोमीटर दूर मुझे ले जातीं। जब तक मैं प्रैक्टिस करता वो वहीं बैठी रहती थीं और शाम को मुझे लेकर वापस आती थीं। 4 साल तक वो लगातार ऐसा करती रहीं।
सवाल- जैसा कि आपने बताया कि आपके पापा सीआईएसएफ में हैं और उन्हें समय नहीं मिलता था, तो वो सब कैसे मैनेज करते थे?
जवाब- मेरे पापा ने मुझे हर समय सपोर्ट किया है। वह हर समय मेरे पास तो नहीं रह पाते थे, लेकिन उनको जितना भी समय मिलता वो सिर्फ मेरे गेम पर ध्यान देते। अंडर-19 तक मेरा कुछ नहीं हो पाया था तो पापा चाहते थे कि इसको कनाडा भेज दें। मैंने उनसे एक साल मांगा और उन्होंने मुझे मौका दिया फिर सब आपके सामने है।
सवाल- दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ सीरीज में आप खुद को किस रोल में देख रहे हैं?
जवाब- दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ सीरीज में अगर मुझे मौका मिलता है तो मैं अपना 100% दूंगा। अपना सब कुछ लगा दूंगा। मैं यहां तक पहुंचा हूं। इसका सारा श्रेय भगवान, मेरे कोच और माता-पिता को जाता है।

रिलेटेड पोस्ट्स