प्रगाननंदा ऐसे बने करिश्माई शातिर

बहन वैशाली भी लाजवाब शतरंज खिलाड़ी
पोलियोग्रस्त पिता ने इस सफलता का श्रेय पत्नी को दिया
खेलपथ संवाद 
नई दिल्ली।
दुनिया के नम्बर एक शतरंज खिलाड़ी मैग्नस कार्लसन को हराकर भारत के युवा ग्रैंडमास्टर प्रगाननंदा ने इतिहास रच दिया। प्रगाननंदा की बहन वैशाली ने शौक से शतरंज खेलना शुरू किया, लेकिन भाई ने उसे अपने जीवन का हिस्सा ही बना लिया। जब उसके उम्र में छोटे बच्चे खिलौने के प्रति आकर्षित होते, उसने तब तक खेल की सारी बारीकियां समझ ली थीं। 
रविवार को प्रगाननंदा ने विश्व नंबर एक शतरंज खिलाड़ी मैग्नस कार्लसन को जब 39 चाल में मात दी तो वह ऐसा करने वाले तीसरे खिलाड़ी बन गए। उनसे पहले विश्वनाथन आनंद और पी. हरिकृष्णा नॉर्वे के सुपरस्टॉर को हरा चुके हैं। प्रगनाननंदा की यह यात्रा तब शुरू हुई, जब अधिकांश बच्चे के जीवन में कोई उद्देश्य नहीं होता। 
पोलियोग्रस्त बैंक कर्मचारी रमेश बाबू कहते हैं, जब मैं और मेरी पत्नी नागालक्ष्मी ने देखा कि बेटी वैशाली दिनभर टीवी देखती रहती है तो उसकी यह आदत छुड़ाने के लिए उसे शतरंज से परिचित कराया। लेकिन हम नहीं जानते थे कि यह खेल प्रगा को प्रेरित करेगा। बेटी के शौक की वजह से प्रगा में खेल के प्रति दिलचस्पी बनी और परिणाम आपके सामने है। मुझे खुशी है कि मेरे दोनों बच्चो को यह खेल पसंद आया और उसमें आगे बढ़ने का फैसला किया। साथ ही वे इस खेल का लुत्फ भी उठा रहे हैं। 
पिता ने प्रगा की मां को दिया उपलब्धियों का श्रेय
रमेश बाबू कहते हैं, इन सब उपलब्धियों का श्रेय मेरी पत्नी को जाता है। वही उनके साथ टूर्नामेंट में जाती हैं और उनकी पढ़ाई से लेकर खेल तक सारी चीजें व्यवस्थित करती हैं। इस बारे में 19 वर्षीय महिला ग्रैंडमास्टर वैशाली कहती हैं, मुझे याद है कि मैं जब 6 साल की थी तब बहुत कार्टून देखती। इस आदत को छुड़ाने के लिए मेरे माता-पिता ने शतरंज और ड्रॉइंग क्लास में भेजना शुरू किया। धीरे-धीरे खेल में मजा आने लगा और प्रगा भी रुचि लेने लगा। प्रगा के कोच आर.बी. रमेश कहते हैं, जब कोविड के कारण सभी टूर्नामेंट पर रोक लगी तब एक लम्बे अंतराल के कारण प्रगा का विश्वास प्रभावित हुआ, लेकिन कार्लसन पर जीत के बाद यकीनन उसके आत्मविश्वास में बढ़ोत्री होगी। मुझे उसकी उपलब्धि पर गर्व है।

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