मध्य प्रदेश में आरोपी प्रशिक्षक को विश्वामित्र बनाने की तैयारी

....तो दो बेकसूर बच्चों का जीवन बर्बाद हो जाएगा

श्रीप्रकाश शुक्ला

ग्वालियर। मध्य प्रदेश खेल एवं युवा कल्याण विभाग के जबलपुर स्थित रानीताल खेल परिसर में संचालित तीरंदाजी एकेडमी में एक से बढ़कर एक धनुर्धर हैं। इस एकेडमी के मुख्य प्रशिक्षक और सलाहकार रिछपाल सिंह सलारिया रहने वाले तो जम्मू के हैं लेकिन मध्य प्रदेश का खेल एवं युवा कल्याण विभाग उनकी सेवाओं के प्रतिफल के रूप में उन्हें विश्वामित्र अवॉर्ड प्रदान करने जा रहा है। इस विश्वामित्र का जीवन रहस्यों से भरा है तथा इस पर कई तरह के आरोप भी हैं। इस बात की जानकारी विभाग को है बावजूद उसे क्यों उपकृत किया जा रहा है, यह समझ से परे है।

एक प्रशिक्षक के रूप में रिछपाल सिंह अपने काम के प्रति बेशक प्रतिबद्ध हो लेकिन एक पिता के रूप में वह अपने दायित्वों का सही निर्वहन नहीं कर रहा। पति-पत्नी के बीच चल रही अनबन से 17 साल के असाध्य बीमारी से ग्रस्त पुत्र और आठ साल की बेटी का जीवन नर्क बन गया है। इसी साल फरवरी में रानीताल में जो नंगनाच हुआ था, उस मामले में इस विश्वामित्र का मामला पहले पुलिस फिर अदालत तक जा पहुंचा। विभाग की उदासीनता और पैसे की दम पर तीरंदाजी प्रशिक्षक रिछपाल सिंह लगातार अदालत को गुमराह कर रहा है।

देखा जाए तो पति-पत्नी के बीच आरोपों-प्रत्यारोपों की लम्बी फेहरिस्त है। कुछ मामले जम्मू की अदालत तो कुछ मामले जबलपुर में चल रहे हैं लेकिन मध्य प्रदेश खेल एवं युवा कल्याण विभाग ने कभी सच्चाई की तह तक जाने की कोशिश नहीं की। पति-पत्नी के बीच की अनबन दो खेल संचालकों को भी पता थी लेकिन किसी ने भी इस मामले का निदान करने की कोशिश नहीं की। इस मामले के निराकरण के लिए केन्द्रीय मंत्री और भारतीय तीरंदाजी संघ के अध्यक्ष अर्जुन मुंडा ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी पत्र लिखा था लेकिन एक परिवार को बचाने में सरकार की तरफ से कोई कोशिश नहीं की गई। अलबत्ता प्रशिक्षक रिछपाल सलारिया को क्लीन चिट दे दी गई।

सरकार इस विश्वामित्र पर प्रतिमाह डेढ़ लाख रुपया खर्च कर रही है तो इसे भारतीय सेना से भी लगभग 20 हजार रुपये पेंशन के रूप में मिल रहे हैं। जम्मू की अदालत ने रिछपाल सिंह को पत्नी-बच्चों के गुजारा भत्ता के लिए प्रतिमाह 10 हजार रुपये देने के आदेश दिए थे लेकिन वह इस मामले में संजीदगी दिखाने की बजाय मनमानी करते हुए अदालत को गुमराह कर रहा है।

एक प्रशिक्षक का दायित्व सिर्फ खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देना ही नहीं बल्कि सामाजिक सरोकारों में भी एक नजीर पेश करना होना चाहिए, जोकि रिछपाल कतई नहीं कर रहे। माना कि यह मामला पति-पत्नी के बीच का है लेकिन इससे चूंकि मध्य प्रदेश शर्मसार हो रहा है लिहाजा खेल एवं युवा कल्याण विभाग की आंखें खुलनी चाहिए। बेहतर होगा पति-पत्नी को बैठाकर उनके गिले-शिकवे दूर किए जाएं ताकि दो बेकसूर बच्चों का जीवन बर्बाद होने से बच सके। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से उम्मीद है कि वह इस मामले पर जरूर संज्ञान लेंगे और रिछपाल सिंह सलारिया जब तक उन पर लगे आरोपों से पाक-साफ नहीं हो जाते तब तक उन्हें विश्वामित्र अवॉर्ड नहीं देना चाहिए।       

 

 

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