जब भी रिंग में उतरती हूं, मां के सपने को जीना चाहती हूं : सिमरनजीत कौर बाथ

नई दिल्ली। बैंकॉक में हुए एशियाई चैंपियनशिप में रजत पदक जीत चुकीं भारत की स्टार मुक्केबाज सिमरनजीत कौर बाथ ने अपनी अबतक की सफलता और पदक जीतने का श्रेय अपनी मां राजपाल कौर को दिया है। सिमरनजीत ने कहा है कि वह मां के सपने को पूरा करने के लिए आगे भी पदक जीतना जारी रखेंगी।सिमरनजीत को बैंकॉक में आयोजित हुए एशियाई मुक्केबाजी चैंपियनशिप के फाइनल में 64 किग्रा भारवर्ग में मौजूदा विश्व चैंपियन चीन की डौ डेन से हारकर रजत पदक से संतोष करना पड़ा।
सिमरनजीत ने कहा, "मैंने 2010 में मुक्केबाजी शुरू की थी। उसके बाद से यहां तक का सफर काफी अच्छा रहा है। यहां तक पहुंचने के लिए मेरी मां ने मेरा काफी सपोर्ट किया है। उन्होंने शुरू से ही मेरी काफी मदद की है। मैं कहीं भी खेलती हूं, वह मुझे सपोर्ट करने के लिए पहुंच जाती हैं।" पंजाब के पटियाला जिले की रहने वाली सिमरनजीत ने कहा, "शुरू में मेरे पापा मुझे मुक्केबाजी में नहीं भेजना चाहते थे। लेकिन मेरी मां ने उनसे काफी लड़-झगड़कर मुझे इस खेल में भेजा और फिर जब मैंने इसमें पदक जीतना शुरू कर दिया तो मेरे पापा भी मेरा सपोर्ट करने लगे।" 
सिमरनजीत 2010 से ही मुक्केबाजी में भाग लेती आ रही हैं। उन्होंने 2018 विश्व चैम्पियनशिप में भी कांस्य पदक जीता था। उन्होंने कहा, "जब मैं सीनियर कैम्प में आई थी तो इसमें ज्यादातर हरियाणा की मुक्केबाज थीं। कैम्प के दौरान मैंने अपने सीनियरों से काफी पंच भी खाए थे। तभी मैंने सोच लिया था, इनकी पंच से बचने और आगे बढ़ने के लिए मेहनत करना ही होगा और फिर इसी सोच के साथ आगे बढ़ती गई।"पंजाब में मुक्केबाजी के माहौल को लेकर उन्होंने कहा कि उनके राज्य में मुक्केबाजी का माहौल बहुत अच्छा है, लेकिन उनका मानना है कि अगर संरचना बेहतर हो तो पंजाब के मुक्केबाज शीर्ष स्तर पर बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं, क्योंकि वे प्रतिभा सम्पन्न हैं।सिमरनजीत ने कहा, "माहौल तो है, लेकिन उतना नहीं है जितना अन्य खेलों का है। ज्यादातर लोग सिर्फ कबड्डी पर ही ध्यान देते हैं। मुझे लगता है कि हरियाणा से ज्यादा प्रतिभाएं पंजाब में हैं, लेकिन उन्हें कोई सपोर्ट करने वाला नहीं है। पंजाब की मुक्केबाजी संस्था अच्छी है और बहुत ज्यादा सपोर्ट करती है। लेकिन सरकार की तरफ से उतना समर्थन नहीं मिल रहा है, जितना मिलना चाहिए।"

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