धोनी की तरह बनना चाहती है दर्जी की बेटी रूबिया

भारतीय टीम में प्रवेश करना है एकमात्र लक्ष्य
श्रीप्रकाश शुक्ला
धोनी की तरह धुनाई करना चाहती हैं कश्मीरी महिला क्रिकेटर रूबिया। रूहिया महेंद्र सिंह धोनी की फ़ैन हैं और उन्हीं की तरह छक्के लगाना चाहती हैं। धोनी का चिर-परिचित हेलीकॉप्टर शॉट उनका पसंदीदा शॉट है। रूबिया सईद भारत-प्रशासित कश्मीर के ज़िला अनंतनाग के बदसगाम गांव की रहने वाली हैं। पिछले साल रूबिया ने बीसीसीआई की ओर से आयोजित राष्ट्रीय ज़ोन टूर्नामेंट में हिस्सा भी लिया था। मुंबई में खेले गए इस टूर्नामेंट में उत्तर भारत से रूबिया सईद को खेलने के लिए चुना गया था। रूबिया कश्मीर की महिला अंडर -23 टीम की कप्तान भी हैं। वह भारतीय टीम का हिस्सा बनकर कुछ बेहतरीन करना चाहती हैं।
रूबिया ने क्रिकेट खेलने की शुरुआत अपने गांव के लड़कों के साथ की थी। रूबिया बताती हैं कि “मैं तब बहुत छोटी थी आठ या नौ साल की। मैं हर समय क्रिकेट खेलने के जुनून में रहती थी। हमारे गांव में लड़के खेलते थे तो मैं भी उनके साथ जाती और खेलती थी। लड़कों की टीम जब एक गांव से दूसरे गांव में खेलने जाती तो मुझे भी साथ ले जाती थी। इस वजह से मुझमें एक भरोसा पैदा हुआ कि मैं कुछ बेहतर कर सकती हूँ। फिर आहिस्ता-आहिस्ता मैंने स्कूल स्तर पर खेलना शुरू किया। 2011 में मुझे पहली बार रांची में खेलने का मौका मिला.”
लड़कों के साथ क्रिकेट खेलने पर रूबिया ने कहा, “मुझे कभी इस बात का अहसास नहीं होता है कि मैं लड़कों के साथ खेलती हूँ।” वह बताती हैं, “हर जगह दो किस्म के लोग होते हैं। कोई आपका हौसला बढ़ाता है तो कोई तोड़ता है। लेकिन मेरे गांव में मुझे हमेशा प्यार मिला। कभी मैंने ये नहीं सोचा कि कौन क्या कह रहा है।” यहाँ तक आने का रास्ता रूबिया के लिए इतना आसान भी नहीं रहा है। रूबिया के पिता एक दर्ज़ी हैं। उन्हें हर समय पैसों की मुश्किल का सामना करना पड़ा। रूबिया कहती हैं, “एक बार हमारे सर ने हमें फ़ोन करके श्रीनगर बुलाया। वहां रांची में होने वाले एक टूर्नामेंट के लिए सेलेक्शन होना था। हम तीन-चार दोस्त थे और हमारे पास कुल 30 रुपए थे। गाड़ी का किराया 40 रुपए था, हम फिर रेल में गए। मुझे अभी भी याद है कि हमने कई जगहों पर टिकट भी नहीं लिया।” रूबिया बल्लेबाज़ी और गेंदबाज़ी दोनों में ही बेहतरीन प्रदर्शन करने में सक्षम हैं।
रूबिया के साथ खेलने वाले उनके गांव के लड़के इस बात पर गर्व महसूस कर रहे हैं कि उनके गांव की लड़की राष्ट्रीय स्तर पर खेल रही है जो कभी उनके साथ टूटी-फूटी लकड़ी के बल्ले बनाकर खेलती थी। गांव के रहने वाले आरिफ शेख़ कहते हैं, “हम बहुत छोटे थे तब स्कूल से आते ही रूबिया लड़कों के साथ क्रिकेट खेलने लगती थी। कभी ऐसा नहीं लगा कि लड़की हमारे साथ खेल रही है। हमें बहुत अच्छा लगता था। आज जब वह आगे बढ़ गई है तो और भी खुशी होती है। जब भी रूबिया कहती थी कि हम क्रिकेट खेलेंगे तो हम कभी इंकार नहीं करते थे।” रूबिया घर पर बहुत ही कम बैठती थी। रूबिया के पिता 58 साल के गुलाम क़ादिर शेख़ बेटी के बचपन को याद करते हुए कहते हैं,
” रूबिया घर पर बहुत ही कम बैठती थी। जब देखो वह लकड़ी तोड़ती और उसका बल्ला बनाती। हम कभी-कभी ये समझाने की कोशिश करते थे कि ज्यादा घर से बाहर मत रहा करो, लेकिन वह अपनी दुनिया में गुम रहती थी। खेत पर काम करने ले जाते थे तो वह काम छोड़कर श्रीनगर क्रिकेट खेलने पहुंच जाती थी।”
गुलाम क़ादिर बताते हैं कि उनके पास इतना पैसा नहीं होता था कि वह अपनी बेटी की जरूरतों को पूरा कर सकें। रूबिया के गांव में आज भी क्रिकेट खेलने के लिए कोई ग्राउंड नहीं है। उसकी माँ हाजरा बेगम अपनी बेटी को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलते हुए देखना चाहती हैं। रूबिया के कोच एजाज़ अहमद का कहना है कि रूबिया तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए क्रिकेट खेलने श्रीनगर आती थी।
 
 
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