फुटबाल में झारखण्ड की प्रेरणा मोनिका

सिक्योरिटी गार्ड की बेटी ने किया कमाल
नई दिल्ली:
देश के दूरदराज इलाके की जिस लड़की के पास पढ़ने-लिखने तक के लिए पैसे न हों, अगर वह दुनिया की टॉप-7 में शामिल हो जाए तो आप क्या कहेंगे? 17 साल की फुटबॉलर मोनिका कुमारी ने तमाम कमियों के बावजूद यही उपलब्धि हासिल की है. झारखंड के छोटे से गांव हुटुप से निकलकर युवा स्कूल में जरूरतमंद लड़कियों को फुटबॉल सिखाने वाली मोनिका ने हाल में अमेरिकी शहर सिएटल में नई चुनौती का सामना किया। 
मोनिका अभी 12वीं की छात्रा हैं और इतनी छोटी उम्र में अपने साथियों के लिए किसी प्रेरणास्रोत से कम नहीं हैं। बच्चों को फुटबॉल सिखाने के अलावा वे अब भी विभिन्न टूर्नामेंट में खेलती हैं। मोनिका स्पेन में हुए गेस्टीज कप और भारत के प्रतिष्ठित सुब्रतो कप में भी खेल चुकी हैं। मोनिका के पिता सिक्योरिटी गार्ड हैं। 
मोनिका 2017 में उस ग्रुप का भी हिस्सा थीं, जिसे स्पेन के बेहतरीन क्लबों में से एक रियल सोसियादाद की एकेडमी में फुटबॉल की ट्रेनिंग दी गई, लेकिन इस बार उन्होंने एक नई चुनौती का सामना किया। मोनिका को इस बार 'बुक माई शो' के चैरिटी इनिशिएटिव 'बुक ए स्माइल' द्वारा 'गर्ल्स ऑन आइस कैसकेड प्रोग्राम' का हिस्सा बनाया गया। इसके तहत उन्हें वॉशिंगटन के सिएटल में स्थित पहाड़ 'माउंट बेकर' पर दो सप्ताह तक हाइकिंग के लिए ले जाया गया। उनके अलावा, दुनिया भर से सात अन्य लड़कियां भी इस कार्यक्रम का हिस्सा थीं। 
अपने इस विशेष अनुभव के बारे में बात करते हुए मोनिका ने कहा, ‘मेरा इस बार का अनुभव बेहतरीन रहा। यह पहला मौका था जब मैं देश के बाहर अकेले जा रही थी। मेरा कोई साथी नहीं था। हर लड़की दूसरे देश की थी, जिसके कारण मुझे शुरुआत में बहुत डर लगा, लेकिन धीरे-धीरे मैं वहां के माहौल में ढल गई।’
मोनिका ने कहा, ‘मेरे लिए यह अनुभव बिल्कुल अलग और मुश्किल रहा। मैंने इससे पहले कभी पहाड़ पर इतनी ऊंचाई पर हाइकिंग नहीं की थी। हमें माउंट बेकर के ग्लेसियर्स से जूझते हुए सुबह नौ बजे से शाम सात बजे तक चढ़ाई करनी पड़ी। पहाड़ पर चढ़ने के पहले हमें थोड़ी-बहुत ट्रेनिंग भी दी गई। हमें सेल्फ डिफेंस भी सिखाया गया कि अगर ऊपर चढ़ रहे हो तो कैसे खुद को गिरने से रोकना है। यह प्रोग्राम आठ दिन का था जिसमें हमें बहुत मेहनत करनी पड़ी। मैं एक खिलाड़ी हूं फिर भी मुझे यह बहुत चुनौतीपूर्ण लगा हालांकि, मजा भी बहुत आया।’
एक छोटे से गांव में लड़कियों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। खासकर तब जब उसका सपना फुटबॉल जैसे खेल को खेलने का हो। फुटबॉल पर बात करते हुए मोनिका ने कहा, ‘मैंने 2013 में पांचवीं कक्षा में फुटबॉल खेलना शुरू किया था। मुझे यह खेल बहुत पसंद है हालांकि, गांव में फुटबॉल खेलने के लिए मुझे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। गांव में खेलते समय कई लोगों ने कहा कि यह लड़की है और इसे शॉर्ट्स पहनकर नहीं खेलना चाहिए, लेकिन मैंने हार नहीं मानी।’ मोनिका ने कहा, ‘मैं बच्चों को सिखाती हूं और खेलती भी हूं। मुझे इससे पैसे भी मिलते हैं, जिससे मेरा घर भी चलता है। मुझे स्कूल में पढ़ने के लिए भी पैसा चाहिए था और फुटबॉल ने मुझे पैसा भी दिया। मुझे फुटबॉल से जो रुपए मिलते हैं उससे मैं अपनी पढ़ाई को भी आगे बढ़ा रही हूं। मैं कभी हार नहीं मानूंगी।’

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