रूढ़ियों को तोड़ती खेलों में आगे बढ़ी काजल बेटी

तमाम बाधाओं को पीछे छोड़ते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय का गौरव बढ़ाया
लखनऊ यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में किसान की बेटी को मिलेगा स्पोर्ट्स गोल्ड मेडल
हापुड़ के किसान की बेटी है काजल शर्मा, 10 साल की उम्र से कर रही दौड़ की तैयारी
खेलपथ संवाद
हापुड़।
कुछ कर गुजरने की चाहत हो तो कोई भी लक्ष्य मुश्किल नहीं होता। लक्ष्य पाने के लिए परिश्रम करना पड़ता है। अगर आप परिश्रम की कठिनाई को देखने बैठेंगे तो सफलता संभव नहीं है। लेकिन, आप और आपके परिश्रम के बीच समाज की रूढ़िवादिता आ जाए तो फिर मुश्किलें अधिक बढ़ती हैं। काजल ने जब ट्रैक पर अपने कदम बढ़ाए तो बेड़ियां कदमों में जकड़ी। लेकिन, लड़की को कहां इसकी परवाह थी। लक्ष्य को मन में लिए मेहनत करती रही। आज उसकी सफलता को हर कोई सलाम कर रहा है।
ट्रैक पर दौड़ती स्टिपलचेस गर्ल काजल उन उपहासों को करारा जवाब दे रही थी, जिसने उसके कदमों को जकड़ने का प्रयास किया। उन रूढ़िवादिता को तोड़ने का प्रयास किया, जिसने उसे ट्रैक पर उतरने से रोकने की कोशिश की। स्टिपलचेस में बाधाएं दौड़ का हिस्सा होती हैं। उन्हें पार करने वाला ही विजेता होता है। काजल ने इसे अपनी जिंदगी में उतारा और जीत गई।
हापुड़ की काजल शर्मा को लखनऊ यूनिवर्सिटी के 21 जनवरी को होने वाले दीक्षांत समारोह में पिरी मेमोरियल गोल्ड मेडल से सम्मानित किया जाएगा। विश्वविद्यालय के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी को इस सम्मान से सम्मानित किया जाता है। काजल ने खेलो इंडिया 2022, क्रॉस कंट्री नेशनल 2020 एवं 2021 और 3 किलोमीटर की स्टिपलचेस प्रतियोगिताओं में विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया। अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। स्टिपलचेस प्रतियोगिताओं में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के जरिए उसने विश्वविद्यालय का नाम रोशन किया। अब उसे विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से सम्मानित किया जा रहा है।
काजल शर्मा हापुड़ जिले के कंडोला गांव के एक छोटे किसान की बेटी है। उसके गांव में स्कूल नहीं था। सड़क और बिजली का अभाव था। लेकिन, मन में जुनून था, कुछ कर गुजरने का। पिता ने साथ दिया। जब काजल 10 साल की थी, तो पिता देवेंद्र शर्मा ने उन्हें प्रशिक्षित करना शुरू कर दिया था। लेकिन, पिता और बेटी को समाज के तानों को सहना पड़ा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले में रूढ़ियों को तोड़ना उनके लिए चुनौती थी। काजल कहती हैं कि हमारे पिता ने कभी हमारा साथ नहीं छोड़ा। उन्हें अपने रिश्तेदारों, दोस्तों और गांव के लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा। लोग कहते थे कि बेटी लड़कों के साथ दौड़ रही होगी और बाप यहां बैठा हुआ है। उनके किसान होने और बेकार बैठने को लेकर ताने मारते थे। पिता ने परवाह नहीं की। बेटी को आगे बढ़ाया।
काजल कहती हैं कि मैं सुबह 4 बजे जग जाती थी। हर रोज 3 घंटे सुबह 7 बजे तक दौड़ती थी। काजल ने बताया कि कई मौकों पर जब मैं अंधेरे में अभ्यास करती थी तो कुत्ते मेरा पीछा करते थे। सुबह 8 बजे वह एक सरकारी स्कूल में पढ़ने के लिए 4 किलोमीटर साइकिल चलाकर दूसरे गांव जाती थी। वहां उसकी मुलाकात प्रशांत से हुई। उसने काजल को बताया कि केडी सिंह बाबू स्टेडियम लखनऊ की ओर से हॉस्टल के लिए ट्रायल चल रहा है। सेलेक्शन होने की स्थित में पढ़ाई और प्रशिक्षण मिलने की बात कही गई। ट्रायल में काजल पहुंची और स्टीपलचेज की पहली बाधा को यहां पार करने में सफल रही। करीब 15 साल की उम्र में उसका सेलेक्शन हो गया। वह दो साल तक हॉस्टल में रही।
नेशनल लेवल पर एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं में भाग लेने से पहले उसने अपनी स्कूली पढ़ाई को पूरा किया। इसके बाद वर्ष 2020 की प्रतियोगिता में उसने गोल्ड मेडल जीता। इस आधार पर उसका लखनऊ यूनिवर्सिटी में एडमिशन हुआ। पिता के बाद प्रशांत ने उसके करियर को आकार दिया। उसने अपना करियर छोड़ा और काजल का करियर बनाने पर पूरा फोकस किया। प्रशांत के प्रोत्साहन ने उसे आगे बढ़ने का प्रेरित किया। काजल अब प्रशांत की मंगेतर है। वह कहती हैं कि मैं यह पदक अपने पिता और मंगेतर प्रशांत को समर्पित करती हूं। काजल अपने भविष्य की योजनाओं को बताती हैं। वे कहती हैं कि मेरा अगला लक्ष्य एशियाई खेलों और राष्ट्रमंडल खेलों में बेहतर प्रदर्शन करने का है।

 

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