गरीबी भी नहीं रोक पाई करण की राह

मिट्टी के दीये बेच परिवार पाल रहा करण
प्रोफेशनल फुटबाल खिलाड़ी बनना चाहता है करण
खेलपथ संवाद
जालंधर।
जिस उम्र में युवा अपने सपनों को जीने और उन्हें पूरा करने में जुटते हैं, उस आयु में करण को परिवार के पालन-पोषण की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी। महज 11 वर्ष की आयु से दीये बेच कर परिवार चला रहे करण ने मजबूरी के चलते अपने सपने को भी छोड़ दिया, लेकिन संघर्ष की सीढ़ी चढ़ते-चढ़ते वह उस मुकाम पर आ पहुंचा कि अब 19 साल की उम्र में उसका सपना पूरा होने जा रहा है। 
जालंधर के गांव रुड़कां कलां का करण कतर के दोहा में होने जा रहे फीफा स्ट्रीट चाइल्ड फुटबाल विश्व कप में भारतीय टीम में खेलेगा। करण ने कड़ी मेहनत के बाद भारतीय टीम में जगह बनाई है। उसने छठी कक्षा से स्कूल स्तर पर खेलना शुरू किया था। अभी रुड़कां कलां के सरकारी स्कूल में बारहवीं में पढ़ने वाले करण के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। पिता मिस्त्री का काम करते थे, लेकिन काम करते-करते ब्रेन स्ट्रोक हो गया। परिवार का खर्च चलाने के लिए करण ने पढ़ाई के साथ-साथ दीये बनाने का काम शुरू किया। घर की जिम्मेदारी के साथ बड़ी बहन प्रदीप कुमारी की जिम्मेदारी भी सिर पर आ गई।
बहन प्रदीप कुमारी कहती हैं, 'करण हमेशा से ही बढ़ा होकर फुटबाल खिलाड़ी बनना चाहता था। आर्थिक साधन न होने के कारण उसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। अच्छी डाइट व जूतों का हमेशा अभाव रहा। पिता के बीमार होने के बाद उसका फुटबाल खेलना भी छूट गया। मुझे यह बात बहुत कचोटती थी कि उसका सपना पीछे छूट रहा है। स्नातक की पढ़ाई पूरी होने के बाद मैंने रुड़कां कलां में नौकरी शुरू कर दी। दसवीं कक्षा तक पहुंचने पर मैंने और मां ने उसे दोबारा फुटबाल खेलने के लिए कहा।'
करण की मां कर्मजीत कौर गृहिणी हैं। उन्होंने बताया कि हमारे गांव में के यूथ फुटबाल क्लब (वाईएफसी) का बड़ा नाम है। यहां से कई खिलाड़ी निकले हैं। हमने क्लब के संचालक व पूर्व फुटबाल गुरमंगल दास से बात की। वह करण को कोचिंग देने के लिए तैयार हो गए। 
हमें पता चला कि वहां तीन समय का खाना मिलता है। पढ़ाई का खर्च भी क्लब ही उठाता है। हमने करण को यहां भेजना शुरू कर दिया। फुटबाल उसका जुनून है। प्रशिक्षण के साथ घर चलाने के लिए उसने दीये बनाकर बेचने का काम जारी रखा। वहीं, क्लब के संचालक गुरमंगल दास ने बताया कि करण के खेल ने मुझे खासा प्रभावित किया। कोचिंग से उसके खेल में और निखार आया। बहुत खुशी की बात है कि वह स्ट्रीट चाइल्ड फुटबाल विश्व कप के लिए भारतीय टीम से खेलेगा। मुझे पूरी उम्मीद है कि वह बेहतर प्रदर्शन करेगा।
करण का कहना है कि भारतीय टीम का हिस्सा बनकर गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। जिंदगी में मुश्किलें तो आती हैं, लेकिन उसका सामना करना पड़ता है। मैं एक प्रोफेशनल फुटबाल खिलाड़ी बनना चाहता हूं। विश्व कप में हमारी टीम बढ़िया प्रदर्शन करेगी। जब आप लक्ष्य के नजदीक होते हैं, तो अच्छा लगता है।
गांव के छह खिलाड़ी टीम में, किसी के पिता कार मैकेनिक, तो किसी के पेंटर
भारतीय टीम में पंजाब से दस खिलाड़ियों का चयन हुआ है। इसमें से छह गांव रुड़का कलां के हैं। मानसा के खिलाड़ी जगदीप सिंह दस वर्ष से फुटबाल खेल रहे हैं। पिता हरभजन सिंह कार मैकेनिक है। मां अमरजीत सिंह गृहिणी हैं। ढैरेन गांव के गगनदीप गिल सात वर्ष से फुटबाल खेल रहे हैं। उनके पिता सतनाम सिंह पेंटर हैं। रूड़कां कलां के खिलाड़ी संजीव कालिया व अजनाला के मनप्रीत सिंह किसान परिवार से हैं। रुड़कां कलां के ही नवी सलहन के पिता विदेश में हैं। मां कुलविंदर कौर मजदूरी करती हैं। रुड़कां कलां के मोहित मेहमी के पिता बलदेव राज भी मजदूरी करते हैं। नवदीप सिंह के पिता कुलजीत सिंह सब्जी बेचते हैं, जबकि अमनदीप की माता सिमरन कौर पेंशन से घर चला रही हैं।
फुटबाल की नर्सरी है रुड़कां कलां
रुड़कां कलां को फुटबाल की नर्सरी कहा जाए, गलत नहीं होगा। यूथ फुटबाल क्लब के संचालक गुरमंगल दास बताते है कि वर्ष 1998 में क्लब का गठन हुआ। क्लब को पहचान फुटबालर अनवर अली ने दिलाई। अनवर अली को कोलकाता के मोहन बागान क्लब ने 95 लाख रुपये में अनुबंधित किया था। अभी यहां 60 से अधिक खिलाड़ी निशुल्क कोचिंग ले रहे हैं। 500 नए लड़के भी यहां निशुल्क प्रशिक्षण ले रहे हैं। क्लब का वार्षिक बजट पचास लाख रुपये से अधिक है। सरकार खिलाड़ियों को डाइट मनी व अन्य सुविधाएं उपलब्ध करवा रही है।

रिलेटेड पोस्ट्स