सोते समाज को जगातीं डॉ. निवेदिता ठाकुर
अच्छी एथलीट होने के बावजूद चुनी चिकित्सा सेवा की राह
सर्वसुविधायुक्त चिकित्सालय खोलकर करेंगी अपने पिता के सपने को साकार
श्रीप्रकाश शुक्ला
ग्वालियर। समय तेजी से बदल रहा है, हर क्षेत्र में बेटियां अपनी अदम्य इच्छाशक्ति और काबिलियत से न केवल आगे बढ़ रही हैं बल्कि नील गगन में उड़ान भी भर रही हैं। खेलपथ आज अपने पाठकों को एक ऐसी शख्सियत से रूबरू करा रहा है जिसने बचपन में सिर से पिता का साया उठ जाने के बावजूद हार नहीं मानी। आज वह एक सफल चिकित्सक होने के साथ-साथ अपनी भविष्य की योजनाओं को अंजाम देने को प्रतिपल प्रयास करते हुए आगे बढ़ रही हैं। समाज को जगाती ऐसी शख्सियत का नाम है डॉ. निवेदिता ठाकुर।
बेटियां हमारा गौरव हैं। घर की जान होती हैं बेटियां, यूं समझ लो कि बेमिसाल होती हैं बेटियां। असीम प्यार पाने की हकदार होती हैं बेटियां। इन शब्दों की महत्ता वही समझ सकता है जोकि बेटियों की तरक्की के लिए जीता हो। मूलतः हिमाचल प्रदेश की रहने वाली फॉर्मालाजिस्ट डॉ. निवेदिता ठाकुर के माता-पिता चिकित्सक रहे हैं। पिता का सपना था कि उनकी दोनों बेटियां चिकित्सा के क्षेत्र में एक नया मुकाम हासिल करें और उनसे भी आगे बढ़ें। इसे समय की विडम्बना कहेंगे कि वह बेटियों की कामयाबी देख पाते कि उससे पहले ही गोलोकवासी हो गए।
पति की मौत के बाद डॉ. निवेदिता ठाकुर की चिकित्सक मां टूट सी गईं। दुख की इस घड़ी में उन्हें ससुराल पक्ष से मदद की कौन कहे, उन्हें एक तरह से पारिवारिक सम्पत्ति से ही बेदखल कर दिया गया। कहते हैं कि मरते को तिनके का सहारा। ऐसे नाजुक समय में दिल्ली निवासी डॉ. निवेदिता ठाकुर की नानी ने अपनी बेटी तथा दोनों नातिनों के लिए जो किया, वह काबिलेतारीफ व समाज के लिए एक नजीर है। मेधावी निवेदिता की स्कूली शिक्षा कुल्लू मनाली तथा चिकित्सकीय शिक्षा शिमला में हुई। उस दौर में वह सिर्फ पढ़ाई ही नहीं खेलों में भी लाजवाब एथलीट थीं। निवेदिता स्कूली खेलों में 100, 200 व 400 मीटर दौड़ के साथ लम्बी तथा ऊंचीकूद में चैम्पियन एथलीट रहीं। समय ने करवट ली और वह अपने माता-पिता के सपने को साकार करने को प्राणपण से जुट गईं।
निवेदिता ने हाईस्कूल की परीक्षा जहां 91 फीसदी अंकों के साथ पास की वहीं इंटर में 80 प्रतिशत अंकों के साथ अपने स्कूल में पहली रैंक हासिल की। इंटर करने के बाद निवेदिता ठाकुर ने पीएमटी की परीक्षा 10वीं रैंक के साथ उत्तीर्ण कर कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ना शुरू कर दिया। इन्होंने 2004 में आईजीएमसी शिमला से एमबीबीएस की परीक्षा उत्तीर्ण की। उसके बाद 2015 से 2018 तक शिमला से ही एमडी किया। डॉ. निवेदिता ठाकुर आज एक सफल चिकित्सक हैं। फिलवक्त वह ब्रज मण्डल के ख्यातिनाम चिकित्सा-शिक्षा संस्थान कांती देवी मेडिकल कॉलेज-हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेण्टर में एसआर फॉर्मालॉजी के रूप में अपनी चिकित्सा सेवाएं दे रही हैं। इससे पूर्व यह 2004 से 2015 तक एमओ इन वॉरियर्स हॉस्पिटल, मैक्स हॉस्पिटल, कुल्लू वैली हॉस्पिटल, मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में भी सेवाएं दे चुकी हैं। इन्होंने 2009 से 2012 तक एनआईएमएस जयपुर में भी अपनी सेवाएं दीं। डॉ. निवेदिता ठाकुर की मां फिलवक्त अपनी छोटी बेटी के साथ गुरग्राम हरियाणा में रह रही हैं।
डॉ. निवेदिता ठाकुर खेलपथ से बेबाक बातचीत में कहती हैं कि प्रत्येक पैरेंट्स को अपने बच्चों की रुचि का ख्याल रखना चाहिए। यदि बच्चे की खेलों में रुचि है तो उसे उसी तरफ प्रेरित करें। बेटियों को लेकर इनका कहना है कि बेटियों को उनका पूरा हक मिले इसके लिए जरूरत है, सामाजिक सोच बदलने की। डॉ. निवेदिता ठाकुर कहती हैं कि जब बेटियां, बेटों की ही तरह माता-पिता का नाम रोशन कर रही हैं तो उनके जन्म पर हिचकिचाहट क्यों? बेटियों को कैसे आगे बढ़ने के मौके मिलेंगे, कौन उन्हें रोक रहा है, इन सब सवालों का एक ही जवाब है, हमारे समाज की संकुचित मानसिकता। बेटियों की सुरक्षा पर इनका कहना है कि जब तक बेटियां खुद की सुरक्षा के लिए तैयार नहीं होतीं, तब तक वे सुरक्षित नहीं हो सकतीं। कानून कितना ही जोर लगा ले, मगर मौके पर ही करारा जवाब देने के लिए बेटियों को ही तैयार रहना होगा। तभी अपराधों पर अंकुश लग पाएगा। ऐसे में बेटियां गलत कार्यों को सहन करने की बजाय उसका विरोध करें।
डॉ. निवेदिता ठाकुर कहती हैं कि जब तक पुरुष महिलाओं को बराबर का दर्जा नहीं देंगे तब तक यह समस्या रहेगी। बेटियों को बेटों के समान मानते हुए अभिभावकों को उनके साथ भी एक समान व्यवहार करना चाहिए। बेटियों को खूब पढ़ाएं और उन्हें जीवन में आगे बढ़ने का मौका दें क्योंकि आज के दौर में सभी दफ्तरों, सरकारी महकमों, खेलकूद प्रतिस्पर्धाओं में महिलाएं शिखर तक पहुंच रही हैं। डॉ. निवेदिता ठाकुर कहती हैं कि बेटियों को मजबूत बनाने की शुरुआत घर से ही करनी होगी। माता-पिता अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाएं। बेटियों को पहले मानसिक व शारीरिक रूप से मजबूत बनना होगा, तभी वे आज के माहौल में आगे बढ़ पाएंगी। अभिभावकों को इसके लिए प्रयास करने होंगे। हालांकि पहले से अब समाज में बेटियों के प्रति बदलाव आया है। आज ग्रामीण अंचल की लड़कियां भी शहर के कॉलेजों में पढ़ने आती हैं। समाज में यह बदलाव शिक्षा से ही हो पाया है।
मेरा मानना है कि सबसे ज्यादा जरूरत संस्कारों की होती है। लड़का हो या लड़की हर कोई संस्कार लेकर ही आगे बढ़ता है क्योंकि संस्कार कोई लेकर पैदा नहीं होता बल्कि उसे मिलने वाले माहौल पर निर्भर होता है। लड़की खुद आत्मनिर्भर हो तो वह ज्यादा सुरक्षित है, लेकिन लोगों को भी लड़कियों के प्रति अपनी मानसिकता को बदलना होगा। भ्रूण हत्या पर इनका कहना है कि बेटियों को बचाने के लिए समाज में जागरूकता जरूरी है। इसके लिए कई शासकीय और सामाजिक स्तर पर प्रयास हो रहे हैं, जिससे बदलाव नजर आने लगा है। मगर अभी भी बेहतर हालातों के लिए और प्रयास करने की जरूरत है। मैं समझती हूं कि सामाजिक बदलाव में महिलाओं की जिम्मेदारी सबसे अधिक है।