बुढ़ापे के लिए कुछ सोचा नहीं

श्रवण कुमार बाजपेयी

कानपुर, उत्तर प्रदेश

एक दिन कुछ बूढ़े लोग बैठे आपस में बातें कर रहे थे। सब अपनी अपनी बातें बता रहे थे। कुछ बहुत खुश थे। कुछ दुखी भी थे। प्रायः उस ग्रुप में वही लोग थे जो उम्र के 60 बसंत देख चुके थे। ये सारे सुबह इकट्ठे होते थे, हल्का-फुल्का योग करते थे। हंसी-मजाक करते थे। सब एक-दूसरे को छेड़ा करते थे। कभी-कभी छेड़ने की हद इतनी खतरनाक होती थी कि बातें दिलोदिमाग को झकझोर देती थीं।

इनमें एक मुन्नी लाल थे, जो बड़े ही कटु शब्दों में हर किसी को जलील कर देते थे, पर मैं उन लोगों के धैर्य और सम्मान को सलाम करता हूं जो इतना सब सुनके भी उफ़् तक नहीं करते थे। कुछ लोग ऐसे भी थे जो तुरंत जवाब दे देते थे। सच कहें तो मुन्नी लाल सबके कोच जैसे थे। योग भी वही कराते थे। शांत और सुशील इतने कि देखने वाले उनके कायल हो जाते थे। पर आदमी एक ऐसा प्राणी है जिसके अंदर अगर अच्छाई है तो बुराई भी जरूर होगी। उनके अंदर भी थी। वह उस बात को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे।

मैं भी नया-नया इस ग्रुप से जुड़ा था। पहले तो मुझे इन लोगों की बातें अजीब लगती थीं। पर अब अच्छी लगने लगी थीं। दरअसल, यह उम्र ऐसी होती है जहां आदमी न हंस पाता है और न ही रो पाता है। बापू भी इन्हीं लोगों में थे, जिनकी पत्नी का देहांत कुछ दिन पहले हुआ था। सब अपने-अपने बुढ़ापे में आय के स्रोतों की बात कर रहे रहे थे। किसी का भाड़ा आ रहा था। किसी के बच्चे उन्हें मनमाना पैसा दे रहे थे। किसी का कुछ व्यापार था। किसी के पास आटा चक्की थी तो किसी के पास दुकान। इनमें दो-चार लोग परेशान और हिम्मत से हारे भी थे। सहसा एक ने मुझसे पूछ लिया आपने बुढ़ापे के लिए क्या साधन संजो रखे हैं। क्या पेंशन आती है या कोई बिजनेस या अन्य कोई जीवकोपार्जन का साधन है।

इस प्रश्न ने मुझे बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया। दरअसल, मैंने आज तक बुढ़ापे के विषय में कुछ सोचा ही नहीं या यूं कहिए बुढ़ापा आने तक केवल जिम्मेदारियां ही निभाता रहा। मैं अतीत में चला गया। जब कमाने गया था, दो बहनें शादी के लिए थीं। पिता का देहावसान हो गया था। मैं एक पुत्री का पिता भी बन गया था। 10 साल तो इनमें चले गए। फिर एक लड़की और एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। इनको पढ़ाने, इनकी शादी करने, घर-द्वार बनाने, पत्नी को अच्छे जेवर, अच्छी जिन्दगी देने तथा घर की वस्तुएं सजाने में समय भी गया और जीवन की कमाई भी।

बेटे की शादी की। यह सब करते-करते उम्र 60 के पार हो गई, पता ही नहीं चला कि कब जवान हुआ और कब बुढ़ापे के आगोश में आ गया। हां एक बात थी कि अब मुझ पर किसी प्रकार की कोई जिम्मेदारी नहीं थी। मैं सेवानिवृत्त हो गया। घर आ गया। मेरे पास कमाई का कोई साधन न था। बेटे की आय पर ही निर्भर थे। मैं सोच रहा था कि यदि बेटे ने कभी मेरी आवश्यकता का ध्यान रखना छोड़ दिया तो क्या करूंगा। यही सोचकर एक दिन मैं एक कम्पनी में इंटरव्यू देने चला गया। मैं पढ़ा-लिखा था। उस पोस्ट के लायक भी था। इंटरव्यू में पास भी हो गया। मुझे लग रहा था कि मेरा चयन हो जाएगा।

कम्पनी के सीईओ की पोस्ट थी। आने-जाने के लिए साधन, दोपहर का खाना, 11 से 5 की ड्यूटी। रविवार अवकाश। सबसे बड़ी बात अच्छी तनख्वाह। मैं मन ही मन खुश था कि अब अपनी पत्नी के बुढ़ापे के लिए वह करूंगा जो आज तक नहीं कर पाया। बस फैसले का इंतजार था, पर अफसोस मुझे जॉब नहीं मिली क्योंकि मेरी उम्र 60 पार कर चुकी थी। मैं सोचने लगा बुढ़ापे से मेरे काम का क्या लेना-देना। मैं जिद पे आ गया कि कुछ ऐसा करूंगा कि उम्र को भी हरा दूंगा। मैं इसी तलाश में लगा हूं। जल्द ही रास्ता खोज लूंगा, मुझे विश्वास है,पर इस बीच अपने और पराए की परख हो गई।

अब याद आया कि अगर मैंने बुढ़ापे के लिए कुछ किया होता। यह कहना तो आसान है लेकिन जिम्मेदारियां ऐसा करने ही नहीं देतीं। उस समय कौन सोचता है कि जिन बेटों को मैं लगभग 30 साल सम्हाला हूं वह मुझे सिर्फ 10 साल नहीं सम्हाल पाएंगे। सम्हालते हैं और सम्हालेंगे लेकिन सत्य ये है कि यही साल और समय किसी से नहीं सम्हाले जाते। यही वह समय होता है जब अकेलापन, जिद्दीपन और ईगोपन सब आता है। बीते 60 साल रोज याद आते हैं। क्या किया बच्चों के लिए, पहले पढ़ने के लिए, फिर नौकरी के लिए, फिर शादी के लिए,  उन्हें भी बेटा हो इसके लिए न जाने किस-किस देवी-देवता से मनौती मानी। कुछ मनौती पूरा होने पर प्रसाद चढ़ाना भी बाकी है। बेटों को इन बातों को भी सोचना चाहिए। यही सब सोचते-सोचते कब नींद आ गई पता ही नहीं चला।

नींद तो तब खुली जब बेटा मुझे उठा रहा था कि पापा आज अभी तक नहीं उठे। तभी उसकी माँ की आवाज आई देर रात तक मोबाइल चलाएंगे तो जल्दी कैसे उठेंगे। बेटे ने कहा नहीं मम्मी पापा जब से नौकरी छोड़कर आए हैं सोचते बहुत हैं। अब इन्हें कौन समझाए कि इन आँखों ने बच्चों के ख्वाब पूरे करने के सिवाय अपना कोई ख्वाब देखा ही नहीं।

यह एक सेवानिवृत्त बाप की पीड़ा है, शायद आप भी इसका हिस्सा हों। बस इतना कहना है बच्चों से कि अपने पिता का ध्यान रखना। तुम्हारी थोड़ी सी मदद से उनका जीवन आनंद से पार हो जाएगा। अगर आप ने अपने माँ-बाप को थोड़ी भी तकलीफ दी तो अगली पीढ़ी और भी ज्यादा क्रूर होगी, जिससे आप अपनी सुख-सुविधा की कोई आशा न रखना, हां इतना जरूर करना अभी से आप अपने बुढ़ापे के लिए कुछ न कुछ निवेश जरूर करें, अब बहुत सी योजनाएं आ गई हैं। काश ये सुविधाएं मेरे जमाने में होतीं और इनका ज्ञान होता।

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