झज्जर के लाल गूंगा पहलवान ने बुलंद की आवाज

हरियाणा सरकार से मिला आश्वासन, कमेटी गठित
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
हरियाणा सरकार के आश्वासन के बाद गूंगा पहलवान ने अपना धरना खत्म कर दिया है। गूंगा पहलवान ने खेल निदेशक पंकज नैन से मुलाकात की तथा खेल निदेशक ने उन्हें मुख्यमंत्री मनोहर लाल द्वारा कमेटी गठित करने की जानकारी दी तो वह धरना खत्म करने को तैयार हो गए। 
बता दें कि हरियाणा सरकार की खेल पालिसी के तहत दो पहलू हैं। पहला यह कि नौकरी देना और दूसरा कैश अवार्ड। ओलम्पिक व पैरालम्पिक में गोल्ड मेडल जीतने पर छह करोड़ रुपये का कैश अवार्ड मिलता है। दरअसल, हरियाणा में डैफ ओलम्पिक में गोल्ड मेडल जीतने पर कैश अवार्ड की राशि एक करोड़ 20 लाख रुपये है, जोकि पूरे देश में सबसे ज्यादा है। केंद्र सरकार इसमें 75 लाख रुपये देती है। इस पालिसी के मुताबिक गूंगा पहलवान को पूरी राशि एक करोड़ 20 लाख रुपये प्रदान किए जा चुके हैं। 
नौकरी की जहां तक बात है, पैरालम्पिक व डैफ ओलम्पिक में गोल्ड मेडल जीतने पर द्वितीय श्रेणी की नौकरी देने का प्रावधान हैं। गूंगा पहलवान की डिमांड है कि डैफ को भी पैरालम्पिक के बराबर दर्जा दिया जाना चाहिए। उनकी डिमांड को देखते हुए मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने एक कमेटी बनाने के निर्देश दिए हैं, जिसमें ओलम्पिक, पैरालम्पिक और डैफ ओलम्पिक खेलने वालों को शामिल किया जाए। यह कमेटी जो भी सिफारिश करेगी, उसके मुताबिक फैसला लिया जाएगा। गूंगा पहलवान फिलहाल हरियाणा सरकार के खेल विभाग में कोच की नौकरी कर रहे हैं।
दरअसल झज्‍जर के अंतर्गत आने वाले गांव सासरौली के लाल गूंगा पहलवान उर्फ वीरेंद्र सिंह को बीते मंगलवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया था। गूंगा पहलवान को मिले सम्मान के बाद क्षेत्र में हर्ष का माहौल है। कुश्ती में अपनी पहचान बनाने वाले गूंगा पहलवान ने सोमवार को एक ट्वीट करते हुए यह जानकारी दी थी। किए गए ट्वीट में उन्होंने कहा था कि मुझे बड़े लोग सपोर्ट नहीं करते, मेरे सपोर्टर आप हैं, कल आपका लाड़ला, आपका दोस्त, आपका बेटा, आपके स्नेह और आशीर्वाद से पद्मश्री बन जाएगा, राष्ट्रपति भवन में अवार्ड दिया जाएगा। होटल अशोका से ट्वीट करते हुए उन्होंने हरियाणवीं अंदाज में राम-राम करते हुए आभार व्यक्त किया।
वहीं इसके अगले दिन ही लाल गूंगा पहलवान धरने पर बैठ गए। उन्‍होंने सीएम मनोहर लाल को टैग करते हुए दो ट्वीट किए और अपनी पीड़ा जाहिर की। गूंगा पहलवान ने पैरा खिलाड़ियों को दिए जाने वाली सुविधाओं को लेकर सवाल उठाए। गूंगा पहलवान ने कहा कि चार साल से वह चक्‍कर काट रहे हैं मगर उनकी बात नहीं सुनी गई। अपने अब तक मिले सभी अवार्डों के साथ वे जमीन पर ही बैठ गए। उनको इतना बड़ा सम्‍मान मिलने के बाद जमीन पर बैठने का मामला चर्चा में आ गया।
बता दें कि वीरेंद्र सिंह ने बचपन में ही अपनी सुनने की क्षमता खो दी और इसी वजह से वे कभी बोल भी नहीं पाए। गांव में बच्चे उनकी इस कमजोरी का मज़ाक बनाते थे और घर पर भी वे ज़्यादा किसी को कुछ समझा नहीं पाते। पर कहते हैं न कि आपकी किस्मत और मेहनत आपको आपकी मंजिल तक पहुंचा ही देती है। ऐसा ही कुछ वीरेंद्र सिंह के साथ हुआ, जब पैर में एक चोट लगने से उन्हें इलाज के लिए उनके पिता के पास दिल्ली भेजा गया।

 

 


 

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