अब यूपी में बेईमान खेल गुरु खिलाड़ियों को पढ़ाएंगे ईमानदारी का पाठ

नौकरी के लिए बदला अपना ठौर-ठिकाना

खेलपथ संवाद

प्रयागराज। उत्तर प्रदेश में कुछ प्रशिक्षकों का जमीर मर चुका है। वह अपने फायदे के लिए अपना ठौर-ठिकाना बदल रहे हैं। अभी तो ऐसे प्रशिक्षक सिर्फ ठिकाना ही बदल रहे हैं भविष्य में ये अपना बाप भी बदल दें तो अचरज नहीं होना चाहिए। जो भी हो खेल निदेशालय लखनऊ द्वारा अब तक आउटसोर्सिंग के माध्यम से प्रशिक्षकों की दो बार ट्रायल ली गई है। इस ट्रायल में कई पूर्व अंशकालिक प्रशिक्षक अपना गृह जनपद बदल कर सेवा का अवसर तलाश रहे हैं। ऐसे ही प्रशिक्षकों में जूडो प्रशिक्षक संजय कुमार गुप्ता भी शामिल हैं।

गौरतलब है कि खेल निदेशालय द्वारा अंशकालिक मानदेय प्रशिक्षकों की जो चयन प्रक्रिया चलाई जा रही है, उसमें  अनियमितताओं का बोलबाला है। अनियमितताओं का आलम यह है कि लोग अपना ठौर-ठिकाना तक बदल रहे हैं। इसी तरह के लोगों में प्रयागराज में चयनित खेल प्रशिक्षक संजय कुमार गुप्ता भी हैं। इनका चयन जूडो खेल के लिए अंशकालिक मानदेय खेल प्रशिक्षक के रूप में हुआ है।

नई चयन प्रक्रिया के अनुसार किसी भी अभ्यर्थी को उनके गृह जनपद में नियुक्ति नहीं दी जानी है, यह शासनादेश में उल्लेखित है। संजय कुमार गुप्ता पूर्व में कई वर्षों से अपना गृह जनपद प्रयागराज दिखाते आ रहे थे और पिछले सात वर्षों से भी अधिक समय से प्रयागराज जनपद में ही तैनात रहे लेकिन इस वर्ष की चयन ट्रायल में इन्होंने अपना गृह जनपद गाजीपुर लिखा है जोकि यह प्रदर्शित करता है कि इन्होंने जानबूझकर या तो इस वर्ष गलत सूचना दी है या पूर्व के वर्षों में गलत सूचनाएं विभाग को प्रस्तुत करते रहे हैं।

प्रशिक्षक गुप्ता के इस कृत्य की डिप्लोमा धारक खेल प्रशिक्षक एसोसिएशन, प्रयागराज ने न केवल निंदा की बल्कि इसकी लिखित शिकायत खेल निदेशालय, जिलाधिकारी प्रयागराज एवं क्षेत्रीय क्रीड़ा अधिकारी प्रयागराज से भी की है। एसोसिएशन ने मांग की है कि इसकी निष्पक्ष जांच की जाए ताकि उत्तर प्रदेश के समस्त खेल प्रशिक्षकों को न्याय मिल सके। यह मामला सिर्फ और सिर्फ प्रयागराज मण्डल का ही नहीं है बल्कि इस तरह के मामले पूरे उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों में सामने आये हैं और इस सन्दर्भ में खेल प्रशिक्षक एसोसिएशन ने खेल विभाग को इस मामले से सम्बन्धित समस्त अभिलेख प्रस्तुत कर दिये हैं। अब देखना यह है कि दूध का दूध पानी का पानी होता भी है या खामियों पर पर्दा डालकर इतिश्री कर ली जाती है।

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