गुरबत से निकला मनीष जैसा लाल

पिता ने मकान बेचकर दिलाई थी पिस्तौल
टोक्यो पैरालम्पिक में जीत दिखाया स्वर्ण
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
टोक्यो पैरालम्पिक में निशानेबाजी में स्वर्ण पदक जीतने वाले मनीष नरवाल के पिता के पास उन्हें पिस्टल दिलाने के लिए पैसे नहीं थे। उनके पिता ने घर बेचकर उन्हें पिस्तौल दिलाई थी। मनीष पहले फुटबॉल खेलते थे लेकिन एक बार चोट लग जाने के बाद उनके माता-पिता ने यह खेल छुड़वा दिया और तब से शूटिंग में हाथ आजमाने लगे।
मनीष नरवाल का दांया हाथ बचपन से ही काम नहीं करता था। घर वालों ने डॉक्टर, अस्पताल से लेकर मंदिरों तक में मत्था टेका, लेकिन उन्हें मनीष का हाथ ठीक करने में सफलता नहीं मिली। मनीष समझदार हुए तो उनका पहला प्यार फुटबॉल बन गया। वह इस खेल को दीवानेपन की हद तक खेलते थे, लेकिन एक दिन फुटबॉल खेलने के दौरान उनके दांए हाथ में चोट लग गई। खून भी बहा, लेकिन उन्हें न तो दर्द हुआ और न ही चोट का पता लगा। घर गए तो माता-पिता ने हाथ से खून बहता देखा तो उन्हें इसके बारे में पता लगा। 
माता-पिता ने उसी दिन उनकी फुटबॉल छुड़वा दी। पिता के एक दोस्त के कहने पर मनीष को शूटिंग शुरू कराई गई। उसमें भी उन्होंने झंडे गाड़ने शुरू किए तो पिस्टल की जरूरत पड़ी। अब पिस्टल खरीदने के लिए पैसे नहीं थे तो पिता दिलबाग ने सात लाख रुपये में मकान बेचकर बेटे को पिस्टल थमा दी। उसी बेटे ने पिता को बेचे गए मकान के बदले पैरालम्पिक का स्वर्ण लाकर उसकी कीमत अदा कर दी।
19 साल के मनीष खुलासा करते हैं कि उन्हें फुटबॉल बहुत पसंद थी। वह इसी में अपना करियर बनाना चाहते थे, लेकिन हाथ में चोट लगने के बाद उनके पिता अपने दोस्त को कहने पर बल्लभगढ़ में कोच राकेश के पास लेकर गए। उनका दांया हाथ काम नहीं करता था तो बांए हाथ से पिस्टल पकड़नी होती थी। शुरुआत में काफी दिक्कत आई लेकिन एक बार आदत पड़ गई तो सब ठीक होता गया। 
शूटिंग आगे जारी रखने के लिए उन्हें पिस्टल की जरूरत थी। अंतरराष्ट्रीय स्तर के लिए मोरनी की पिस्टल चाहिए थी। पिता का छोटे-मोटे पुर्जे बनाने का काम था। इससे पिस्टल नहीं आनी थी। पिता के पास एक छोटा मकान था। उन्होंने इसे सात लाख रुपये में बेचकर उन्हें पिस्टल दिला दी। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
बीए द्वतीय वर्ष के छात्र मनीष के कोच जेपी नौटियाल के मुताबिक मनीष के घर के हालात ऐसे थे उनके पिता उन्हें पिस्टल नहीं दिला सकते थे। जिसके चलते उन्हें साल 2015 में अपना मकान बेचना पड़ा। उस वक्त उनके लिए यह फैसला काफी कड़ा था, लेकिन मनीष ने दो साल के अंदर ही 2017 में जूनियर विश्व कीर्तिमान रचकर विश्व कप में स्वर्ण पदक जीता। जब उन्होंने बीते वर्ष अर्जुन अवार्ड जीता तो पिता ने भी अपने काम को बढ़ा लिया। 

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