आज मेरे पिता होते तो बहुत खुश होतेः सुहास

गौतमबुद्ध नगर के डीएम ने पैरालम्पिक में जीता चांदी का पदक
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
पैरालम्पिक में चांदी का पदक जीतने के बाद गौतमबुद्ध नगर के डीएम और शटलर सुहास एलवाई को पिता यथिराज की बहुत याद आई। वह भावुक होकर बोलते हैं कि आज अगर उनके पिता होते तो पैरालम्पिक पदक देखकर बहुत खुश होते। सुहास ने खुलासा किया कि वह इस पदक को अपने पिता को समर्पित करते हैं। यह उन्हीं का दिया हुआ आत्मविश्वास है कि वह पहले आईएएस बने और आज पैरालम्पिक पदक विजेता। सुहास को दुख है कि उनके पिता न तो उन्हें आईएएस बने हुए देख पाए और न ही पैरालम्पिक पदक विजेता, लेकिन उनका आशीर्वाद हमेशा उन पर बना है।
2007 के आईएएस अधिकारी सुहास के पिता का निधन 2005 में उस वक्त हो गया था जब वह कॉलेज से निकले थे। बचपन में उनके पैर में दिव्यांगता आ गई थी तो उनके मन में कहीं न कहीं यह बात थी कि उनका बेटा जीवन में खूब सफल हो। यह उनके पिता, परिवार और उनसे जुड़े लोगों का त्याग है कि वह अपने जीवन में एक नहीं बल्कि दोहरी उपलब्धि हासिल कर सके। सुहास खुलासा करते हैं कि उन्होंने प्रधानमंत्री से बातचीत में भी उनसे कहा कि उनके पिता जिस पैर को लेकर चिंतित थे आज पूरा देश और दुनिया उन्हें उसी पैर की दिव्यांगता की बदौलत जानने लगा है।
सुहास अपने कोच गौरव खन्ना को धन्यवाद करते हुए कहते हैं कि उन्हें ध्यान है जब उन्होंने आजमगढ़ के डीएम होने के दौरान गौरव की ओर से पैरा बैडमिंटन खेलने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। सुहास कहते हैं कि उस वक्त उन्हें लगता था कि वह ब्यूरोक्रेट की जिम्मेदारी के साथ पेशेवर बैडमिंटन नहीं खेल पाएंगे, लेकिन तीन से चार माह बाद ही उन्हें लगा कि नहीं उन्हें पैरा बैडमिंटन खेलना चाहिए। अगर वह उस वक्त नहीं खेलने का फैसला लेते तो आज पैरालम्पिक में पदक नहीं जीते होते।
आईएएस और खेलना दोनों बड़ी चुनौतियां
सुहास के मुताबिक आईएएस की भूमिका हो या फिर बैडमिंटन कोर्ट देश के लिए खेलना, उन्होंने दोनों चुनौतियों का भरपूर आनंद लिया है। सुहास याद करते हैं कि उनके प्रशासनिक जीवन में दो सबसे चुनौतीपूर्ण क्षण उस वक्त आए जब प्रयागराज के डीएम होने के दौरान कुंभ मेला लगा था और नोएडा डीएम होने के दौरान उन्हें कोरोना से निपटना था। ये दोनों ही बेहद कठिन चुनौतियां थीं, लेकिन उन्होंने इसे शांतिपूर्ण ढंग से निभाया। सुहास के मुताबिक उन्हें फिट रहना पसंद है। कोरोना के दौरान भी उन्होंने ऐसा किया। वह कहते हैं कि यह महत्वपूर्ण नहीं था कि कितनी देर खेला जाए बल्कि उन्होंने जितनी भी देर पैरालम्पिक की तैयारी की अच्छे ढंग से की।
सुहास कहते हैं कि वह खुश भी हैं लेकिन स्वर्ण पदक खोने का दुख भी है। उनके जीवन में यह ऐसा क्षण था कि खुशी और दुख एक साथ नसीब हो रहा था। खुशी रजत जीतने की थी और दुख स्वर्ण पदक गंवाने का था। सुहास कहते हैं कि वह आगे की नहीं सोच रहे हैं और इस पल को जीना चाहते हैं।
सुहास खुलासा करते हैं कि इंडोनेशियाई कोच गिगी बेलात्मा के संरक्षण में ग्रेटर नोएडा की अकादमी में प्रशिक्षण लेना बेहद काम आया। उन्होंने उन्हें तेज गेम खेलना सिखाया जिसका नतीजा यह निकला कि सेमीफाइनल में इंडोनेशियाई फ्रेडी के खिलाफ उन्होंने अपनी जिंदगी का सर्वश्रेष्ठ मैच खेला। फ्रेंडी दूसरे ग्रुप में सभी को हराकर आए थे, लेकिन उन्होंने सेमीफाइनल में इतना तेज गेम खेला कि फ्रेंडी संभल नहीं पाए।

रिलेटेड पोस्ट्स