2013 में खेल छोड़ना चाहते थे देवेन्द्र झाझरिया
पत्नी ने कुछ यूं बढ़ाया था हौसला
झाझरिया की पत्नी मंजू पूर्व राष्ट्रीय कबड्डी खिलाड़ी हैं
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली। दो बार के स्वर्ण पदक विजेता भारतीय भाला फेंक खिलाड़ी देवेंद्र झाझरिया ने कहा कि वह साल 2013 में खेल छोड़ना चाहते थे लेकिन उनकी पत्नी ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। 40 वर्षीय इस जेवलिन थ्रोवर ने कहा कि जब भाला फेंक को 2008 और 2012 पैरालम्पिक से बाहर कर दिया गया तो वह खेल छोड़ना चाहते थे लेकिन पत्नी के मान मनौवल के बाद उन्होंने इसे जारी रखा। बता दें कि झाझरिया की पत्नी मंजू पूर्व राष्ट्रीय कबड्डी खिलाड़ी हैं।
झाझरिया ने प्रधानमंत्री मोदी से बातचीत में कहा, 'जब मेरे खेल को 2008 पैरालम्पिक में नहीं शामिल किया गया तो मैंने कहा ठीक है 2012 में शामिल कर लिया जाएगा। मगर 2012 में जब इसे फिर नहीं शामिल किया गया तब मैंने साल 2013 में खेल छोड़ने का मन बना लिया था। मगर मेरी पत्नी ने मुझे ऐसा करने के लिए मना किया और आगे बढ़ते रहने के लिए प्रोत्साहित किया। इसलिए, मैंने अपना प्लान बदल दिया और 2013 में मुझे पता चला कि मेरा इवेंट रियो पैरालम्पिक में होगा। फिर मैंने गांधीनगर में साई केंद्र में प्रशिक्षण शुरू किया और 2016 रियो में अपना दूसरा स्वर्ण जीता।'
झाझरिया पर पूरे देश की निगाहें टिकी हैं। वह अपना तीसरा पैरालम्पिक गोल्ड जीतने की कोशिश में होंगे। झाझरिया 2004 (एथेंस) और 2016 (रियो) में ऐसा कर चुके हैं। पीएम मोदी ने भी झाझरिया की जमकर तारीफ की। उन्होंने कहा, 'राजस्थान के पैरा एथलीट देवेंद्र झाझरिया जी का दमखम देखने लायक है। दो पैरालम्पिक में जेवलिन थ्रो में गोल्ड मेडल जीतने के बाद वे टोक्यो में भी स्वर्णिम सफलता हासिल करने के लिए तैयार हैं।'
बातचीत के दौरान पीएम मोदी ने झाझरिया से पूछा कि इतने बड़े अंतराल के बावजूद उम्र को झुकाते हुए पदक कैसे जीते। उन्होंने झाझरिया की पत्नी और पूर्व कबड्डी खिलाड़ी मंजू से पूछा कि वह अब खेलती हैं या बंद कर दिया। वहीं बेटी जिया से कहा, टोक्यो खेलों के बाद आप पूरे परिवार के साथ स्टैच्यू ऑफ यूनिटी देखने जाना।'
उन्होंने कहा, 'जब मैं नौ साल का था, मेरा हाथ करंट लगने के कारण बुरी तरह से प्रभावित हो गया था। मेरे लिए घर से बाहर निकलना भी चुनौती थी। जब मैंने अपने स्कूल में भाला फेंकना शुरू किया तो मुझे लोगों के ताने झेलने पड़े। लोगों ने पूछा कि मैं भाला कैसे फेंकूंगा, वे मुझे कहते थे कि खेलों में मेरे लिए कोई जगह नहीं है, बेहतर है कि पढ़ाई करूं और अच्छी नौकरी हासिल करने की कोशिश करूं। फिर मैंने फैसला किया कि मैं कमजोर नहीं बनूंगा। जीवन में मैंने सीखा है कि जब हमारे सामने कोई चुनौती होती है तो आप सफलता प्राप्त करने के करीब होते हैं। इसलिए, मैंने इसे एक चुनौती के रूप में लिया।'