मराठा भी हुए नीरज चोपड़ा पर फिदा
नीरज खुद सेना में राजपूताना राइफल्स में हैं सूबेदार
खेलपथ संवाद
पानीपत। जनवरी 1761, इतिहास के पन्नों में दर्ज पानीपत की तीसरी लड़ाई की गाथा। वीर मराठों ने हिंदुस्तान को गुलामी से बचाने के लिए पानीपत के मैदान पर अपना लहू बहाया। जंग नहीं जीत सके, पर अब्दाली भी दोबारा लौटकर नहीं आया। उन्हीं मराठा वंशज से खुद को जोड़ने वाले रोड़ समाज के नीरज चोपड़ा ने टोक्यो ओलम्पिक में योद्धा की तरह भाले की नोक पर देश को स्वर्ण पदक जिता दिया।
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मराठों का इतिहास याद करते हुए ट्वीट किया है- याद करें जिस युद्ध ने बरसों गहरा घाव छोड़ा है, उसी पानीपत के छोरे ने आज इतिहास को मोड़ा है। नीरज के दादा धर्म सिंह गर्व से कहते हैं कि मराठे इतिहास रचते हैं। तीसरी लड़ाई में अपना लहू बहाया, पोते ने बरसों बाद भाले से ही जंग जीती। यह भी दिलचस्प है कि नीरज चोपड़ा ने पानीपत के शिवाजी स्टेडियम से भाला फेंकने का अभ्यास शुरू किया था। वही छत्रपति शिवाजी, जिन्होंने मराठा साम्राज्य की नींव रखी।
एक और महत्वपूर्ण बात ये भी है कि नीरज खुद सेना में राजपूताना राइफल्स में सूबेदार हैं यानी, खून और कर्म से वह योद्धा ही हैं, विजय तो निश्चित ही थी। दादा धर्म सिंह कहते हैं, "महाराष्ट्र के मराठी हमारे भाई हैं। वो हमारा मान सम्मान करते हैं। हमारा उनसे वर्षों पुराना नाता है।" पिता सतीश चोपड़ा ने कहा, रोड़ और मराठा भाई हैं। आज सबसे बड़ा गर्व नीरज का पिता होने का है।
मराठा इतिहास के जानकार बसताड़ा गांव के रामपाल मूले का कहना है कि पानीपत की तीसरी लड़ाई के बाद मराठों की तलाश की जा रही थी। इनका सिर लाने वालों पर ईनाम रखा गया था। तब मराठे जंगल में छिप गए। अपने गोत्र में कुछ बदलाव भी किया। जैसे दाबाड़े अब दाबड़ा, मूले अब मूल्यवान, तोरणे अब टूर्ण, टरके अब तुर्का, कादे अब कादियान, जुड़े अब जूड, रूले अब रूल्हयाण हो गए हैं। इसी तरह चोपड़े यहां चोपड़ा हैं।
महाराष्ट्र के सतारा और अकोला में चोपड़े गोत्र के परिवार रहते हैं। अकोला के रहने वाले गजानंद चोपड़े ने कहा कि वह कई बार पानीपत के गांव खंडरा आए हैं। नीरज के दादा धर्म सिंह चोपड़ा, पिता सतीश चोपड़ा से मिले हैं। दोनों को मराठा होने का गर्व है। गांव के ही राजबीर चोपड़ा उनकी बेटी की शादी में आए हैं। जब से रोड़ मराठों से उनका संबंध जुड़ा है, तब से परिवारों आना-जाना शुरू हुआ है। मालठाना, तलेगांव, तुरखेड़ में चोपड़े बहुल परिवार हैं।
बता दें कि मराठा वीरेंद्र वर्मा और इतिहासकार वसंतराव मोरे ने सबसे पहले यह उजागर किया था कि रोड़ समाज मराठा वंशज हैं। हालांकि राजा रोड़ सेवा दल के लोग इसका खंडन करते हैं। उनके अनुसार रोड़ जाति में कोई मराठा नहीं है।
पानीपत से कुरुक्षेत्र तक ही रोड़ मराठा बसे हैं। इसी क्षेत्र के बीच ही मराठे छिपे थे। पानीपत शिमला मौलाना, खंडरा, करनाल के कैमला, बुढ़ा, बसताड़ा, झिमरहेड़ी, कुटेला, बजीदा, झिंझाड़ी, दादूपुर, शामगढ़, रायपुर रोढ़ान, बराना, कुरुक्षेत्र के उमरी और अमीन तक बसे हैं रोड़। इस क्षेत्र में इनकी आबादी करीब आठ लाख है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के बीए के पाठ्यक्रम में हरियाणा का इतिहास पढ़ाया जाता है। इसमें लिखा है कि 1761 से पहले रोड़ जाति नहीं थी। कुरुक्षेत्र का अमीन इस जाति का प्रमुख रूप से केंद्र रहा है।
पानीपत की लड़ाई में पुणे से आए कई सरदार शहीद हुए। उन्हीं में से एक थे नरसिंग राव चोपड़े। रघुनाथ यादव लिखित पानिपतची बखर में इन शहीदों का वर्णन है। करनाल के बांभरहेड़ी के जगबीर मराठा कहते हैं कि महाराष्ट्र के चोपड़े ही हरियाणा के रोड़ चोपड़ा हैं। बाजीराव-मस्तानी के वंशज हैं नवाब शादाब बहादुर। पानीपत की तीसरी लड़ाई का गवाह है काला अंब। यहीं पर बाजीराव-मस्तानी का बेटा शमशेर बहादुर शहीद हुए था। शमशेर बहादुर के वंशज भोपाल के शादाब बहादुर ने वीडियो के माध्यम से कहा कि नीरज रोड़ मराठा हैं। योद्धा कभी अपनी युद्ध कभी नहीं भूलता है। मराठों ने 1761 में भी भाला फेंका था, वो दौर और था। आज जो भाला फेंका था, दुनिया को जीत लिया है। बाजीराव और मस्तानी, दोनों बहुत अच्छा भाला फेंकते थे। भाला हमारा गौरवशाली इतिहास रहा है। हमारा रायल लोगो भी भाला ही है।
देवेंद्र फडणवीस ने किया ट्वीट
ये भाला तो वीर शिवा का और रणभेदी राणा का है,
भारत मां का सपूत नीरज बेटा तो हरियाणा का है।
आज तिरंगा ऊंचा चढ़ते देख सीना चौड़ा है,
और राष्ट्रगान की धुन पर अपना लहू रगों में दौड़ा है।
याद करें जिस युद्ध ने बरसों गहरा घाव छोड़ा है,
उसी पानीपत के छोरे ने आज इतिहास को मोड़ा है।