रिंग में मैरीकॉम के पंच का नहीं कोई जवाब

बनना चाहती थी एथलीट, डिंको को देख बन गई बॉक्सर
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
कभी चाह थी एथलीट बनने की, लेकिन ये तो मैरीकॉम को भी नहीं पता था कि उनका साथ बॉक्सिंग के साथ ऐसा जुड़ेगा कि वो भारत की शान बन जाएंगी। मणिपुर के एक छोटे से गांव में 24 नवंबर, 1982 को मैरीकॉम का जन्म हुआ। असुविधा, गरीबी, समाज की बंदिशों से मैरीकॉम दो-चार हुईं, लेकिन लगन इतनी थी, कि ये सारी बातें पीछे रह गईं और सफलता कदम चूमने लगी। 
मैरीकॉम का झुकाव एथलेटिक्स की तरफ था, लेकिन 1999 में जब उन्होंने खुमान लम्पक स्पो‌र्ट्स कॉम्प्लेक्स में कुछ लड़कियों को बॉक्सिंग रिंग में लड़कों के साथ बॉक्सिंग के दांव-पेंच आजमाते देखा तो उन्होंने सोचा कि, मैं क्यों नहीं। इसके अलावा मणिपुर के बॉक्सर डिंको सिंह की सफलता ने भी उन्हें इस खेल की तरफ आकर्षित किया। मैरीकॉम लाइट फ्लाइवेट एमेच्योर बॉक्सर हैं और वो पहली ऐसी महिला मुक्केबाज हैं जिन्होंने वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप का खिताब छह बार जीता है तो वहीं वो दुनिया की एकमात्र ऐसी मुक्केबाज हैं जिन्होंने इसी प्रतियोगिता में आठ खिताब जीते हैं। 
मैरी ने वर्ल्ड चैंपियनशिप का खिताब साल 2002, 2005, 2006, 2008, 2010, 2018 में जीता था तो वहीं साल 2001 में सिल्वर मेडल तो 2019 में ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया था। वो भारत की एकमात्र महिला बॉक्सर हैं जिन्होंने 2012 लंदन ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई किया था और ब्रॉन्ज मेडल भी जीता था। उनकी इस सफलता की वजह से उन्हें 25 अप्रैल, 2016 को उस समय भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति ने उन्हें राज्य सभा का मेंबर बनाया था। 
मैरीकॉम ने इसके अलावा दो बार एशियन गेम्स में भी खिताब जीते हैं। साल 2010 में उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल तो वहीं 2014 में उन्होंने गोल्ड अपने नाम किया था। एशियन चैम्पियनशिप की बात करें तो उन्होंने 2003, 2005, 2010, 2012 और 2017 में गोल्ड मेडल जबकि, 2008 और 2021 में सिल्व मेडल जीते। इसके अलावा 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने गोल्ड मेडल अपने नाम किए थे। 2009 एशियन इनडोर गेम्स में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता था। उनकी इस अपार सफलता की वजह से उन्हें अर्जुन अवॉर्ड, पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण और राजीव गांधी खेल रत्न से सम्मानित किया जा चुका है। 

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