दो सप्ताह के अंदर 377 अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों को सेवा में लेने के निर्देश

हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने सुनाया अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों के पक्ष में फैसला

खेलपथ संवाद

लखनऊ। हाईकोर्ट लखनऊ पीठ के न्यायाधीश श्री अब्दुल मोइन ने एक जुलाई को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए खेल निदेशालय उत्तर प्रदेश को दो सप्ताह के अंदर 377 अंशकालिक प्रशिक्षकों को पुनः सेवा में लेने का आदेश दिया है। इतना ही नहीं माननीय न्यायाधीश ने खेल निदेशालय के सारे तर्कों को गैरवाजिब करार देते हुए कहा कि जब अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों के खिलाफ किसी तरह की कोई शिकायत नहीं थी, ऐसे में उन्हें सेवा से पृथक करना कहीं से भी तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता।

माननीय न्यायाधीश ने खेल निदेशालय द्वारा प्रशिक्षकों के लिए निकाले गए विज्ञापन को भी गैरवाजिब करार दिया है। गौरतलब है कि विकास यादव सचिव डिप्लोमा धारक खेल प्रशिक्षक एसोसिएशन उत्तर प्रदेश और अन्य ने खेल निदेशालय के विरुद्ध हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में वाद दायर करते हुए न्याय की गुहार लगाई थी। मामला अदालत में होने के बावजूद खेल निदेशालय द्वारा 377 अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों को पिछले 16 महीने से मानसिक रूप से परेशान किया जाता रहा तथा उन्हें सेवा में लेने और आर्थिक मदद करने की बजाय ठेका प्रथा से नए प्रशिक्षकों की भर्ती के विज्ञापन निकाले गए।

एडवोकेटद्वय शरद पाठक और पीयूष पाठक ने माननीय न्यायाधीश के समक्ष पीड़ित अंशकालिक प्रशिक्षकों का पक्ष रखते हुए कहा कि जब लम्बे समय से यह प्रशिक्षक ईमानदारी से अपने प्रशिक्षण दायित्व का पालन कर रहे थे, ऐसे में इन्हें पुनः नियुक्ति देने की बजाय दर-दर की ठोकरें खाने को विवश किया गया। इतना ही नहीं खेल निदेशालय उत्तर प्रदेश ने नए प्रशिक्षकों की भर्ती के विज्ञापन निकाल कर भी पीड़ित प्रशिक्षकों को मानसिक कष्ट पहुंचाया गया।

खेल निदेशालय की तरफ से माननीय न्यायाधीश जी को नए प्रशिक्षकों की नियुक्ति के जो कारण बताए गए उन्हें न्यायाधीश श्री अब्दुल मोइन जी ने गलत मानते हुए 377 अंशकालिक प्रशिक्षकों को दो सप्ताह के अंदर पुनः सेवा में लेने के आदेश दिए हैं। अदालत के इस आदेश के बाद जहां प्रशिक्षकों के चेहरे पर मुस्कान लौट आई है वहीं खेल निदेशालय के पदाधिकारियों की पेशानियों में बल पड़ते दिख रहे हैं।

कहते हैं कि सच की हमेशा जीत होती है। हाईकोर्ट लखनऊ पीठ के न्यायाधीश श्री अब्दुल मोइन जी ने वाकई अदालत की गरिमा और पीड़ित प्रशिक्षकों के पक्ष को सही साबित कर खेल निदेशालय के हिटलरशाही रवैए पर अंकुश लगाया है। 377 अंशकालिक प्रशिक्षकों के हितार्थ दिया गया यह फैसला अपने आप में एक नजीर साबित होगा। अब खेल निदेशालय के आला अधिकारी भी मानेंगे कि अदालत के निर्णय ही सर्वोपरि होते हैं। इस फैसले के बाद निरंकुश खेल निदेशक अपने आप गुनहगार साबित हो चुके हैं।

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