यह मेरे करियर का सर्वश्रेष्ठ क्षणः संजीत

एशियाई मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में जीता गोल्ड
पढ़ाई से बचने को रिंग में हाथ आजमाने का फैसला लिया
नई दिल्ली।
एशियाई मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाले संजीत को इस बात की खुशी है कि खेल को अपनाने के फैसले पर कायम रहने का उन्हें फायदा हुआ और ओलम्पिक पदक विजेता को हराना उनके 10 साल के करियर का सर्वश्रेष्ठ क्षण रहा। हरियाणा के रोहतक के 26 साल के इस खिलाड़ी ने दुबई में सोमवार को ओलम्पिक रजत पदक विजेता और विश्व चैम्पियनशिप के दो बार के कांस्य पदक विजेता कजाकिस्तान के वैसिली लेविट को 4-1 से शिकस्त दी।
संजीत (91 किलोग्राम) ने एक तरह से अपना बदला चुकता किया क्योंकि उन्हें 2018 में प्रेसिडेंट्स कप के दौरान लेविट ने नॉकआउट किया था। संजीत ने दुबई से भारत के लिए रवाना होने से पहले कहा, 'यह मेरे करियर का सबसे बड़ा क्षण है, हालांकि मैं विश्व चैम्पियनशिप का क्वार्टर फाइनलिस्ट भी हूं। ओलम्पिक पदक विजेता को हराना बहुत बड़ी बात है।'
लेविट के दमखम का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह इस प्रतियोगिता में अपने चौथे स्वर्ण पदक के लिए उतरे थे। वह टोक्यो ओलम्पिक के लिए भी क्वालीफाई कर चुके हैं। संजीत ने कहा कि उन्होंने पढ़ाई से बचने के लिए अपने बड़े भाई से प्रभावित होकर मुक्केबाजी में हाथ आजमाने का फैसला किया था।
उन्होंने कहा, 'मैंने अपने भाई को देखकर मुक्केबाजी में कदम रखा था, वह मेरे कोच भी हैं। यह बात 2010 की है। दरअसल, मेरे लिए यह पढ़ाई लिखाई से बचने का तरीका था। मुझे पढ़ने में कोई दिलचस्पी नहीं थी और मेरे माता-पिता वास्तव में चाहते थे कि मैं पढ़ाई पर ध्यान दूं।' उन्होंने बताया, 'शुरू में परिवार के लोगों ने खेल में जाने से मना किया लेकिन जब मैं पदक जीतने लगा तब वह मान गए। जब मैं राज्यस्तरीय चैंपियन बना था तब वे काफी गर्व महसूस कर रहे थे।'
सेना के इस जवान के खेल में सुधार से कोच सीए कुट्टप्पा भी काफी प्रभावित है। उन्होंने बताया, 'वह कुछ साल पहले तक सिर्फ दमदार लगने पर विश्वास करता था और अब उसने 2018 में लेविट से मिली हार को काफी पीछे छोड़ दिया है। हमने रिंग में उसकी गति और मुक्कों पर भी काम किया है।
संजीत ने 2019 में रूस में हुए विश्व चैम्पियनशिप के क्वार्टर फाइनल में पहुंच कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनावाया था। कंधे की चोट के कारण वह ओलंपिक क्वालीफायर के लिए नहीं जा सके। कुट्टप्पा ने कहा, 'यह उसका दुर्भाग्य है। वह उस टूर्नामेंट में जाता तो अच्छा होता। अगर वह सीधे क्वालीफाई नहीं करता, तो भी उसके पास रैंकिंग के जरिये ऐसा करने का मौका होता।'

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