खेलों के नाम पर अपनी ढपली, अपना राग अलापती योगी सरकार

सब कुछ चंगा, कठौती में गंगा बहा रहे उत्तर प्रदेश के खेलनहार

श्रीप्रकाश शुक्ला

लखनऊ। उत्तर प्रदेश खेलों में बेतहाशा तरक्की कर रहा है, यह मैं नहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार का खेल मंत्रालय कह रहा है। जनता-जनार्दन की गाढ़ी कमाई को विज्ञापनों पर खर्च करना ही यदि खेलों का विकास है तो उत्तर प्रदेश के खेलनहारों लानत है तुम्हारी ऐसी सोच को। जो सरकार खेल प्रशिक्षकों और शारीरिक शिक्षकों को बंधुआ मजदूर बनाने पर आमादा हो, उसके मुंह से खेलों के विकास की बातें बेमानी सी लगती हैं।

पिछले एक साल से उत्तर प्रदेश के अधिकांश क्रीड़ांगन सूने पड़े हैं तो स्कूल-कॉलेजों की खेल गतिविधियां भी स्थिर हैं। इसकी तह पर जाएं तो खेल विभाग द्वारा लगभग साढ़े चार सौ अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों की सेवाएं समाप्त करना और कई हजार शारीरिक शिक्षकों को स्कूल संचालकों द्वारा बेगार कर देना है। योगी सरकार के नुमाइंदे कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में खेल अधोसंरचना पर ध्यान दिया जा रहा है। खेलों के इन दुश्मनों से मेरा सवाल है कि बिना प्रशिक्षकों और शारीरिक शिक्षकों के खिलाड़ी प्रतिभाओं को निखारेगा कौन?

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को साफ-सुथरी छवि का माना जाता है लेकिन देश की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में खेलों की गंगोत्री इतनी मैली हो चुकी है कि उसकी सड़ांध से खिलाड़ियों का सांस लेना दूभर हो गया है। दरअसल, संचालक खेल आर.पी. सिंह जहां खेल मंत्री उपेन्द्र तिवारी को अंधेरे में रख रहे हैं वहीं सच्चाई से बेखबर खेल मंत्री उपेन्द्र तिवारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सब कुछ चंगा, कठौती में गंगा बहा रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार पिछले कुछ महीनों से महिला सशक्तीकरण पर कुछ अधिक ध्यान दे रही है। यह अच्छी बात है लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को यह मालूम होना चाहिए कि उनका खेल मंत्रालय दो सौ से अधिक अंशकालिक महिला प्रशिक्षकों के जलते चूल्हे पर पानी उड़ेल चुका है।

उत्तर प्रदेश में प्रतिभाओं, खेल प्रशिक्षकों और योग्य शारीरिक शिक्षकों की कमी नहीं है, कमी है तो सरकारी खेल तंत्र की, जिसमें अधिकांश निकम्मे लोग वर्षों से खिलाड़ियों का हक डकार रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में उत्तर प्रदेश में जो भी खेल अधोसंरचनाएं आबाद हुई हों, उनका ईमानदारी से निरीक्षण-परीक्षण करवा लिया जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी साफ हो जाएगा। पिछले एक साल से प्रदेश के अंशकालिक खेल प्रशिक्षक अपने हक की आवाज उठा रहे हैं लेकिन पल-पल की खबर रखने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कानों में आज तक उनकी व्यथा नहीं पहुंची है। अलबत्ता कनबतियों में उन्हें बताया जा रहा है कि आंदोलनरत खेल गुरु सपाई-बसपाई हैं।

योगी जी सच्चे मन से खेलों से प्यार करने वाला किसी दल विशेष का नहीं होता, जो लोग प्रशिक्षकों के हक पर डाका डाल रहे हैं उन्हें न ही खेलों से प्यार है और न ही वह चाहते हैं कि प्रदेश खेलों में तरक्की करे। खेल संचालक आर.पी. सिंह हॉकी के बहुत बड़े खिलाड़ा रहे हैं, उनसे ही पूछ लीजिए कि उत्तर प्रदेश की हॉकी ने कितनी तरक्की की है? योगी जी आप राजनीतिज्ञ नहीं बल्कि संत हैं, मेरी गुजारिश है कि खेलों का बुरा चाहने वालों को शंट करें वरना उत्तर प्रदेश में खेलों का सत्यानाश हो जाएगा। मीडिया के अपने हित हैं, वह सरकारी विज्ञापनों से विकास की गंगा तो बहा सकती है लेकिन खिलाड़ियों के चेहरे पर मुस्कान लाना उसके बूते की बात नहीं है। विज्ञापनों पर पैसा जाया करने की बजाय खेल प्रशिक्षकों, शारीरिक शिक्षकों और खिलाड़ियों की सुध लीजिए फिर देखिए उत्तर प्रदेश खेलों के शिखर पर पहुंचता है या नहीं।          

   

  

रिलेटेड पोस्ट्स