अश्वनी नाचप्पा ने दो बार पीटी ऊषा को हराया

फिल्मों में भी किया शानदार अभिनय

अश्वनी की दोनों बेटियां बैडमिंटन खिलाड़ी हैं

श्रीप्रकाश शुक्ला

बेंगलूरु। हर समय-काल में भारत में एक से बढ़कर एक महिला एथलीट रही हैं। अधिकतर भारतीय खेलप्रेमी पीटी ऊषा को तो जानते हैं लेकिन भारत में ही उन्हें दो बार पराजित करने वाली खिलाड़ी अश्वनी नाचप्पा को नहीं जानते। पाठकों को हम आज अश्वनी नाचप्पा की उपलब्धियों से रूबरू कराने का प्रयास कर रहे हैं। हम बता दें कि अश्वनी नाचप्पा फिल्मों में भी शानदार अभिनय कर चुकी हैं। इनके पति हाकी खिलाड़ी तो दोनों बेटियां बैडमिंटन खेलती हैं। युवा पीढ़ी को खेलों में आगे बढ़ाने के लिए इन्होंने स्कूल के साथ ही खेल एकेडमी भी खोल रखी है।

1990 के दशक में ट्रैक एण्ड फील्ड पर पीटी ऊषा का जलवा था। उड़नपरी को आज भी लगभग हर खेलप्रेमी जानता है लेकिन उन्हें दो बार पराजित करने वाली अश्वनी नाचप्पा को बहुत कम लोग जानते हैं। अश्विनी उस दौरान फिल्मों में भी गईं और वापस आकर फिर से नेशनल में मेडल जीते। उस दौर में पीटी ऊषा, अश्विनी नाचप्पा और शाइनी विल्सन को देखने के लिए मैदानों में भीड़ टूट पड़ती थी। अश्विनी को भारत में पहली बार पहचान मिली 1991 के ओपन नेशनल गेम्स में जब उन्होंने 400 मीटर दौड़ में पीटी ऊषा को पराजित किया था। यद्यपि अश्विनी की इस जीत को तब तुक्का माना गया लेकिन इसके कोई दो सप्ताह बाद नई दिल्ली में एक अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में अश्विनी ने एक बार फिर पीटी ऊषा को परास्त कर सारे किन्तु-परंतु पर विराम लगाने में सफलता हासिक की। दिल्ली में हुई इस दौड़ में अश्विनी को दूसरा तथा पीटी ऊषा को तीसरा स्थान मिला था। इस दौड़ में रूसी खिलाड़ी पहले स्थान पर रही थी।

अश्विनी का खेलों में कैसे आना हुआ, इसकी भी दिलचस्प कहानी है। अश्विनी ने अपना बचपन कोलकाता में बिताया था, जहां उनके पिताजी बिड़ला रेयॉन में नौकरी करते थे। कुछ दिनों बाद अश्विनी, इनकी बहन पुष्पा और मां बेंगलुरु आ गए। बेंगलुरु में श्री कांतीरावा स्टेडियम के ठीक सामने इनका आवास था। उन दिनों भारत के ट्रिपल जम्प के खिलाड़ी और एशियन गेम्स के गोल्ड मेडलिस्ट मोहिंदर सिंह गिल वहीं थे। गिल साहब मैदान का एक चक्कर लगाने पर बच्चों को एक मिठाई देते थे। मिठाइयों के लिए अश्विनी और पुष्पा चक्कर लगाती-लगाती एथलीट बन गईं और टॉफियों की जगह ट्रॉफियों ने ले ली। बेंगलुरु में ट्रायल के बाद 21 साल की उम्र में अश्वनी नाचप्पा का 1988 सिओल ओलम्पिक के लिए चयन हो गया।

बकौल अश्विनी 1988 के सिओल ओलम्पिक ट्रायल में रिले टीम के चार खिलाड़ियों के चयन के लिए कुल छह खिलाड़ियों में चुनाव होना था। मुकाबले से ठीक पहले दिन आखिरी ट्रायल होना था। ट्रायल के वक्त पीटी ऊषा और उनके कोच नहीं आए और अधिकारियों ने तय किया कि शाम को फिर ट्रायल लेंगे। शाम के वक्त अश्विनी के साथ दो और खिलाड़ी हॉकी मैच देखने चली गईं। वापस आने पर अश्विनी को पता चला कि पी.टी. ऊषा को शामिल कर उन्हें रिजर्व में कर दिया गया। 4×400 मीटर रिले दौड़ में भारत की टीम पहले ही दौर में बाहर हो गई। 1992 ओलम्पिक खेलों में चोट की वजह से अश्वनी नाचप्पा ट्रायल नहीं दे पाईं और रिटायरमेंट ले लिया। इसी बीच अश्विनी को 1990 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

अपने फिल्मी करियर में अश्विनी ने सिर्फ गिनी-चुनी तेलुगू फिल्में कीं। इनमें इंस्पेक्टर अश्विनी अच्छी-खासी हिट रही। इस फिल्म के लिए अश्विनी को आंध्र प्रदेश सरकार से बेस्ट न्यूकमर एक्टर का पुरस्कार भी मिला। धोनी की तरह अश्विनी ने अपनी अनटोल्ड स्टोरी पर फिल्म बनाई थी। बस अंतर ये था कि इसमें खुद अश्विनी ने एक्टिंग की थी। 1991 में आई आत्मकथात्मक फिल्म का नाम भी अश्विनी ही था। फिल्मों में आने के बाद अश्वनी नाचप्पा को लगा कि उनका खेल खत्म हो गया है लेकिन उन्होंने 1992 के कोलकाता नेशनल्स में चार गोल्ड मेडल जीतकर तहलका मचा दिया। तब अश्वनी नाचप्पा ने 100 मीटर, 200 मीटर, 400 मीटर तथा 4×400 मीटर रिले रेस में स्वर्णिम सफलता हासिल की थी।

अश्वनी नाचप्पा की इच्छा एयर-होस्टेस जैसे क्षेत्र में करियर आजमाने की थी पर उन्हें स्पोर्ट्स कोटे से विजया बैंक में नौकरी मिल गई। नौकरी छोड़ने के बाद अश्विनी नाचप्पा ने साल 2004 में अपने पति के नाम पर खुद की खेल एकेडमी शुरू कर दी। इसका नाम है केएएलएस एकेडमी। अश्विनी का मानना है कि खेल भी जरूरी है और पढ़ाई भी। वह बताती हैं कि खेल छोड़ने के बाद मेरा करियर इसलिए कामयाब रहा क्योंकि मैं पढ़ाई कर पाई। मेरे साथ खेलने वाले कुछ खिलाड़ी इतने खुशकिस्मत नहीं थे। इसलिए मैंने स्पोर्ट्स एकेडमी और स्कूल दोनों एक ही जगह शुरू किए। अश्विनी के स्कूल से निकले सबसे अच्छे खिलाड़ियों के लिए प्रतिष्ठित कॉलेजों में दाखिले की भी व्यवस्था है और ये स्कूल हॉकी के गढ़ कर्नाटक के कुर्ग में है। खिलाड़ी, एक्टर, कोच, अध्यापक, बैंककर्मी बनने के बाद अश्विनी स्पोर्ट्स एक्टिविस्ट भी बन गई हैं। अश्विनी ने क्लीन स्पोर्ट्स इंडिया नाम से एक संस्था बनाई है। अश्विनी का मानना है कि खेलों में बहुत राजनीति है, यही वजह है कि हमारा देश आगे नहीं बढ़ पा रहा है। अश्विनी के पति दत्ता कारोम्बियाह भारत की जूनियर हॉकी टीम के खिलाड़ी रहे हैं तथा इनकी बेटियां बैटमिंटन खिलाड़ी हैं। भारत में खेलों का नायाब उदाहरण है अश्वनी नाचप्पा का परिवार।

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