समाज में महिलाओं के फैसले भी मर्द ही लेते हैंः चंद्रो तोमर

सफलता, आलोचनाओं का मुंह बंद कर देती है

शूटर दादियों से साक्षात्कार

खेलपथ प्रतिनिधि

बागपत। उत्तर प्रदेश के बागपत ज़िले के जौहरी गांव की दो महिलाएं- चंद्रो और प्रकाशी तोमर शूटर दादी  के नाम से मशहूर हैं। 60 की उम्र में स्थानीय राइफल क्लब में शूटिंग सीखकर कई कीर्तिमान बना चुकी इन दोनों महिलाओं के जीवन पर सांड़ की आंख फिल्म भी बन चुकी है। इनका कहना है कि हमारा समाज आपको कभी नहीं भूलने देता कि आप औरत हैं।

निशानेबाज़ी की शुरुआत कब और कैसे हुई?

चंद्रो तोमर: जिस समाज से हम लोग आते हैं उसमें महिलाओं को सिर्फ घर की जिम्मेदारियों तक ही सीमित रखा जाता है। हमारे खुद के फैसले भी मर्द ही लेते हैं। यही वजह रही कि अपनी जिंदगी में बहुत कुछ करना चाहती थी लेकिन कभी कर नहीं पाई। एक दिन गांव में शूटिंग क्लब खुला, जिसमें सिर्फ मर्द जाते थे, औरतों की मनाही थी। एक दिन यूं ही अपनी पोती शैफाली के साथ वहां पहुंच गई और कोच से अपनी पोती को शूटिंग सिखाने को कहा। उस समय मेरी पोती थोड़ा हिचकिचाई तो मैंने ऐसे ही निशाना लगाकर दिखा दिया। क्लब के कोच बड़े खुश हुए और इस तरह निशानेबाजी शुरू हो गई। शुरू में थोड़ी हिचक थी क्योंकि उम्र, समाज, घर-परिवार का डर था कि क्या इस उम्र में यह सब ठीक लगेगा? घरवाले क्या कहेंगे? समाज क्या कहेगा? लेकिन धीरे-धीरे निशानेबाजी करने लगी। रात में घर में जब सो जाते थे तब छत पर जग में पानी भरकर प्रैक्टिस करती थी, ताकि बंदूक पकड़ने के दौरान हाथ सधा हुआ हो, हिले नहीं।

प्रकाशी तोमर: मैंने चंद्रो को देखकर निशानेबाज़ी शुरू की। शुरुआत में हिचकिचाहट थी लेकिन सोचा जब चंद्रो अच्छा कर रही है तो मैं भी कर सकती हूं। ऐसे ही शुरू किया और फिर तो ये जुनून बन गया।

आप दोनों ने जब निशानेबाजी शुरू की तब आपकी उम्र 60 के आसपास थी। क्या कभी उम्र आड़े आई?

चंद्रो तोमर: उम्र तो बाद की बात थी, औरत होकर घर से बाहर निकलकर मर्दों के साथ निशानेबाजी कर रहे थे और मेडल जीत रहे थे। विरोध की असली वजह तो यही थी। गांवों में महिलाओं को पूरी जिंदगी घूंघट में जिंदगी जीनी पड़ती है। ऐसे में दो उम्रदराज महिलाएं घर-परिवार से छिप-छिपकर बाहर जाकर मर्दों के साथ निशानेबाज़ी करती हैं, ये समाज के लिए किसी अपराध से कम नहीं था। कम से कम समाज को तो उस समय यह अपराध लगता था। ताने तक सुनने पड़ते थे, मारपीट तक हुई थी लेकिन वह जमाना कुछ और था। समय के साथ नजरिया बदला है, लेकिन पूरी तरह से नहीं बदला है। लोग हमारे खिलाफ इसलिए थे क्योंकि हम औरतें होकर बंदूक थामे हुए थीं। अगर हम 60 की जगह 30 की भी होतीं तब भी समाज का नजरिया वही होता जो तब था। मुझे याद है जब हम बंदूक थामकर निशाना लगाते थे तो ऐसे भी लोग थे, जो मैदान के बाहर से हमारा मजाक उड़ाते थे।

प्रकाशी तोमर: औरतें किसी भी उम्र की हों, समाज उन्हें पहले औरत होने का अहसास दिलाता है। हमारे साथ तो ये हुआ कि हमें इस तरह के ताने सुनने को मिलते थे कि जो किसी को भी सुनने में अच्छे नहीं लगते। ‘दिमाग खराब हो गया है’, ‘बाहर की हवा लग गई है’ इस तरह के ताने सुनने को मिलते थे। एक तो औरत होना और ऊपर से उम्रदराज औरत होकर कुछ करना आसान नहीं होता।

आपके घरवालों को आपकी निशानेबाज़ी के बारे में कैसे पता चला और इस पर उनकी क्या प्रतिक्रिया थी?

चंद्रो तोमर: मेरे पोते-पोतियां तो शुरू से ही मेरे साथ थे। मुझे प्रोत्साहित करते रहते थे लेकिन एक दिन घर में निशानेबाजी के बारे में पता चल गया। घर के बुजुर्ग बहुत गुस्सा हुए, बहुत भला-बुरा कहा। हमें कहा गया कि समाज में हमने उनका नाम खराब कर दिया, उनकी इज्जत मिट्टी में मिला दी। आस-पड़ोस से भी बहुत ताने सुनने को मिलते थे। हालत यह हो गई थी कि जब हम दोनों घर से निकलते थे तो रास्ते में औरतें लगातार ताने मारती थीं लेकिन हमने सब अनसुना करके निशानेबाजी जारी रखी। अखबारों में जब हमारी तस्वीरें आती थीं तो उन्हें अखबार से निकालकर छिपा लिया करते थे ताकि घर में किसी को पता नहीं चल जाए। लेकिन मेरे पति ने मेरा पूरा सहयोग दिया। घरवालों के सामने वे मुझ पर गुस्सा होने का दिखावा करते थे लेकिन पीछे से उनका पूरा सहयोग मुझे मिला। प्रतियोगिता में जीते गए हमारे मेडल्स एक दिन घरवालों के हाथ लग गए और उन्हें पता चल गया कि हमने छिप-छिपकर शूटिंग की प्रैक्टिस की है और झूठ बोलकर प्रतियोगिता में हिस्सा लेने जाती रहीं।

प्रकाशी तोमर: इस निशानेबाजी के लिए बहुत कुछ सहा है। इतने बरस हो गए लेकिन समाज के जो ताने थे, अब भी कानों में गूंजते हैं। एक तो हम औरतें और वो भी उम्रदराज तो समाज को कहां हजम होने वाला था लेकिन हमारे बच्चों का पूरा सहयोग रहा वरना यहां तक पहुंचना बहुत ही मुश्किल था।

आपकी निशानेबाजी को लेकर घर में विरोध कर रहे लोगों और समाज का नजरिया कब और कैसे बदला?

चंद्रो तोमर: एक बार हमने वेटरन कैटेगरी में गोल्ड और सिल्वर मेडल जीता था, जिसके बाद अखबार में हमारी तस्वीरें छपी थीं। उस दिन मैंने ऐसे ही अखबार उठा लिया और अपनी तस्वीरें पहचान लीं। मैंने उस पेज को अखबार से निकालकर छिपा लिया लेकिन मेरे बेटों को किसी ने बता दिया कि हमारी तस्वीरें अखबार में आई हैं। जब उसे अखबार में वह तस्वीर नहीं मिली, तब मैंने वो पेज निकालकर उसे दिया। इसके बाद घरवाले भी खुश हुए कि अखबार में तस्वीर आई है। उस समय अखबार में तस्वीरें आना बहुत बड़ी बात होती थी। इसी तरह धीरे-धीरे लोगों का नजरिया बदलने लगा।

प्रकाशी तोमर: जब हमारी मेहनत रंग लाई और हमें मेडल मिलने लगे तब समाज के लोगों के ताने, सराहना में बदलने लगे। हमें देखकर छोटी-छोटी बच्चियां निशानेबाजी करने लगीं, उनके घरवाले खुद हमारे पास आकर ट्रेनिंग देने को कहने लगे। सफलता, आलोचनाओं का मुंह बंद कर देती है। ऐसा ही हमारे साथ भी हुआ।

आपका शादी से पहले और शादी के बाद किस तरह का जीवन रहा?

चंद्रो तोमर: मेरी शादी 14 साल की उम्र में हो गई थी। 22 साल की उम्र में बेटा हुआ। मेरे दो बेटे और तीन बेटियां हैं। कभी स्कूल नहीं गई लेकिन अंग्रेजी सीखने का शुरू से शौक था। मैं पढ़ नहीं पाई। बचपन से खेलने का मन था लेकिन उस तरह का माहौल और छूट नहीं थी कि खेल सकें। मुझे मेरी पोती के सहारे इसका मौका मिला। शहरी लोगों को पता नहीं होगा लेकिन गांवों में महिलाओं का जीवन हमेशा एक जैसा रहता है।

ऐसा सुनने में आया है कि वेटरन कैटेगरी में एक प्रतियोगिता में आपने दिल्ली के पूर्व डीआईजी धीरज कुमार को हराया था लेकिन उन्होंने आपके साथ फोटो खिंचवाने से इंकार कर दिया था। इसमें कितनी सच्चाई है?

प्रकाशी तोमरः मैं उस प्रतियोगिता में पहले स्थान पर आई थी, जबकि धीरज कुमार दूसरे और चंद्रो तीसरे स्थान पर आई थी। मुझे याद है कि उन्होंने हमारे साथ तस्वीर खिंचाने से इंकार कर दिया था क्योंकि उनका कहना था कि मैं शर्मिंदा हूं कि मैं एक महिला से हार गया हूं, ये मेरे लिए शर्म की बात है।

अब तक कुल कितने मेडल जीते हैं?

चंद्रो तोमरः हमारे मेडल की संख्या को लेकर बहुत गलतफहमियां हैं। कुल 352 मेडल हैं, जो हमारे पूरे परिवार ने जीते हैं, जिसमें मेरे और प्रकाशी के लगभग 20-20 मेडल हैं और बाकी 150 के आसपास मेडल बेटियों और पोतियों के हैं। हमारी बेटियां और पोतियां भी निशानेबाज हैं। हम प्री-नेशनल स्तर तक खेले हैं। इसे राष्ट्रीय स्तर का ही माना जाता है। स्टेट चैम्पियनशिप भी खेला है। हमने कभी ट्रेनिंग नहीं ली। लोग हैरान थे कि बिना किसी ट्रेनिंग के हमारा इतना सटीक निशाना कैसे लगता है।

फिल्म में आप दोनों का किरदार लगभग 30 बरस की आसपास की अभिनेत्रियों ने निभाया है लेकिन इस पर विवाद भी है कि उम्रदराज अभिनेत्रियों को फिल्म में लेना चाहिए था। इस पर आपकी क्या राय है?

चंद्रो तोमर: जब हमने निशानेबाज़ी शुरू की थी तो हमारी उम्र लगभग 60 साल थी। फिल्म में जिन अभिनेत्रियों ने किरदार निभाया है, वे कम उम्र की हैं लेकिन इन्होंने काम अच्छा किया है। मैं तो मानती हूं कि उसे लेना चाहिए जो अच्छी ऐक्टिंग करे। तापसी और भूमि ने अच्छा काम किया है।

औरतों को लेकर समाज विशेष रूप से पुरुषों के नजरिये में कितना बदलाव देख रही हैं?

चंद्रो तोमर: बहुत बदलाव आया है। पहले औरत का घर से बाहर निकलना अच्छा नहीं माना जाता था। सोच यही थी कि औरतें बनी ही खाना पकाने और बच्चे संभालने के लिए हैं। ऐसे में कोई औरत घर की दहलीज लांघकर बाहर निकले और वो भी खेलने जाए तो यह बहुत बड़ी बात है। महिला-पुरुषों के बीच की खाई हमारे समाज ने बनाई है, इसे भरना बहुत जरूरी है और यह भर भी रहा है। हमने अपने घर के बाहर एक बोर्ड लगा रखा है, जिस पर लिखा है, ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, बेटी खिलाओ’. हर किसी को ऐसा करना चाहिए।

साभार-वायर

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