मजदूरी को मजबूर सेक्स वर्करों के बच्चों की फुटबाल टीम

अंडर-13 आई लीग में कोलकोता जोन की है चैम्पियन
डेनमार्क में डाना कप खेलने गई थी टीम
खेलपथ प्रतिनिधि
कोलकाता।
कोलकाता, हावड़ा और दक्षिण 24 परगना स्थित रेड लाइट एरिया के सेक्स वर्करों के बच्चों से सात साल पहले बनाई गई दुरबार स्पोर्ट्स अकादमी की फुटबॉल टीम को पहले अंफन तूफान और अब कोरोना ने बिखेर कर रख दिया है। इन आपदाओं ने न सिर्फ इन बच्चों की फुटबॉल गतिविधियों को बंद कर दिया है बल्कि कई बच्चे रोजाना के जीवन-यापन के लिए अपने मां-बाप के साथ मजदूरी को मजबूर हैं। कोई सब्जी बेच रहा है, कोई सड़क पर ठेला लगा रहा है तो कोई अपनी मां के साथ घरों पर जाकर काम कर रहा है।
ये वही बच्चे हैं जिन्होंने इस साल फरवरी माह में कोलकोता जोन का अंडर-13 आई लीग खिताब अपने नाम किया था। क्लब को चलाने वाली दुरबार महिला समन्वय समिति इन बच्चों के परिवारों को राशन मुहैया कराने की कोशिश कर रही है, लेकिन सहायता के अभाव में इन बच्चों का काम नहीं छुड़वा पा रही है। हालांकि गांधी जयंती पर क्लब ने किसी तरह से इन बच्चों की सात माह से बंद पड़ी फुटबाल की प्रैक्टिस को जरूर शुरू कराया है।
दुरबार स्पोर्ट्स अकादमी के अध्यक्ष डॉ. सौरजीत जना बताते हैं कि बच्चों के परिवारों की स्थिति काफी खराब है। तूफान ने पहले इन परिवारों के घर उजाड़ दिए अब कोरोना ने सब कुछ बर्बाद कर दिया है। समिति ने मकान के लिए पांच हजार रुपये परिवारों को मुहैया कराए लेकिन ये नाकाफी हैं। यही कारण है कि बच्चे मजदूरी को मजबूर हैं। इस वक्त अकादमी की अंडर-13, 15 और अंडर-14 आईएफए नर्सरी की टीम है, जबकि लड़कियों की अंडर-17 टीम है। 2016 में क्लब की टीम डेनमार्क में डाना कप खेलने गई थी, जहां वह प्री क्वार्टर फाइनल तक पहुंची। उसके 18 में से 16 बच्चे ईस्ट बंगाल, मोहन बागान क्लबों से जुड़ चुके हैं। 
डॉ. जना बताते हैं कि उन्होंने 2013 में सेक्स वर्करों के बच्चों को मुख्य धारा में लाने के लिए इस क्लब की शुरूआत की। इसमें पीके बनर्जी, चुन्नी गोस्वामी, बलराम और प्रसून बनर्जी जैसे दिग्गज फुटबालरों ने काफी मदद की। कुछ वर्ष पूर्व ही अकादमी में सेक्स वर्करों के अलावा बेहद गरीब परिवार के बच्चों को भी जोड़ा गया। इनके लिए 24 परगना जिले के बुरुईपुर इलाके में राहुल विद्या निकेतन के नाम से हॉस्टल बनाया गया है। यहीं बच्चे रहते हैं और इनकी पढ़ाई का सारा खर्च अकादमी उठाती है, लेकिन लॉकडाउन और उसके बाद से पढ़ाई से लेकर सब कुछ बंद है। फंडिंग नहीं आने से भी दिक्कत हो रही है। लेकिन उन्हें विश्वास है वह फिर से चीजों को पटरी पर लाएंगे।
अकादमी के कोच बिश्वजीत मजूमदार के अनुसार जब उनकी टीम ने इस साल अंडर-13 का जोनल खिताब जीता तो उन्हें लगा इस बार मुख्य टूर्नामेंट में कमाल दिखाएंगे, लेकिन यह टूर्नामेंट कोरोना के चलते हुआ ही नहीं। तब से टीम खाली बैठी है। इस वक्त हॉस्टल में सिर्फ 25 बच्चे बचे हैं, जबकि क्षमता 120 की है। इन बच्चों को न्यूट्रीशन सपोर्ट भी अब उतना नहीं मिल पा रहा है जितना पहले मिलता था। वह तो बस स्थितियों के सामान्य होने का इंतजार कर रहे हैं।

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