मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा को पलीता लगा रहा संचालक खेल

प्रशिक्षकों की सुध लेने वाला कोई नहीं, आर.पी. सिंह और प्रमुख सचिव खेल कल्पना अवस्थी के खिलाफ लिखा योगी को पत्र

श्रीप्रकाश शुक्ला

लखनऊ। एक तरफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जहां उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने की दिशा में प्राणपण से जुटे हुए हैं वहीं उनके जाति भाई संचालक खेल आर.पी. सिंह उनकी मंशा को पलीता लगाने से बाज नहीं आ रहे। सेवामुक्त हुए साढ़े चार सौ खेल प्रशिक्षकों की सेवा बहाली न होने से उत्तर प्रदेश के खेल मैदान बदहाली का शिकार हैं तो दूसरी तरफ प्रशिक्षकों के परिजन खून के आंसू रो रहे हैं।

ज्ञातव्य है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अपील को नजरअंदाज करते हुए संचालनालय खेल उत्तर प्रदेश ने 25 मार्च को लगभग साढ़े चार सौ प्रशिक्षकों को सेवामुक्त करने का निर्णय लिया था। नियमतः इन प्रशिक्षकों की बहाली अप्रैल में ही हो जानी थी लेकिन इन्हें सेवा में लेने की बजाय प्रमुख सचिव खेल कल्पना अवस्थी और संचालक खेल आर.पी. सिंह की जुगलबंदी से खून के आंसू रोने को विवश किया जा रहा है। परेशान खेल प्रशिक्षकों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर न्याय की गुहार लगाई है। प्रशिक्षकों ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में प्रमुख सचिव खेल और संचालक खेल पर अनियमितता के आरोप लगाए हैं।  

खेल प्रशिक्षकों ने पत्र में लिखा है कि मुख्यमंत्री जी आपकी अध्यक्षता में तीन अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी व प्रशिक्षकों के साथ हुई बैठक में उत्तर प्रदेश में खेलों को बढ़ावा देने का निर्णय लिया गया था। उक्त बैठक में आपके द्वारा दिए गए सुझावों में एक सुझाव यह भी था कि खेल प्रशिक्षकों को 10 माह के लिए कार्यरत किया जाएगा तथा उन्हें दो माह के लिए प्रोफेशनल कोर्स कराया जाएगा। इतना ही नहीं आपने प्रशिक्षकों के शीघ्र नियमितीकरण का आश्वासन भी दिया था लेकिन खेल निदेशक आर.पी. सिंह और प्रमुख सचिव कल्पना अवस्थी की मिलीभगत से आपके दिशा-निर्देशों को ताक में रख दिया गया है।

इन दोनों ने अपनी मनमानी करते हुए वर्ष 2020-21 सत्र के लिए खेल प्रशिक्षकों के सामने एक नया जियो पारित कर दिया। इस जियो में एक पॉइंट यह है कि खेल प्रशिक्षकों को जेम पोर्टल के जरिए आउटसोर्सिंग द्वारा हर वर्ष नियुक्त किया जाएगा। दरअसल, यह नियमावली खेल निदेशक व प्रमुख सचिव खेल की मिलीभगत से बनाई गई है। यदि यह नियमावली लागू हो गई तो यूपी के खेल व खेल प्रशिक्षकों का भविष्य अंधकार में डूब जाएगा। प्रशिक्षकों ने पत्र में लिखा है कि मुख्यमंत्री जी यदि इस मामले में स्वतः संज्ञान नहीं लिया तो भुखमरी की कगार पर पहुंच चुके खेल प्रशिक्षकों के परिवार तबाह हो जाएंगे। देखा जाए तो पिछले छह माह से उत्तर प्रदेश के संविदा खेल प्रशिक्षकों को फूटी कौड़ी भी नसीब नहीं हुई है। मरता क्या न करता आज योग्य प्रशिक्षक अंडे और सब्जी के ठेले लगाने को विवश हैं। नई नियमावली पर शीघ्र ध्यान न दिया गया तो उत्तर प्रदेश के खेल प्रशिक्षक कहीं के नहीं रहेंगे। प्रशिक्षकों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को नई नियमावली भी प्रेषित की है।

देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में खेलों को सत्यानाश करने की पटकथा बहुत पहले ही लिख दी गई थी। अब उसे कार्यरूप में परिणित करने का काम संचालक खेल आर.पी. सिंह कर रहे हैं। दुखद तो यह है कि खेल प्रशिक्षकों की पीड़ा का संज्ञान अभी तक खेल मंत्री उपेन्द्र तिवारी ने भी नहीं लिया है। आर.पी. सिंह का विवादों से चोली-दामन का साथ रहा है। जब यह क्षेत्रीय क्रीड़ा अधिकारी थे तब इनके भ्रष्ट कारनामों पर खूब हल्ला मचा था। उम्मीद की जा रही थी कि योगी के शासन पर भ्रष्ट लोगों को खेल विभाग से दूर रखा जाएगा लेकिन आर.पी. सिंह को उप-मुख्यमंत्री की यारी का लाभ मिला और वह संचालक खेल बना दिए गए।

जिधर बम उधर हम की तर्ज पर चलने वाले आर.पी. सिंह पिछली सरकारों में भी जोड़-तोड़ का लाभ उठाते रहे हैं। पूर्व में इस अधिकारी की वित्तीय जांच के लिए खेल निदेशालय पहुंची ऑडिट टीम को पूर्व खेलमंत्री अयोध्या प्रसाद पाल ने अपने आदेश से बिना जांच किए वापस करा दिया था। पेशेवर बेशर्मी की हद देखिए कि तब के खेल मंत्री ने बाकायदा खेल सचिव को आदेश दे दिया कि क्षेत्रीय क्रीड़ा अधिकारी लखनऊ आर.पी. सिंह के लखनऊ के कार्यकाल की ऑडिट नहीं की जाएगी। सुना जाता है कि वित्तीय शिकायतों के आधार पर इनको इस पद से हटाने के लिए आख्या सहित मुख्यमंत्री कार्यालय से प्रस्ताव मांगा गया था मगर खेलमंत्री के इशारे पर खेल निदेशक कुंवर विक्रम सिंह ने इन्हें बचाते हुए वो खेल दिखाया कि यह प्रस्ताव आया गया हो गया।

ऑडिट एक ऐसा संवेदनशील मामला माना जाता है, जिसमें आमतौर पर सरकार हस्तक्षेप नहीं करती है क्योंकि यह जनता के पैसे के सदुपयोग या दुरूपयोग से जुड़ा विषय होता है। आर.पी. सिंह को बचाने के मामले में खेलमंत्री अयोध्या प्रसाद पाल ने पहले तो आडिट रोकने का कोई आदेश देने से अनभिज्ञता जताई थी बाद में तर्क दिया था कि आर.पी. सिंह उनका अपना खास आदमी है, बसपा की मदद करता है, इसलिए उसकी मदद की है। खेलमंत्री का कहना था कि उसके खिलाफ उनके पास कोई शिकायत नहीं है, तो फिर प्रश्न यह कि शासन के वित्त विभाग से उनके कार्यकाल का वित्तीय ऑडिट कराने के आदेश क्या यूं ही हो गए? तब मंत्रीजी का कहना था कि हम ऐसे आदेशों की कोई परवाह नहीं करते हैं, हमें बहनजी का आशीर्वाद प्राप्त है और कोई बात हो तो बताइए। बात सही भी लगती है कि आखिर आर.पी. सिंह को उत्तर प्रदेश के तीन प्रमुख क्षेत्रीय क्रीड़ा अधिकारी मुख्यालयों लखनऊ, फैजाबाद और इलाहाबाद की किसलिए जिम्मेदारियां दी गईं थीं।

सच कहें तो आर.पी. सिंह खेलों का चौपट राजा है। बसपा के शासन में आर.पी. सिंह अपने आपको खेल मंत्री का पीआरओ बताते थे। जांच की जाए तो आर.पी. सिंह की तब की मोबाइल कॉल्स रिकार्ड में जरूर दर्ज होंगी। ज्ञातव्य है कि क्षेत्रीय क्रीड़ा अधिकारी आर.पी. सिंह के लखनऊ कार्यकाल की विशेष ऑडिट कराए जाने के लिए शासन के वित्त विभाग ने संख्या-आडिट 2272/दस/0-355(5)/09 दिनांक छह अगस्त, 2009 को निदेशक स्थानीय निधि लेखा परीक्षा विभाग इलाहाबाद को शासनादेश भेजा जिसकी प्रति सचिव खेल एवं निदेशक खेल को भी भेजी गई थी। शासनादेश में क्षेत्रीय क्रीड़ाधिकारी कार्यालय लखनऊ एवं उसके अधीन संचालित बालक/बालिका छात्रावास आदि की 30 सितम्बर, 1993 से 31 मार्च, 2009 तक के समस्त बजट आवंटन की विशेष संपरीक्षा (ऑडिट) तीन माह में पूर्ण कराए जाने को कहा गया था।

वित्त विभाग के इस आदेश के पूर्व तत्कालीन खेल निदेशक विनोद कुमार खरबंदा ने क्षेत्रीय क्रीड़ाधिकारी लखनऊ आर.पी. सिंह की वित्तीय अनियमितताओं के संबंध में प्रारंभिक जांच की थी और लिखित रूप में इसकी रिपोर्ट खेल सचिव को दी थी। तत्कालीन खेल सचिव राजन शुक्ला ने इसे वित्त विभाग को भेजा जिसने रिपोर्ट का गहन परीक्षण करने के बाद स्थानीय निधि लेखा परीक्षा निदेशक को ऑडिट कराने का आदेश दिया था। प्रश्न उठता है कि जब तत्कालीन निदेशक खेल और तत्कालीन सचिव खेल, क्षेत्रीय क्रीड़ाधिकारी आर.पी. सिंह की वित्तीय अनियमितताओं की जांच कर चुके थे और ऑडिट के लिए शासनादेश हो चुका था तो ऑडिट की कार्यवाही को कैसे रोका गया। दरअसल, पूर्व खेलमंत्री ने आर.पी. सिंह को इस संभावित आफत से बचाने के लिए ही ऑडिट नहीं कराने का आदेश दिया था।

अब सवाल यह उठता है कि क्या उत्तर प्रदेश में आर.पी. सिंह से योग्य व्यक्ति ही नहीं है। योगी सरकार को इस बात पर गौर करना चाहिए कि आर.पी. सिंह पर गंभीर वित्तीय अनियमितताओं और अनुशासनहीनता तक के आरोप लगने के बाद भी, संचालक खेल क्यों बनाया गया। खेलप्रेमियों को हम बता दें कि पूर्व खेल मंत्री अयोध्या प्रसाद पाल के खासमखास रहे आर.पी. सिंह कभी प्रतापगढ़ के बाहुबली मंत्री रहे रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के यहां चौबीस घंटे कप-प्लेट उठाते और उनके गुर्गों को खेल विभाग की जिम में फिज़िकल तथा मालिश करवाते दिखाई देते थे। इन्हें वास्तव में इसी रूप में जाना भी जाता है। बसपा की सरकार आने पर ये रातों-रात खेल मंत्री अयोध्या प्रसाद पाल के घर के आदमी हो गए थे। जो भी हो योगी आदित्यनाथ ने आर.पी. सिंह जैसे मतलबी को संचालक खेल बनाकर नेक कार्य नहीं किया है। आर.पी. सिंह अपने सहकर्मियों के बीच भी नकारात्मक छवि रखते हैं।

आर.पी. सिंह हॉकी के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी रह चुके हैं और वे इसी कोटे से खेल विभाग की सेवा में आए। सरकारी नौकरी में आने के बाद उनकी भूमिका जरूर बदल गई लेकिन खेल के प्रति उनकी जिम्मेदारियां नहीं बदलीं। उन्होंने हॉकी को प्रोत्साहन देने के अपने उत्तरदायित्व को भी किनारे कर दिया। उन पर जिम्मेदारी थी कि वे अपनी सरकारी जिम्मेदारियों के साथ-साथ नियमित रूप से हॉकी के नवोदित खिलाड़ियों को अपने अनुभवों का लाभ पहुंचाएंगे, लेकिन उन्होंने इसमें कभी दिलचस्पी नहीं ली बल्कि वे अक्सर नेताओं, मंत्रियों के यहां तथा सचिवालय में घूमते और चुगलखोरी करते जरूर देखे गए। कुछ मीडिया वालों के सामने माफियों और बदमाशों से अपने संबंधों का बार-बार बखान करने वाले आर.पी. सिंह की खेल के विकास में कभी कोई दिलचस्पी नहीं रही। खिलाड़ियों के लिए जिम जैसी सुविधाओं का लाभ भी उनके बदमाश किस्म के लोग ही उठाते रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के अतीत पर गौर करें तो तत्कालीन खेल निदेशक पद्मश्री के.डी. सिंह बाबू ने लखनऊ में उनके नाम से बने स्टेडियम में हाकी छात्रावास खोला था। उनमें निदेशक बनने के बाद भी नियमित रूप से खिलाड़ियों के बीच रहने और उन्हें टिप्स देने का जुनून रहता था। के.डी. सिंह बाबू के बाद दूसरे तत्कालीन खेल निदेशक पद्मश्री झम्मन लाल शर्मा स्वयं फील्ड में जमकर हाकी का प्रशिक्षण दिया करते थे जिसमें उस समय नौ खिलाड़ी जूनियर इंडिया टीम में हुआ करते थे, परंतु हॉकी के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी रहे आर.पी. सिंह कभी फील्ड पर जाकर हाकी का भला करते नहीं दिखे। पूर्व में खेलप्रेमियों को आशा थी कि ये प्रदेश के हाकी के स्तर को ऊंचा उठाएंगे, मगर ये नेताओं, मंत्रियों के गुर्गों के मनोरंजन को ही अपना कर्तव्य मान बैठे। इसे खेलों की विडम्बना कहें या कुछ और जो खुद कभी अनुशासित नहीं रहा उसे संचालक खेल बना दिया गया। मुख्यमंत्री योगी जी आंखें खोलिए वरना यह आर.पी. सिंह जैसे लोग खेलों का बंटाढार करने से बाज नहीं आएंगे।

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