कबड्डी सिर्फ खेल ही नहीं करियर भीः ममता पुजारी
बेटियों को सिर्फ मौके की तलाश
श्रीप्रकाश शुक्ला
नई दिल्ली। अर्जुन पुरस्कार हासिल देश की अग्रणी महिला कबड्डी खिलाड़ी ममता पुजारी कबड्डी को सिर्फ खेल ही नहीं बेहतर करियर भी मानती हैं। महिला कबड्डी चैलेंज प्रतियोगिता को एक नए युग की शुरुआत मानने वाली ममता कहती हैं कि जब लीग में बड़े लोग कबड्डी मुकाबले देखने आते हैं तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता। ममता लड़कियों के लिए खेलों का सबसे अच्छा विकल्प मानते हुए समाज से आह्वान करती हैं कि बेटियों को भी खेलों में पर्याप्त प्रोत्साहन मिलना चाहिए।
ममता पुजारी की जहां तक बात है इनका जन्म 1986 में कर्नाटक के उडुपी में कर्कला तालुक जिले में एक किसान बोजा पुजारी और किट्टी पुजारी के घर हुआ। वह वर्तमान में दक्षिण मध्य रेलवे में कार्यरत हैं। ममता ने हर्मंडे और अजेकर में शिक्षा ग्रहण करने के बाद गोकर्णथा कॉलेज, मंगलौर से स्नातक की उपाधि हासिल की। ममता को बचपन से ही खेलों से लगाव रहा। अपने स्कूल के दिनों से ही वह वालीबाल, शॉटपुट और कबड्डी जैसे खेलो में सक्रिय रूप से सहभागिता करती रहीं। ममता बताती हैं कि कबड्डी के लिए मुझमें जुनून था। यही जुनून मेरी सफलता का कारण भी बना।
ममता कहती हैं कि खेल समय की बर्बादी नहीं है। मुझे खेलों से जो हासिल हुआ वह शायद अन्य किसी चीज से कतई हासिल नहीं होता। कर्नाटक सरकार द्वारा राज्य के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान-राज्योत्सव प्रशस्ति से नवाजी जा चुकी ममता कहती हैं कि महिला कबड्डी चैलेंज ने महिला खिलाड़ियों को एक ऐसा प्लेटफार्म उपलब्ध कराया है, जिसकी जितनी तारीफ की जाए कम है। इस लीग ने देश को यह दिखाएगा कि महिला कबड्डी खिलाड़ियों का स्तर कैसा है।
साल 2010 और 2014 एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय टीम की सदस्य ममता ने कहा कि यह मिनी लीग हमें एक बेहतरीन प्लेटफार्म उपलब्ध करा रही है। हमने खुद को इस चुनौती के लिए भली-भांति तैयार किया है। ममता कहती हैं कि देश में महिला खिलाड़ियों की कमी नहीं है, यदि बेटियों को खेल के पर्याप्त अवसर मिलें तो वे भी देश का नाम रोशन कर सकती हैं। बकौल ममता हर क्षेत्र में आज चुनौतियां हैं ऐसे में खेलों की चुनौती को स्वीकारना सबसे आसान है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे अर्जुन अवार्ड हासिल होगा लेकिन मुझे ही नहीं अन्य कबड्डी खिलाड़ी भी इस सम्मान को हासिल कर चुकी हैं।
खुद को दर्जनों कैमरों, जुनूनी दर्शकों और ग्लैमर की चमक-दमक के बीच खेलने के लिए किस तरह तैयार करती हैं, इस सवाल के जवाब में ममता ने कहा कि हमें अच्छा लगता है जब बड़े लोग कबड्डी देखने आते हैँ। हमारे लिए यह बड़ा प्लेटफार्म है। दो मिनट के लिए तमाम चीजें हमें प्रभावित कर सकती हैं लेकिन अंत में हम अपने खेल पर ध्यान केन्द्रित कर अपनी टीम को विजयी बनाने की कोशिश करते हैं।
ममता कहती हैं कि महिला कबड्डी को भारत में 'महिला कबड्डी चैलेंज' ने एक नए सांचे में ढाला है और नए सिरे से लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाया है। लीग ने बताया कि बेटियों को मौका दिया जाए तो वे क्या कर सकती हैं। ममता कहती हैं कि कबड्डी खालिस भारतीय खेल है। इसकी शुरुआत भारत में ही हुई। कबड्डी की एक टीम में सात खिलाड़ी होते हैं। एक सांस में कबड्डी-कबड्डी कहते हुए दूसरी टीम के खेमे में जाना, वहां ज्यादा से ज्यादा खिलाड़ियों को छूकर वापस लौटना, आसान नहीं होता।
ममता कहती हैं कि फुटबॉल और हॉकी की तरह कबड्डी में भी ताकत और चपलता का जबरदस्त संगम चाहिए। क्रिकेट के दीवाने भारत में दूसरे खेलों की राह आसान नहीं बावजूद इसके मैं निराश नहीं हूं। मैं कबड्डी को महिला खिलाड़ियों के लिए एक बड़ा मौका मानती हूं। कबड्डी ही ऐसा खेल है जिसमें भारत ने लगातार पांच बार पुरुष कबड्डी वर्ल्ड कप तो महिला टीम ने लगातार चार बार वर्ल्ड कप पर कब्जा जमाया है। ममता बताती हैं कि लीग से महिला कबड्डी को एक नई दिशा तथा देश के घर-घर में नई पहचान मिली है। भारत की महिला कबड्डी टीम ने 2010 और 2014 में हुए एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक हासिल किया तो 2012, 2013 और 2014 में हुए विश्व कप में तिरंगा लहराया था। ममता पुजारी कहती हैं कि कबड्डी खेल में दुनिया भर में देश का गौरव बढ़ाने के बाद भी महिला खिलाड़ियों को एक विजेता योद्धा नहीं माना जाना दुर्भाग्यपूर्ण है।