चक्काफेंक का राष्ट्रीय रिकार्ड आज भी पद्मश्री कृष्णा पूनिया के नाम

कोई महिला एथलीट आसपास भी नहीं पहुंची

श्रीप्रकाश शुक्ला

ग्वालियर। शादी और बेटे के जन्म के बाद अपने पति वीरेन्द्र सिंह पूनिया से एथलेटिक्स के गुर सीखने वाली पद्मश्री और सादुलपुर से कांग्रेस की कद्दावर विधायक डा. कृष्णा पूनिया का चक्काफेंक का राष्ट्रीय रिकार्ड आठ साल बाद भी नहीं टूटा है। रिकार्ड टूटना तो अलग बात है इसके आसपास भी कोई महिला एथलीट नहीं पहुंची है। कृष्णा पूनिया ने 64.76 मीटर दूर चक्का फेंकने का कीर्तिमान पांच मई, 2012 को अपने नाम किया था।

चक्काफेंक के राष्ट्रीय कीर्तिमान की बात करें तो ओवर आल यह उपलब्धि कृष्णा पूनिया के ही नाम है। नेशनल ओपेन एथलेटिक्स में चक्काफेंक का रिकार्ड नीलम सिंह (61.17 मीटर) तो नेशनल इंटर स्टेट एथलेटिक्स का रिकार्ड भी नीलम जे. सिंह (62.49 मीटर) के नाम ही दर्ज है। नेशनल फेडरेशन कप का कीर्तिमान सीमा पूनिया (61.05 मीटर) ने अपने नाम कर रखा है लेकिन यह दोनों महिला एथलीट कृष्णा पूनिया के 64.76 मीटर रिकार्ड से बहुत पीछे हैं।

खेल की दुनिया में भारतीय परचम लहराने वाली डा. कृष्णा पूनिया राजनीति में भी अच्छे कामकाज के लिए जानी जाती हैं। कृष्णा पूनिया चक्का फेंक खिलाड़ी रही हैं। तीन बार ओलम्पिक में हिस्सा ले चुकी कृष्णा के नाम ओलम्पिक पदक तो नहीं है लेकिन इस खेल का राष्ट्रीय रिकार्ड इन्हीं के नाम है। विधायक कृष्णा पूनिया ने 2004, 2008 और 2012 ओलम्पिक खेलों में हिस्सा लिया था। 2010 में इन्होंने दिल्ली में हुए राष्ट्रमण्डल खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर महिला एथलेटिक्स में एक नई उपलब्धि हासिल की थी। ऐसा करने वाली वह पहली भारतीय महिला एथलीट हैं।

कृष्णा पूनिया मूलतः हरियाणा की हैं। इनका जन्म पांच मई, 1977 को हिसार जिले के अग्रोहा गांव में हुआ था। जब यह नौ साल की थीं तभी इनकी मां का देहावसान हो गया था। इनका पालन-पोषण इनके पिता और दादी ने मिलकर किया। घर पर खेती होती थी, इसलिए वह परिवार के साथ खेतों में भी काम करती थीं। सच कहें तो वहीं से कृष्णा की फिजिकल ट्रेनिंग हुई। पिता की डेयरी थी, जिसमें 80 भैंसें बंधी होती थीं। जब यह 15 साल की थीं, तभी से पिता के साथ डेयरी के काम में हाथ बंटाना शुरू कर दिया था। साल 2000 में इनकी शादी वीरेन्द्र सिंह पूनिया के साथ हुई, जोकि राजस्थान के चुरू जिले के गगरवास गांव के हैं। शादी के बाद कृष्णा राजस्थान की हो गईं।

वीरेन्द्र सिंह पूनिया खुद एथलीट थे। शादी के एक साल बाद कृष्णा को एक बेटा हुआ। पुत्र रत्न की प्राप्ति के बाद उनके पति वीरेन्द्र पूनिया ने ही कृष्णा को एथलेटिक्स में भाग्य आजमाने के लिए प्रोत्साहित किया। साथ ही उन्हें कोचिंग भी दी। साल 2006 में दोहा एशियन गेम्स में कृष्णा पूनिया ने डिस्कस थ्रो में कांस्य पदक जीता तो 2010 में दिल्ली में हुए राष्ट्रमण्डल खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर सफलता की एक नई कहानी लिखी। कृष्णा पूनिया को वर्ष 2010 में अर्जुन तो 2011 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

कृष्णा ने साल 2013 में कांग्रेस पार्टी में प्रवेश लिया। 2013 में राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इन्हें टिकट भी दिया। कृष्णा ने सादुलपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं। फिर साल 2018 में इसी सीट से कांग्रेस के ही टिकट पर दोबारा चुनाव लड़ा और 18 हजार से अधिक वोटों से जीत का परचम फहरा दिया। कृष्णा पूनिया जयपुर ग्रामीण से ओलम्पिक पदकधारी राज्यवर्धन सिंह राठौर के खिलाफ लोकसभा चुनाव भी लड़ चुकी हैं, जिसमें उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा।

खेल से राजनीति में आने वाली कृष्णा पूनिया कहती हैं कि दोनों ही क्षेत्रों में बहुत मेहनत लगती है। स्पोर्ट्स आप अपने लिए और देश के लिए खेलते हो लेकिन राजनीति में आप जनता के लिए मेहनत करते हो। लोगों के मन में भरोसा और विश्वास पैदा करने के लिए हम दिन-रात मेहनत करते हैं। स्पोर्ट्स में हम ये समझ सकते हैं कि हमने कितनी ट्रेनिंग ली है और कितनी ट्रेनिंग जीतने के लिए जरूरी है लेकिन राजनीति में जीत के बाद आपको मेहनत का अहसास होता है।

 

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