पहलवानी में दिव्य ज्योति जैसी दमकी दिव्या

अर्जुन अवार्ड की सिफारिश
खेलपथ प्रतिनिधि
नई दिल्ली। कहते हैं कि मुफलिसी सपनों के साकार होने में सबसे बड़ा अवरोध होती है। यह सही भी है लेकिन हमारे समाज में बहुत से ऐसे लोग हुए हैं जिन्होंने गरीबी से परे कामयाबी की दास्तां लिख अपने देश को गौरव शिखर पर पहुंचा कर ही दम लिया है। ऐसा ही जज्बा दिखाया है उत्तर प्रदेश की पहलवान बिटिया दिव्या काकरान ने। दिव्या की जांबाजी को सलाम करते हुए उसे इस बार अर्जुन अवार्ड देने की अनुशंसा की गई है।
माता-पिता हमेशा उस कुम्हार की तरह होते हैं जो ऊपर से आकार देते हैं तो पीछे से हाथ लगाकर सुरक्षात्मक सहयोग। खुद धूप-छांव सब सहते हैं पर अपने कच्चे घड़े को दीन-दुनिया के अपने अनुभव से पका कर ही दम लेते हैं। दिव्या की माता संयोगिता और पिता सूरज पहलवान ने अपनी बिटिया के सपने को पूरा करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। मां खुद लंगोट की सिलाई किया करती थीं तो पिता उन्हीं लंगोटों को अखाड़ों में जाकर बेचा करते थे। दिव्या के लिए उसके माता-पिता ने न जाने कितनी रातें भूखे पेट काटीं ताकि बेटी के सपनों को आसमान मिल सके। 
दिव्या बताती हैं कि मैं अब तक छोटे स्तर से लेकर बड़े स्तर तक करीब 72 के आसपास पदक हासिल कर चुकी हूं। अंतरराष्ट्रीय कुश्ती में 14 पदक भारत के नाम किए हैं, जिसमें पांच स्वर्ण, चार रजत व पांच कांस्य पदक शामिल हैं। उन्होंने कॉमनवेल्थ गेम्स व एशियन गेम्स में कांस्य पदक जीते हैं। उनकी उपलब्धियों को देखते हुए उनके नाम की सिफारिश अर्जुन अवॉर्ड के लिए की गई। दिव्या कहती हैं, असल में माता-पिता की मेहनत आज रंग लाई है, जो सपना माता-पिता ने देखा था आज वो पूरा होने जा रहा है।
दिव्या बताती हैं कि माता-पिता पहलवानों के लिए लंगोट तैयार करते थे। मां संयोगिता कटिंग व सिलाई का काम करती थीं, पिता सूरज उन्हें अखाड़ों में जाकर पहलवानों को बेचा करते थे। उनके पास रोजगार और आय का यही एकमात्र जरिया था जो परिवार चलाने के लिए नाकाफी था। लेकिन, इसी के सहारे माता-पिता ने उन्हें पहलवान बनाया। धीरे-धीरे सफलता हाथ लगने लगी तो खुद-ब-खुद पहचान भी बन गई।
पिता सूरज पहलवान बताते हैं कि वह मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर स्थित पुरबालियान गांव के रहने वाले हैं। करीब 20 साल से दिल्ली के यमुनापार स्थित ईस्ट गोकलपुर गांव में परिवार के साथ एक किराये के मकान में रह रहे हैं। वह बताते ही कि गांव में खुद कुश्ती किया करते थे, लेकिन कभी कामयाबी नहीं मिली। इसलिए अपने सपने को पूरा करने के लिए बच्चों को पहलवानी में उतार दिया। परिवार में दो बेटे व एक बेटी हैं और तीनों ही पहलवान हैं, लेकिन कभी यह नहीं सोचा था कि उनके बेटों के बजाय बेटी पहलवानी के क्षेत्र में मुकाम हासिल कर उनका राम रोशन करेगी।
सीनियर टिकट कलेक्टर है दिव्या
शाहदरा जंक्शन के चल टिकट परीक्षक (टीटीआई) रामेश्वर सिंह ने बताया कि दिव्या काकरान दिल्ली के शाहदरा रेलवे स्टेशन पर सीनियर टिकट कलेक्टर के पद पर कार्यरत है और अब रेलवे बोर्ड की तरफ से खेलती हैं। दिव्या के नाम की सिफारिश अर्जुन अवॉर्ड के लिए होने पर भारतीय रेलवे के सभी स्टाफ में हर्ष का माहौल है। उन्होंने कहा कि अगर बेटियों को बेहतर मंच और अवसर दिए जाएं तो वे भी सिद्ध करके दिखा सकती हैं कि बेटियां किसी भी क्षेत्र में बेटों को टक्कर व मात दे सकती हैं।
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