हारुन रशीद के रूप में ताजनगरी को मिला आवाज का नया जादूगर
दिव्यांग क्रिकेट की आन-बान-शान हैं हारुन भाई
श्रीप्रकाश शुक्ला
आगरा। हारुन रशीद का नाम जुबां पर आते ही मेरे दिलो-दिमाग में एक ऐसी शख्सियत की कार्यशैली छा जाती है जिसने सोते-जगते सिर्फ दिव्यांग क्रिकेटरों की बेहतरी के ही सपने देखे हैं। कहने को हमारे देश में दिव्यांग क्रिकेटरों के कई माई-बाप हैं लेकिन जो बात मैंने हारुन रशीद में देखी है, उसका एकांश भी दूसरों में नजर नहीं आता। वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण से जहां दुनिया ठहर सी गई है वहीं हारुन रशीद ने इस दरमियां अपनी आवाज से ताजनगरी ही नहीं मायानगरी को भी अपना कायल बना लिया है। वैसे मुझे गीत-संगीत से खास लगाव नहीं है लेकिन जैसे ही मैंने हारुन रशीद जी को सुना दिल किया कि उनके विषय में कुछ लिखूं।
संगीत एक साधना है और सुर भगवान का दिया आशीर्वाद। यह आशीर्वाद हर किसी को नहीं मिलता लेकिन जिसमें इच्छाशक्ति हो उसके लिए असम्भव कुछ भी नहीं है। दिव्यांग क्रिकेटरों के हमदर्द हारुन रशीद ने पिछले चार महीने में अपनी साधना से जो कुछ हासिल किया है उसे हासिल करने के लिए सारी जिन्दगी भी कम पड़ जाती है। कोरोना संक्रमणकाल में हारुन जी ने जो साधना की है उसी का सुफल है उनकी सुरीली आवाज। वैसे तो हारुन जी ने इस मुकाम को हासिल करने के लिए कई लोगों की आवाज पर रियाज किया लेकिन मायानागरी के स्टारमेकर आदिश्वर जैन के कहने पर उन्होंने किशोर कुमार के गीतों पर जो समां बाधा है, वह वाकई प्रशंसनीय है।
हारुन रशीद की सुर और ताल में सजी आवाज ने जिस तरह से मेरा मन मोहा है, मुझे पूरा यकीन है कि उनकी आवाज संगीतप्रेमियों को भी न केवल रास आएगी बल्कि उन्हें जरूर गुदगुदाएगी। हारुन रशीद की गायकी को सुनकर मुझे भाई अशोक ध्यानचंद याद आ गए। पाठकों को हम बता दें अशोक ध्यानचंद हाकी के शानदार खिलाड़ियों में शुमार होने के साथ ही बहुत अच्छे गायक भी हैं। देखा जाए तो हारुन भाई का गायकी में कोई गुरु नहीं है लेकिन इन्होंने गायकी में जो कमाल किया है, वह अपने आप में बहुत बड़ी बात है। पिछले चार महीने में हारुन भाई ने लता मंगेशकर और आशा भोंसले के गीतों पर भी रियाज किया है। लता मंगेशकर और आशा भोंसले ने अपने गायिकी के सफर में हिन्दी सिनेमा को ऐसे कई गीतों का खजाना दिया है जिसे लोगों ने अपने दिलों में आज भी संजो कर रखा है।
सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर को तो पांच वर्ष की आयु से ही गायिकी विधा में पारंगत करने की कोशिशें शुरू हो गई थीं लेकिन हारुन रशीद ने पचपन के पन में आकर जो हासिल किया है वह किसी सौगात से कम नहीं है। हारुन रशीद भाई की सुरीली आवाज, जानदार अभिव्यक्ति और बात को बहुत जल्द समझ लेने वाली उनकी अविश्वसनीय क्षमता की जितनी तारीफ की जाए कम है। देखा जाए तो हारुन रशीद का क्षेत्र गीत-संगीत तो बिल्कुल ही नहीं है। वह दिव्यांग क्रिकेट को अपने जीवन का हिस्सा और संकल्प बना चुके हैं ऐसे में उनका गायकी सफर कितना लम्बा चलेगा कहना थोड़ा मुश्किल है। जिस उम्र में लोग प्रायः विश्राम की सोचते हैं उस अवस्था में एक नया हारुन बनना ताजनगरी के लिए ही नहीं खेलजगत के लिए भी बहुत बड़ी बात है।
किशोर कुमार की बात करें तो वह एल.एल. सहगल के बहुत बड़े प्रसंशक थे। किशोर अपना गुरु सहगल को ही मानते थे और उन्हीं की गायन शैली का अनुकरण भी करते थे। हारुन रशीद की गायकी का कोई गुरु नहीं है। हां किशोर कुमार का फिल्म जगत में प्रवेश जिस तरह किसी औपचारिक प्रशिक्षण के हुआ उसी तरह हारुन रशीद भाई भी गायकी के क्षेत्र में बिना किसी गुरु के पारंगत हो रहे हैं। किशोर कुमार ने अपने अभिनय की शुरुआत 1946 में रिलीज हुई फिल्म शिकारी से की थी तब वह महज 17 साल के थे जबकि हारुन रशीद ने गायकी की शुरुआत पचपन की उम्र में की है। किशोर कुमार की आंतरिक प्रतिभा पार्श्व गायकी का इस्तेमाल फिल्म मशाल के दौरान एस.डी. बर्मन ने बखूबी किया था तो हारुन रशीद की हौसलाअफजाई स्टारमेकर आदिश्वर जैन ने की है। हारुन भाई का नया रूप बेशक मुझे काफी पसंद आया है लेकिन मेरी गुजारिश है कि वह दिव्यांग क्रिकेट को अपनी सेवाएं अनवरत जारी रखें। गीत-संगीत को सिर्फ आत्मशांति तक ही सीमित रखें क्योंकि खेल-जगत को उनसे बहुत उम्मीदें हैं।