डा. आराधना ने खेलों को बनाया अपनी आराधना
खेल-शिक्षा दोनों में दिखाई शानदार प्रतिभा और मेधा
नूतन शुक्ला
कानपुर। खेलों में कानपुर बेशक राष्ट्रीय स्तर पर पहचान को मोहताज हो लेकिन यहां के सैकड़ों शारीरिक शिक्षक अपनी मेधा और मेहनत से छात्र-छात्राओं को इस दिशा में निरंतर प्रेरित कर रहे हैं। ऐसे ही शारीरिक शिक्षकों में डा. आराधना सक्सेना का भी शुमार है। इन्होंने अध्ययन के समय में जहां खेलों में अपनी अलग पहचान बनाई वहीं अब शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में छात्र-छात्राओं को पूर्ण मनोयोग से सेवाएं दे रही हैं।
डा. आराधना सक्सेना ने खेलपथ को जो बातें बताईं उनसे उनके जज्बे का ही पता चलता है। आराधना ने अपने मम्मी-पापा की इच्छा के कारण छोटे से कस्बे पुखरायां से कानपुर में आकर पढ़ाई की और पढ़ाई में हमेशा अपनी मेधा का परचम फहराया। आराधना अपने छह भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं। इन्होंने शिशु मंदिर से अपनी शिक्षा की शुरुआत करते हुए खेलकूद, नृत्य, वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में शिरकत करते हुए न केवल दर्जनों पदक जीते बल्कि अपने बहुमुखी प्रतिभा होने का संकेत भी दिया। आराधना ने कम उम्र में ही प्रयागराज संगीत विद्यालय से कत्थक का कोर्स किया और कत्थक सम्राट बिरजू महाराज से पुरस्कृत हुईं। आठवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में विज्ञान,गणित,अंग्रेजी जैसे विषयों में विशेष योग्यता हासिल करने के बाद परिवार ने निर्णय लिया कि अब वह खेलों की बजाय विज्ञान विषय लेकर सिर्फ पढ़ाई करेंगी।
आराधना बताती हैं कि नौवीं कक्षा में एम.जी. सिविल लाइंस में प्रवेश लेने के बाद उन्हें क्रीड़ा-अध्यापिका अवस्थी मैडम का मार्गदर्शन मिला और उन्होंने पढ़ाई के साथ खेलों में भी हिस्सा लेना शुरू कर दिया। आराधना बताती हैं कि उनकी खेलों की शुरुआत ही सीनियर नेशनल से हुई। गुरु अजय शंकर दीक्षित के कुशल नेतृत्व, प्रशिक्षण और संरक्षण में हमने खो-खो खेलना शुरू किया। खो-खो में सब जूनियर, जूनियर तथा सीनियर स्तर की राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में शानदार प्रदर्शन के चलते मुझे कई बार "बेस्ट चेजर" का पुरस्कार मिला। आराधना ने खो-खो के साथ ही दिनेश भदौरिया से प्रशिक्षण हासिल कर 200 मीटर, 400 मीटर और लम्बीकूद स्पर्धाओं में राज्यस्तर पर प्रतिभाग करते हुए कई मेडल जीते। इन्होंने राज्यस्तर पर वालीबाल, कबड्डी, हैंडबॉल प्रतियोगिताओं में भी अपना जौहर दिखाया।
इण्टर की शिक्षा पूरी करने के बाद आराधना ने स्नातक की पढ़ाई के लिए आचार्य नरेन्द्र देव महाविद्यालय में प्रवेश लिया। यहां शमीम रिजवी मैडम के संरक्षण में खो-खो, हैंडबॉल, वालीबाल और कबड्डी में दक्षता हासिल कर आराधना कानपुर यूनिवर्सिटी की तरफ से कई बार इंटर यूनिवर्सिटी प्रतियोगिताएं खेलीं। इन्होंने खो-खो और हैंडबॉल में कानपुर यूनिवर्सिटी का भी प्रतिनिधित्व किया। आराधना को विज्ञान स्नातक की डिग्री में प्रथम स्थान हासिल करने पर जिलाधिकारी द्वारा कालेज कैप्टन का पुरस्कार भी प्रदान किया गया। विभिन्न खेलों में अपनी प्रतिभा का शानदार आगाज करने के बाद इन्होंने वीरेंद्र स्वरूप पार्क में सगीर और जहीर सर से क्रिकेट का प्रशिक्षण लिया और अपनी आफ स्पिन गेंदों से अच्छे से अच्छे बल्लेबाजों के पैर उखाड़े। आराधना को शानदार गेंदबाजी के चलते कई बार सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज का पुरस्कार भी मिला। क्रिकेट में इन्हें सीनियर क्रिकेटर सीमा सिन्हा का सही मार्गदर्शन मिलने के बाद इनकी जिन्दगी को नई दिशा मिली। आराधना ने ताउम्र खेलों से जुड़े रहने और अपने करियर को नई दिशा देने का इरादा बनाया ही था कि उसी समय इनकी इकलौती बहन की मृत्यु हो गई और इन्हें बाहर जाकर शिक्षा हासिल करने का इरादा त्यागना पड़ा। परिवार की मनाही के बाद बीपीएड करने का इरादा बदलते हुए इन्होंने डी.ए.वी. कालेज से बाटनी से एम.एस.सी. किया।
एम.एस.सी. करने के बाद आराधना ने दो वर्ष बाद परिवार से अनुमति लेकर जबलपुर के रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के शारीरिक शिक्षण विभाग में बी.पी.एड. करने के लिए प्रवेश लिया। यहां इन्हें सहेली सारिका और उसके परिवार ने विशेष सहयोग दिया। दूसरे शहर में रहना और हास्टल के माहौल में सामंजस्य बिठाने में सीनियर रेनू भदौरिया और गरिमा ने मदद की। आराधना बताती हैं कि वहां हैंडबॉल को उन्होंने विशिष्ट खेल चुना और जबलपुर विश्वविद्यालय की टीम से अंतर विश्वविद्यालय प्रतियोगिता में कई बार शिरकत करते हुए एक बार आल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी टूर्नामेंट्स में तृतीय स्थान भी हासिल किया। मेधावी आराधना को बीपीएड और एमपीएड में सबसे अधिक अंक लाने पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री और राज्यपाल के हाथों सम्मानित होने का गौरव भी हासिल है। आराधना इसे अपने जीवन का सबसे अविस्मरणीय लम्हा बताती हैं।
दोनों डिग्रियों में स्वर्ण पदक मिलने के बाद अपने परिजनों और गुरुजनों की समझाइश के बाद इन्होंने जबलपुर विश्वविद्यालय में शारीरिक शिक्षा विषय से डा. अलका नायक के निर्देशन और डॉ. आर.के. यादव के मार्गदर्शन में पी.एच.डी. शुरू की। पी.एच.डी. करते हुए ही इन्होंने जबलपुर में ही केंद्रीय विद्यालय नम्बर एक में शारीरिक शिक्षक के रूप में छह वर्ष तक अपनी सेवाएं दीं। यहां से अनुभव हासिल करने के बाद आराधना ने 2009 में महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय के शारीरिक शिक्षा विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर और इंचार्ज के रूप में पदभार सम्हाला। यहां इन्होंने पांच वर्ष अपनी सेवाएं दीं। 2012 में राज्यपाल के हाथों पी.एच.डी. की उपाधि हासिल करने के बाद आराधना सक्सेना डा. आराधना सक्सेना बनीं। इसी साल वैवाहिक बंधन में बंधने और पारिवारिक जिम्मेदारियों के निर्वहन के चलते इन्हें विश्वविद्यालय से अवकाश लेना पड़ा।
खुशी की बात यह रही कि इन्हें उसी समय कानपुर में हरसहाय कालेज में अतिथि व्याख्याता के रूप में बी.एड. में शारीरिक शिक्षा विषय पढ़ाने का सुअवसर मिल गया। आराधना कहती हैं कि उनके जीवन में कई बार उतार-चढ़ाव आए लेकिन उनके परिजनों ने हमेशा उनका हौसला बढ़ाया और कभी हिम्मत नहीं हारने दी। डा. आराधना सक्सेना छह वर्ष बाद पुनः महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय से जुड़कर शारीरिक शिक्षा विभाग में विभागाध्यक्ष के रूप में सेवाएं दे रही हैं। आराधना कहती हैं कि क्षेत्र कोई भी हो महिलाओं को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हमें समस्याओं से घबराने की बजाय उनका डटकर सामना करना चाहिए और अपनी मंजिल हासिल करनी चाहिए।