शटलर निधि ने पाई चुनौतियों पर फतह

खेलों के बाद व्यवसाय के क्षेत्र में जमाई धाक

मनीषा शुक्ला

कानपुर। हमारा समाज नारी शक्ति के उत्थान को लेकर बड़ी-बड़ी बातें तो करता है लेकिन इनकी राह में रोड़े अटकाने से कतई परहेज नहीं करता। क्षेत्र कोई भी हो महिलाओं के सामने चुनौतियां न कल कम थीं और न आज हैं। 1980 से 1990 के दशक में खेलों को अपना पैशन बनाने वाली धाकड़ खिलाड़ी निधि दुबे आज व्यवसाय के क्षेत्र में एक नजीर स्थापित कर रही हैं। सच कहें तो निधि दुबे जैसी महिलाएं ही आज समाज को अपनी कामयाबी से नई दिशा दिखा रही हैं।

क्षेत्र कोई भी हो महिलाओं के साथ हमेशा भेदभाव होता रहा है। आज के चार दशक पूर्व जब महिलाओं के लिए खेल का क्षेत्र पूरी तरह से वर्जित था उस समय एक कुलीन परिवार की बेटी ने न केवल खेलों को आत्मसात किया बल्कि अपनी सफलता से समाज को एक संदेश भी दिया। आज हम खेलों में जो परिवर्तन देख रहे हैं वह निधि दुबे जैसी जुनूनी नारी शक्ति से ही सम्भव हो सका है। कानपुर के विद्या मंदिर से खेलों की शुरुआत करने वाली निधि दुबे बताती हैं कि हमारे समय में बेटियों को मैदान तो क्या कहीं भी जाने की आजादी नहीं थी।  

आयकर कॉलोनी स्वरूप नगर, कानपुर निवासी निधि के पिता सेवानिवृत्त आयकर अधिकारी हैं। एक शिक्षित परिवार में जन्मीं और पली-बढ़ी निधि का एक भाई और एक बहन है। बकौल निधि 1980 के दशक में  खेलों के क्षेत्र में मेरे लिए कोई जगह नहीं थी लेकिन मुझे खेलों से लगाव रहा सो मैं न केवल खेली बल्कि पहली कक्षा से ही सफलताएं भी हासिल करना शुरू कर दिया। निधि लगभग हर खेल में शिद्दत से शिरकत करतीं थीं। निधि के खेलों में समर्पण और सफलताओं को देखते हुए इन्हें प्रायः हर खेल की कप्तानी करने का भी सौभाग्य मिला।

शटलर निधि वैसे तो हर खेल में दक्षता रखती थीं लेकिन इन्हें बैडमिंटन में विशेष दक्षता हासिल थी। बैडमिंटन के साथ निधि ने कबड्डी और एथलेटिक्स स्पर्धाओं में भी जमकर शोहरत हासिल की। कोई उम्मीद नहीं कर सकता कि एक लड़की एक से अधिक खेलों में शिरकत कर सफलता के शिखर तक पहुंचेगी। बहुमुखी प्रतिभा की धनी निधि दुबे ने अपने जोश और जुनून से न केवल खेल के मैदानों को अपना हमराही बनाया बल्कि हर खेल में सफलता का वरण भी किया।  

निधि 200, 400, 800 और 1500 मीटर दौड़ों में भी बराबर हिस्सा लेती रहती थीं। इन्होंने बैडमिंटन में कप्तान के रूप में तीन बार कानपुर विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व भी किया। निधि को कई राष्ट्रीय खेलकूद प्रतियोगिताओं में भी शिरकत करने का मौका मिला। निधि को शानदार सफलताओं के लिए कानपुर महानगर का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी पुरस्कार भी मिला।  निधि कहती हैं कि घर-परिवार की परवाह किए बिना मैं दो नावों (अध्ययन और खेल) की सवारी कर रही थी। मेरे लिए खुशी की बात है कि मैं खेलों के साथ पढ़ाई में भी बेहतर कर सकी। खेलपथ से बातचीत करते हुए निधि बताती हैं कि मेरा परिवार चूंकि अकादमिक पृष्ठभूमि का था सो मुझ पर खेलों की अपेक्षा पढ़ाई को लेकर प्रायः दबाव रहता था। निधि कहती हैं कि खेल मेरा पहला प्यार था लेकिन उस दौर में खेलों में करियर के बहुत कम मौके थे लिहाजा मुझे खेलों के अपने जुनून और जज्बे की आहुति देनी पड़ी।

निधि कहती हैं कि मेरे लिए खेलों को छोड़ना आसान नहीं था फिर भी माता-पिता की अपेक्षाओं और उम्मीदों को रोशन करने के लिए मुझे एमबीए की तालीम हासिल करने के लिए कानपुर से दिल्ली जाना पड़ा। शिक्षा पूरी करने के बाद निधि दुबे ने आठ साल तक एमएनसी में काम किया उसके बाद इन्होंने अपनी खुद की कंसल्टेंसी बनाई। निधि आज अपने खुद के व्यवसाय का सफल संचालन करते हुए शानदार जीवन जी रही हैं। अपने संदेश में निधि दुबे कहती हैं कि क्षेत्र कोई भी हो यदि आप में कुछ नया करने की इच्छाशक्ति है तो आपको सफलता से कोई नहीं रोक सकता। निधि कहती हैं कि आज की बेटियों को समाज में आए बदलाव का लाभ उठाना चाहिए। उन्हें स्वयं अपने लक्ष्य तय करने चाहिए।  

 

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