निशा शुक्ला की प्रबल इच्छाशक्ति को सलाम
मास्टर्स एथलेटिक्स में लगाई स्वर्णिम तिकड़ी
मनीषा शुक्ला
कानपुर। कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालों यारों। इन पंक्तियों को सही मायने में यदि किसी ने चरितार्थ किया है तो वह हैं जांबाज एथलीट निशा शुक्ला। खेलों से 12 साल दूर रहीं निशा ने 2019 में वाराणसी में हुई राज्यस्तरीय मास्टर्स एथलेटिक्स प्रतियोगिता में स्वर्णिम तिकड़ी लगाकर यह सिद्ध किया कि यदि इंसान में कुछ करने की प्रबल इच्छाशक्ति हो तो असम्भव को भी सम्भव में बदला जा सकता है। 12 साल खेलों से बिल्कुल दूर रहकर भी यदि कोई नारीशक्ति अपने कौशल से नायाब प्रदर्शन करे तो उसे न केवल समाज से शाबासी मिलना चाहिए बल्कि उसका हौसला भी बढ़ाया जाना जरूरी है।
निशा ने हर खिलाड़ी की तरह अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। कभी पारिवारिक जवाबदेहियों ने इनकी परीक्षा ली तो कई बार खुद भी निराशा के भंवरजाल में उलझ गईं। 1998 में कानपुर के कौशल्या देवी किदवई नगर से हाईस्कूल करने के बाद इन्होंने 2000 में के.के. इंटर कॉलेज से इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की। निशा ने आत्म-रक्षार्थ एक साल कराटे तो एक साल एनसीसी को भी दिया। इंटर करने के बाद निशा शुक्ला ने 2001 में स्नातक की पढ़ाई के लिए महिला महाविद्यालय में प्रवेश लिया और यहां हुई वार्षिक खेलकूद प्रतियोगिता की 100, 200 मीटर दौड़ों के साथ लम्बीकूद में स्वर्णिम सफलता हासिल कर कॉलेज चैम्पियन होने का गौरव हासिल किया।
इन सफलताओं ने निशा के इरादों को नई दिशा दी और वे 2002 में केके इंटर कॉलेज में चंद्रलेखा केशरवानी की देखरेख में खेल के गुर सीखने लगीं। एथलेटिक्स में निशा को निखारने का काम चंद्रलेखा के साथ अपने समय की बेजोड़ एथलीट रहीं इंदू मैडम ने भी पूरी शिद्दत से किया। इनकी प्रेरणा और हौसले से निशा ने 2001 में राज्यस्तरीय तो 2002 में हुई जिला स्तरीय खो-खो प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया। 2001 से 2003 तक निशा शुक्ला ने 15 से अधिक इंटर यूनिवर्सिटी खेलों में शिरकत कर एक नई पटकथा लिखी। निशा ने शिमला में वॉलीबाल तो कुरुक्षेत्र में ऑल इण्डिया कबड्डी में शानदार प्रदर्शन किया। वॉलीबाल का नेशनल लखनऊ में खेला जहां इनकी टीम को दूसरा स्थान प्राप्त हुआ। निशा 2003 में दूसरी बार कॉलेज चैम्पियन बनीं तो 2004 में इनका चयन हॉकी तो 2005 में बास्केटबॉल खेलने के लिए इंटर यूनिवर्सिटी के लिया हुआ।
खेलों में निशा बहुमुखी प्रतिभा की धनी थीं। इनका चयन 2005 में फुटबॉल के लिए भारतीय प्रशिक्षण शिविर के लिए भी हुआ लेकिन वह पारिवारिक दिक्कतों के चलते शिविर में हिस्सा नहीं ले सकीं। निशा ने 2005 में एस.एन. सेन कॉलेज से परास्नातक तो में सीएसजेएम यूनिवर्सिटी से बीपीएड किया। खेलों के लिहाज से निशा शुक्ला हरफनमौला खिलाड़ी रही हैं। इन्होंने एथलेटिक्स में दर्जनों मेडल जीते तथा 2006 में इनका चयन तमिलनाडु में हुई ऑल इंडिया एथलेटिक्स स्पर्धा की चार गुणा 100 मीटर रिले रेस के लिए भी किया गया।
निशा बीपीएड करने के बाद पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने के चलते 12 साल खेलों से पूरी तरह दूर रहीं। निशा बताती हैं कि घर में रहने के बाद हमेशा खेलों में वापसी का ही सपना देखती रहती। कई बार अपने सपनों को साकार करने के लिए मैंने स्कूल ज्वाइन किया लेकिन बेहतर शुरुआत न मिलने के चलते खेल छोड़ने पड़े। मैं बेहतर शुरुआत चाहती थी जो इतने वर्ष खेलों से दूर होने की वजह से नहीं हो पा रही थी। अंततः अप्रैल, 2019 में मैं वापस कानपुर आ गई और स्पोर्ट्स टीचर के पद पर कार्य करने लगी। निशा स्पोर्ट्स टीचर के रूप में सेवाएं देने के साथ वीएसएसडी कॉलेज नवाबगंज से एमपीएड भी कर रही हैं।
निशा शुक्ला शिक्षण-प्रशिक्षण के साथ एथलेटिक्स के क्षेत्र में भी कार्य कर रही हैं। इनके जोश और जज्बे का ही कमाल है कि इन्होंने 2019 में वाराणसी में हुई राज्यस्तरीय मास्टर एथलेटिक्स की फर्राटा दौड़ का स्वर्ण पदक जीतने के साथ 200 मीटर दौड़ तथा लम्बीकूद में भी स्वर्णिम सफलता हासिल की। निशा के बेजोड़ प्रदर्शन को देखते हुए इनका चयन गुजरात में नेशनल खेलने के लिए भी हुआ लेकिन व्यस्तता की वजह से शिरकत नहीं कर सकीं। बीते साल निशा वीएसएसडी कॉलेज की वार्षिक खेलकूद प्रतियोगिता की भालाफेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने में सफल रहीं। इन्होंने योगा में भी अपने आयु वर्ग में कानपुर योगा एसोसिएशन की ऑनलाइन प्रतियोगिता में प्रथम स्थान हासिल किया है। निशा ने खेलपथ को बताया कि इस साल उनका लक्ष्य हर हाल में मास्टर्स नेशनल एथलेटिक्स में स्वर्ण पदक जीतना है। वह कहती हैं कि जब तक जीवन है वे खेलों के लिए कुछ न कुछ करती ही रहेंगी।