आखिर नहीं मिल सकीं बलबीर सीनियर की अनमोल धरोहरें
1985 में दी थीं भारतीय खेल प्राधिकरण को
खेलपथ विशेष
नई दिल्ली। आखिरी समय तक उन्हें इंतजार था कि 1985 में भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) को दी गई अनमोल धरोहरें वह एक बार फिर देख सकेंगे, लेकिन पिछले आठ साल में तमाम प्रयासों के बावजूद महान हॉकी खिलाड़ी बलबीर सिंह की यह तमन्ना पूरी नहीं हो सकी। तीन बार के ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता बलबीर सीनियर का 95 वर्ष की उम्र में मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में सोमवार (25 मई) को निधन हो गया।
भाषा ने पांच साल पहले बलबीर सीनियर के हवाले से यह खबर दी थी कि उन्होंने 1985 में साइ को ओलंपिक ब्लेजर ,दुर्लभ तस्वीरें और पदक दिए थे। उन्होंने तत्कालीन साइ सचिव को ये धरोहरें दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में प्रस्तावित राष्ट्रीय खेल संग्रहालय के लिए दी थी, लेकिन वह संग्रहालय कभी बना ही नहीं।
उम्र के बावजूद खोई धरोहरों के लिए कर रहे थे भागदौड़
बलबीर सीनियर खुद इस मामले में कई खेलमंत्रियों और अधिकारियों से मिले और उनका नाती कबीर पिछले आठ साल से सैकड़ों ईमेल लिख चुका है, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात। पिछले छह दशक से अधिक समय से बलबीर सीनियर करीबी सहयोगी रहे खेल इतिहासकार सुदेश गुप्ता ने भाषा को बताया, ''उम्र और स्वास्थ्य समस्याओं के बावजूद बलबीर सीनियर खुद अपनी खोई धरोहरें पाने के लिए भाग दौड़ करने से पीछे नहीं हटे। दिल्ली से लेकर पटियाला तक हम हर जगह गए लेकिन कुछ नहीं हुआ।''
उन्होंने कहा, ''पिछले आठ साल में वह खुद कई खेल मंत्रियों और सभी खेल सचिवों से मिले और सभी ने सिर्फ आश्वासन दिया। पूर्व खेलमंत्री सर्वानंद सोनोवाल 2014 में जब चंडीगढ़ उनके घर उनसे मिलने आये थे, तब भी हमने यह मसला उठाया था। उनके साथ आए साइ अधिकारियों ने मामले की पूरी जांच का आश्वासन दिया था।''
करीब 100 दुर्लभ तस्वीरें भी थीं शामिल
इन धरोहरों में ओलंपिक पदक नहीं थे, लेकिन मेलबर्न ओलंपिक 1956 में कप्तान का ब्लेजर, टोक्यो एशियाड (1958) का रजत और करीब सौ दुर्लभ तस्वीरें थी। बलबीर सीनियर को लंदन ओलंपिक 2012 में जब आधुनिक ओलंपिक के महानतम 16 खिलाड़ियों में चुना गया तब वहां ओलंपिक म्युजियम में नुमाइश के लिए उनकी इन धरोहरों की जरूरत थी। तब पूछने पर साइ ने अनभिज्ञता जताई लेकिन जांच का वादा किया।
साई कार्यालयों में आरटीआई अभियान
बाद में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के वकीलों के समूह ने दिल्ली और राष्ट्रीय खेल संस्थान पटियाला के साइ कार्यालयों में आरटीआई अभियान चलाया। इनसे पुष्टि हो गई कि बलबीर सीनियर ने ये धरोहरें साइ को दी थी। कबीर ने बताया था कि इस मामले में पहली आरटीआई नौ दिसंबर 2014 को दाखिल की गई थी, जिसका जवाब पांच जनवरी 2015 को मिला जिसमें कहा गया था कि ऐसे किसी राष्ट्रीय खेल संग्रहालय की स्थापना का प्रस्ताव ही नहीं था और ना ही कोई सामान बलबीर सीनियर से मिला था। फिर 19 दिसंबर 2014 को दाखिल दूसरी आरटीआई का जवाब दो जनवरी 2015 को मिला जिसमें सामान मिलने की पुष्टि की गई थी। बाद की तमाम आरटीआई के जवाब भी विरोधाभासी रहे।
यह मसला सोशल मीडिया पर भी उठाया
बलबीर सीनियर की बेटी सुशबीर और हॉकी प्रेमियों ने भी लगातार यह मसला सोशल मीडिया पर भी उठाया, लेकिन उनकी खोई धरोहरें नहीं मिल सकी। बलबीर पहली ऐसी खेल हस्ती थे, जिन्हें देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। उन्हें 1957 में यह सम्मान दिया गया था। डोमिनिक गणराज्य ने 1956 मेलबोर्न ओलंपिक की याद में डाक टिकट जारी किया था जिसमें बलबीर और गुरदेव सिंह को जगह मिली थी।
2006 में सर्वश्रेष्ठ सिख खिलाड़ी चुना गया
तीन बार के ओलंपिक स्वर्ण विजेता बलबीर ने दिल्ली में हुए 1982 के एशियाई खेलों में एशियाड ज्योति प्रज्ज्वलित की थी। उन्हें वर्ष 2006 में सर्वश्रेष्ठ सिख खिलाड़ी चुना गया था। हालांकि, उन्होंने खुद को प्रखर राष्ट्रवादी बताते हुए पहले यह अवॉर्ड लेने से इनकार किया था कि वह धर्म आधारित अवॉर्ड लेने में विश्वास नहीं रखते हैं लेकिन भारतीय हॉकी के हित में उन्होंने यह अवॉर्ड स्वीकार कर लिया था।
मेजर ध्यानचंद लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड
वर्ष 2015 में बलबीर को उनकी शानदार उपलब्धियों के लिए मेजर ध्यानचंद लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड प्रदान किया गया था। वह आजाद भारत के सबसे बड़े हॉकी सितारों में से एक थे और उनकी तुलना हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद से की जाती थी। हालांकि दोनों कभी साथ नहीं खेले थे।
'भारत रत्न' से सम्मानित करने की मांग
बलबीर का जन्म 31 दिसम्बर 1923 को पंजाब के हरिपुर खालसा गांव में हुआ था। भारत को लगातार तीन ओलंपिक स्वर्ण दिलाने वाले बलबीर को पिछले कुछ सालों में भारत रत्न देने की मांग की जाती रही थी। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर बलबीर को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित करने की मांग की थी।
ओलंपिक में भारत को फिर ऊंचाई पर देखना चाहते थे
भारतीय हॉकी के स्वर्णिम दौर के सबसे मजबूत स्तंभों में से रहे बलबीर सिंह सीनियर का हॉकी के लिए प्यार उम्र के आखिरी पड़ाव तक जस का तस रहा और उनकी एकमात्र आखिरी इच्छा भारतीय टीम को ओलंपिक में नई ऊंचाइयां छूते देखने की थी। तीन बार के ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता बलबीर सिंह सीनियर का 95 वर्ष की उम्र में मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में सोमवार की सुबह निधन हो गया। चंडीगढ़ में उनके घर में प्रवेश करते ही दीवारों पर सजे उनके प्रशस्ति पत्र , शेल्फ में रखी ट्रॉफियां और उस दौर की दास्तां कहती तस्वीरें उनकी उपलब्धियों और भारतीय हॉकी में उनके कद की गाथा स्वत: ही कह देती हैं। लंदन ओलंपिक (1948), हेलसिंकी (1952) और मेलबर्न (1956) में स्वर्ण जीतने वाले बलबीर सीनियर 1975 में एकमात्र विश्व कप जीतने वाली भारतीय टीम के मैनेजर थे।
ब्रिटेन के खिलाफ फाइनल से पहले हुई थी खूब बारिश
बलबीर सीनियर ने लंदन ओलंपिक (1948) की यादें ताजा करते हुए भाषा को दिए इंटरव्यू में कहा था, ''मुझे अभी भी याद है कि वह दूसरे विश्व कप के तुरंत बाद खेला गया था। लोगों के लिए खानपान की पाबंदियां थीं, लेकिन खिलाड़ियों के लिए सब कुछ उपलब्ध था। ब्रिटेन के खिलाफ फाइनल से पहले खूब बारिश हुई थी। हमने शानदार टीम प्रयासों से फाइनल जीता था।''
जब तिरंगा ऊपर दा रहा था, तब भारतीय टीम के हर सदस्य की आंखें नम थीं
पदक वितरण समारोह के दौरान जब तिरंगा ऊपर की ओर जा रहा था तब भारतीय टीम के हर सदस्य की आंखें नम थीं। यह आजाद भारत का ओलंपिक हॉकी में पहला स्वर्ण था। बलबीर सीनियर ने उन लम्हों को याद करते हुए कहा था, ''मैं बता नहीं सकता कि हम सब के दिल में क्या चल रहा था। वह बस अनुभव किया जा सकता था। वह आजाद भारत का पहला ओलंपिक स्वर्ण था और गर्व से हमारी छाती चौड़ी हो गई थी।''
आखिरी ख्वाहिश भारतीय टीम को एक बार फिर ओलंपिक पदक जीतते देखना
रियो ओलंपिक 2016 से पहले उन्होंने 'भाषा से कहा था, ''मेरी आखिरी ख्वाहिश भारतीय टीम को एक बार फिर ओलंपिक पदक जीतते देखने की है। मुझे यकीन है कि हमारे खिलाड़ी यह करने में सक्षम है। उन्हें हार नहीं मानने के जज्बे के साथ खेलना होगा और मैं हर मैच में उनकी हौसलाअफजाई करूंगा।''
हेलसिंकी में नीदरलैंड के खिलाफ 5 गोल का रिकॉर्ड आज भी बरकरार
हेलसिंकी (1952) में उद्घाटन समारोह में भारतीय टीम के ध्वजवाहक रहे बलबीर ने सेमीफाइनल में ब्रिटेन के खिलाफ हैट्रिक लगाई और फाइनल में नीदरलैंड पर 6-1 से मिली जीत में पांच गोल दागे। वह रिकॉर्ड आज भी कायम है। हेलसिंकी ओलंपिक में बलबीर सीनियर ने भारत के 13 गोल में से नौ गोल दागे।
मेलबर्न ओलंपिक में थे टीम के कप्तान
चार साल बाद मेलबर्न में वह टीम के कप्तान थे और पहले मैच में पांच गोल दागने के बाद घायल हो गए थे। सेमीफाइनल और फाइनल उन्होंने खेला जब पाकिस्तान को एक गोल से लगातार भारत ने स्वर्ण पदकों की हैट्रिक लगाई। भारतीय पुरुष और महिला हॉकी टीम का शायद ही कोई ऐसा मैच हो जो उन्होंने नहीं देखा हो। समय समय पर वह खिलाड़ियों को मार्गदर्शन भी देते आए हैं। उन्हें यकीन था कि रियो में नाकामी के बाद भारत तोक्यो ओलंपिक में जरूर पदक हासिल करेगा, लेकिन कोरोना वायरस महामारी के कारण ओलंपिक एक साल के लिए टल गए।
ओलंपिक 2008 में भारतीय टीम के क्वॉलिफाई नहीं कर पाने से हुए थे दुखी
बीजिंग ओलंपिक 2008 में भारतीय टीम के क्वॉलिफाई नहीं कर पाने ने उन्हें आहत कर दिया था। इसके चार साल बाद लंदन ओलंपिक के दौरान आधुनिक ओलंपिक के 16 महानतम खिलाड़ियों में उन्हें चुना गया और सम्मानित किया गया, लेकिन तब भी भारतीय टीम के ओलंपिक में 12वें और आखिरी स्थान पर रहने का दुख उनके चेहरे पर झलक रहा था।
'विश्व हॉकी की बादशाहत फिर हासिल करना ही हमारा मकसद है'
भारतीय टीम जब 1975 में कुआलालम्पुर में विश्व कप खेलने की तैयारी कर रही थी, तब टीम मैनजर रहे बलबीर सीनियर ने अभ्यास शिविर के दौरान डोरमेट्री के दरवाजे पर सुर्ख लाल रंग से लिखवा दिया था, ''विश्व हॉकी की बादशाहत फिर हासिल करना ही हमारा मकसद है।'' भारतीय टीम ने कुआलालम्पुर विश्व कप में वही कर दिखाया था।
ओलंपिक इतिहास के 16 महानतम ओलंपियनों में शामिल
देश के महानतम एथलीटों में से एक बलबीर सीनियर अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति द्वारा चुने गए आधुनिक ओलंपिक इतिहास के 16 महानतम ओलंपियनों में शामिल थे। कौशल के मामले में मेजर ध्यानचंद के समकक्ष कहे जाने वाले बलबीर सीनियर आजाद भारत के सबसे बड़े खिलाड़ियों में से थे। वह और ध्यानचंद भले ही कभी साथ नहीं खेले, लेकिन भारतीय हॉकी के ऐसे अनमोल नगीने थे, जिन्होंने पूरी पीढ़ी को प्रेरित किया।
मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने की थी बलबीर को भारत रत्न देने की मांग
पंजाब के हरिपुर खालसा गांव में 1924 में जन्मे बलबीर को भारत रत्न देने की मांग लंबे अर्से से की जा रही है। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने तो इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा था।