शख्सियत,
ऑटो चालक की बेटी दीपिका कुमारी बनी गोल्डन गर्ल,
रांची। 13 जून 1994 को झारखंड की राजधानी रांची में जन्मी दीपिका कुमारी ने देश ही नहीं विदेशों में भी अपने राज्य का नाम रोशन किया। गरीबी में अपना बचपन बिताने वाली दीपिका के पिता रांची में ऑटो चलाते थे। पिछले कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने वाली दीपिका ने कई अन्य प्रतियोगिताओं में भी निशानेबाजी प्रतिस्पर्धा में पदक जीते हैं। बिल्कुल निचले पायदान से निशानेबाजी के खेल में शुरुआत करने वाली दीपिका आज अंतरराष्ट्रीय स्तर की शीर्ष खिलाडि़यों में से एक हैं। दीपिका को असली पहचान वर्ष 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान मिली, जहां उन्होंने रिकर्व ईवेंट में दो गोल्ड मेडल जीते थे। इसके अलावा दीपिका 2010 के एशियन गेम्स में कांस्य और फिटा आर्चरी विश्व कप में लगातार तीन बार रजत पदक जीत चुकी हैं।
बचपन में आमों पर लगाती थीं निशाना
बचपन में दीपिका कुमारी अपने गांव में पेड़ों पर लदे आमों पर निशाना लगाया करती थीं। निशाना इतना अचूक होता था कि साथी हैरान रह जाते थे। पेड़ की जिस शाखा के आम को तोड़ने के लिए कहा जाता था, वो उनके निशाने से सीधे नीचे आ टपकता था। धीरे-धीरे उन्हें लगने लगा कि वह तो तीरंदाजी के लिए ही बनी हैं। उन्हें वही करना चाहिए। पिता को उनकी ये बात पसंद नहीं आई। डांट भी पड़ गई। पर धुन की पक्की इस लड़की ने बांस के तीर-धनुष लेकर ही अभ्यास शुरू कर दिया।
बचपन में दीपिका कुमारी अपने गांव में पेड़ों पर लदे आमों पर निशाना लगाया करती थीं। निशाना इतना अचूक होता था कि साथी हैरान रह जाते थे। पेड़ की जिस शाखा के आम को तोड़ने के लिए कहा जाता था, वो उनके निशाने से सीधे नीचे आ टपकता था। धीरे-धीरे उन्हें लगने लगा कि वह तो तीरंदाजी के लिए ही बनी हैं। उन्हें वही करना चाहिए। पिता को उनकी ये बात पसंद नहीं आई। डांट भी पड़ गई। पर धुन की पक्की इस लड़की ने बांस के तीर-धनुष लेकर ही अभ्यास शुरू कर दिया।
दीपिका के तीरंदाजी करियर की शुरुआत
दीपिका को तीरंदाजी में पहला मौका 2005 में मिला जब उन्होने पहली बार अर्जुन आर्चरी अकादमी ज्वाइन किया। यह अकादमी झारखंड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा ने खरसावां में शुरू की थी। तीरंदाजी में उनके प्रोफेशनल करियर की शुरुआत 2006 में हुई जब उन्होंने टाटा तीरंदाजी अकादमी ज्वाइन किया। उन्होने यहां तीरंदाजी के दांव-पेच सीखे। इस युवा तीरंदाज ने 2006 में मैरीदा मेक्सिको में आयोजित वर्ल्ड चैंपियनशिप में कम्पाउंट एकल प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया। ऐसा करने वाली वे दूसरी भारतीय थीं। यहां से शुरू हुए सफर ने उन्हें विश्व की नम्बर वन तीरंदाज का तमगा हासिल कराया।
15 साल की उम्र में पहला पदक हासिल किया
सबसे पहले वर्ष 2009 में महज 15 वर्ष की दीपिका ने अमेरिका में हुई 11वीं यूथ आर्चरी चैम्पियनशिप पदक हासिल कर अपनी उपस्थिति जाहिर की थी। फिर 2010 में एशियन गेम्स में कांस्य हासिल किया। इसके बाद इसी वर्ष कॉमनवेल्थ खेलों में महिला एकल और टीम के साथ दो स्वर्ण हासिल किये। राष्ट्रमण्डल खेल 2010 में उन्होने न सिर्फ व्यक्तिगत स्पर्धा के स्वर्ण जीते बल्कि महिला रिकर्व टीम को भी स्वर्ण दिलाया। भारतीय तीरंदाजी के इतिहास में वर्ष 2010 की जब-जब चर्चा होगी, इसे देश की रिकर्व तीरंदाज दीपिका के स्वर्णिम प्रदर्शनों के लिए याद किया जाएगा। फिर इस्तांबुल में 2011 में और टोक्यो में 2012 में एकल खेलों में रजत पदक जीता। इस तरह एक-एक करके वे जीत पर जीत हासिल करती गईं। इसके लिए उन्हें अर्जुन पुरस्कार दिया गया। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी दीपिका को सम्मानित किया। 2006 में घर से टाटा अकेडमी गई दीपिका तीन साल बाद यूथ चैम्पियनशिप जीत कर ही घर लौटीं।
सबसे पहले वर्ष 2009 में महज 15 वर्ष की दीपिका ने अमेरिका में हुई 11वीं यूथ आर्चरी चैम्पियनशिप पदक हासिल कर अपनी उपस्थिति जाहिर की थी। फिर 2010 में एशियन गेम्स में कांस्य हासिल किया। इसके बाद इसी वर्ष कॉमनवेल्थ खेलों में महिला एकल और टीम के साथ दो स्वर्ण हासिल किये। राष्ट्रमण्डल खेल 2010 में उन्होने न सिर्फ व्यक्तिगत स्पर्धा के स्वर्ण जीते बल्कि महिला रिकर्व टीम को भी स्वर्ण दिलाया। भारतीय तीरंदाजी के इतिहास में वर्ष 2010 की जब-जब चर्चा होगी, इसे देश की रिकर्व तीरंदाज दीपिका के स्वर्णिम प्रदर्शनों के लिए याद किया जाएगा। फिर इस्तांबुल में 2011 में और टोक्यो में 2012 में एकल खेलों में रजत पदक जीता। इस तरह एक-एक करके वे जीत पर जीत हासिल करती गईं। इसके लिए उन्हें अर्जुन पुरस्कार दिया गया। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी दीपिका को सम्मानित किया। 2006 में घर से टाटा अकेडमी गई दीपिका तीन साल बाद यूथ चैम्पियनशिप जीत कर ही घर लौटीं।