रिंग की रानी पूजा को भारत का सलाम

भिवानी की बिटिया का सपना ओलम्पिक में स्वर्ण पदक हो अपना

श्रीप्रकाश शुक्ला (9627038004)

भिवानी। हमेशा चेहरे पर मंद-मंद मुस्कान और अपने लक्ष्य पर ध्यान यही है भिवानी की मुक्केबाज बेटी पूजा रानी की पहचान। रिंग की रानी पूजा बोहरा आज भारतीय महिला मुक्केबाजी की पहचान हैं। भिवानी से टोक्यो ओलम्पिक तक के इस सफर में पूजा की 11 साल की अथक मेहनत और उनके माता-पिता तथा प्रशिक्षक संजय का विश्वास समाहित है। हर अभिभावक की तरह पूजा के माता-पिता भी नहीं चाहते थे कि उनकी लाड़ली जोखिमभरे खेल मुक्केबाजी में हिस्सा ले, लेकिन अपनी धुन की पक्की पूजा ने चोटों की परवाह किए बिना वह मंजिल हासिल की है जोकि हर खिलाड़ी का सपना होता है।

दमदार पूजा अपने साक्षात्कार में बताती हैं कि मैं खेल के क्षेत्र में 2009 में आई। मुक्केबाजी में मेरी रुचि बढ़ाने का श्रेय मुकेश रानी और उनके पति भीम अवार्डी संजय कुमार श्योराण को जाता है। पहली बार रिंग तक मुझे मुकेश रानी ही लेकर गई थीं। मेरे माता-पिता को जब पता चला कि मैं मुक्केबाज बनना चाहती हूं तो उन्होंने साफ-साफ मना कर दिया कि तुझे जोखिम वाले खेलों में हिस्सा नहीं लेना है। पूजा अपने माता-पिता से छिप-छिपाकर न केवल प्रशिक्षण को जातीं बल्कि चोट लगने पर कई दिन घर भी नहीं आतीं।

पूजा बताती हैं कि मुक्केबाजी ऐसा खेल है जिसमें चोट लगना आम बात है। अपने माता-पिता की अनिच्छा के बावजूद मैं बाक्सर बनी और पहला मेडल जीतते ही मुझे अपने परिवार की तरफ से गिफ्ट में बाइक मिली। मैंने लड़कों की तरह लगभग दो साल तक बाइक का पूरा लुत्फ उठाया लेकिन मन में अपने लक्ष्य के प्रति सजग थी। मैं चाहती थी कि अपने देश के लिए ओलम्पिक खेलूं। इसके लिए मैंने कड़ी मेहनत भी की। सफलता के लिए कई-कई रात मैं सोई भी नहीं।

पूजा बताती हैं कि मैं जब वर्ष 2007-08 में आदर्श महिला महाविद्यालय में पढ़ रही थी, उसी समय मेरी मुलाकात फिजिकल टीचर मुकेश रानी से हुई। मैं भी खेलना चाहती थी सो नेटबॉल खेलना शुरू किया और महाविद्यालयीन खेल प्रतियोगिता में बेहतरीन प्रदर्शन भी किया। एक बार मुझे कालेज के मुक्केबाजी मुकाबलों में रिंग में उतारा गया, इसमें मैंने बेस्ट परफारमेंस दी। इस प्रदर्शन के बाद मैडम मुकेश रानी  का मुझसे लगाव बढ़ गया और मैं उनके घर आने-जाने लगी। मुकेश रानी के पति भीम अवार्डी संजय कुमार श्योराण कैप्टन हवासिंह बॉक्सिंग अकादमी चलाते हैं। मैडम ही मुझे पहली बार एकेडमी ले गईं और मेरा बॉक्सिंग से लगाव बढ़ गया। अपने शौक के लिए मुझे परिवार व समाज से भी जूझना पड़ा लेकिन मैंने हार नहीं मानी और वर्ष 2009 आते-आते मैं पूरी तरह मुक्केबाजी से जुड़ गई।

संजय कुमार श्योराण का कहना है कि पूजा मेरी पत्नी मुकेश रानी के साथ घर आती रहती थी। मैंने पूजा में बॉक्सिंग टैलेंट देखा तो उस टैलेंट को निखारने की ठान ली। पूजा ने ओलम्पिक तक का सफर तय करने के लिए बहुत मेहनत की है। पूजा मेरी पत्नी को मां कहती है। हमने पूजा को बेटी की तरह आगे बढ़ाया है। वर्ष 2009 में वह बॉक्सिंग में पूरी तरह से उतर गई थी। इसके बाद तो उसने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियां हासिल की हैं। ओलम्पिक 2021 में वह देश के लिए गोल्ड मेडल लेकर आएगी इस बात का मुझे पूरा भरोसा है। पूजा के पिता का कहना है कि ओलम्पिक कोटा हासिल कर बेटी पूजा ने इतिहास रचा है। मुझे उम्मीद है कि अब वह देश के लिए गोल्ड जीत कर अगला रिकार्ड बनाएगी। पूजा को इस मुकाम तक लाने में कोच संजय कुमार श्योराण और उसकी मां दमयंती का बहुत बड़ा योगदान है।      

पूजा रानी बोहरा ने अपने दमदार प्रदर्शन से न केवल टोक्यो ओलम्पिक का टिकट कटा लिया बल्कि ओलम्पिक खेलने का अपना सपना भी साकार कर लिया है। पूजा ने यह उपलब्धि अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर हासिल की। सच कहें तो भिवानी की मुक्केबाज पूजा बोहरा का यह प्रदर्शन भारतीय महिला शक्ति का नायाब उदाहरण है। मुकाबला जीतकर ओलम्पिक कोटा हासिल करने वाली पूजा रानी देश की पहली मुक्केबाज हैं। इससे पहले मैरीकाम को वर्ष 2012 में लंदन ओलम्पिक के लिए अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक एसोसिएशन से वाइल्ड कार्ड एंट्री मिली थी।

रिंग की रानी पूजा बोहरा ने मिनी क्यूबा भिवानी को एकाएक सुर्खियों में ला दिया है। देखा जाए तो 75 किलो भार वर्ग में पूजा के नाम कई उपलब्धियां हैं। पिछले साल पूजा ने कर्नाटक में हुई एशियन चैम्पियनशिप में गोल्ड मेडल जीता था। इससे पहले वर्ष 2014 में कोरिया में हुए एशियन गेम्स में कांस्य पदक और वर्ष 2012 में मंगोलिया में हुई एशियन चैम्पियनशिप में चांदी का पदक जीतकर देश का गौरव बढ़ाया था। आओ पूजा की उपलब्धियों पर न केवल ताली पीटें बल्कि ओलम्पिक में स्वर्ण पदक के लिए दुआ भी करें।

 

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