योग शिरोमणि सस्मिता राय ने योग को बनाया सेवा का जरिया

उड़ीसा की योगाचार्य ने खेलपथ से की योग पर चर्चा

श्रीप्रकाश शुक्ला

नई दिल्ली। स्वास्थ्य सफल जीवन की नींव है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति अपनी दिनचर्या में योग साधना को अवश्य शामिल करे ताकि सुखदायी जीवन जी सके। किसी भी तरह की सेवा करने के लिए अपनी तरफ से कुछ न कुछ देना पड़ता है, या तो आप कोई वस्तु देकर सेवा कर सकते हैं या फिर अपने शरीर का इस्तेमाल करके सेवा कर सकते हैं। आप जो कुछ भी देते हैं वह सब आपने इसी धरती से लिया है, यहां तक कि यह शरीर भी यहीं से लिए गए भोजन से बना है। असल में हम अपनी तरफ से इस राष्ट्र को क्या दे सकते हैं, यह सबसे जरूरी है। यह बातें खेलपथ से विशेष बातचीत में उड़ीसा की योग शिरोमणि सस्मिता राय ने बताईं।

योग को समर्पित सस्मिता राय बताती हैं कि योग की पूरी प्रक्रिया बस खुद को समर्पित करने की है, खुद को भेंट करने की है। लेकिन ज्यादातर लोग जानते ही नहीं हैं कि खुद को कैसे भेंट किया जाए। देने के लिए आपको कुछ साधनों की जरूरत होती है, जैसे आपका पैसा, भोजन या ऐसी ही कोई और चीज। वह यह नहीं सोचता कि मेरी इच्छा क्या है, वह बस यह देखता है कि जरूरत किस बात की है। ऐसी अवस्था में पहुंचते ही आप मुक्त हो जाते हैं। फिर आप पर कर्मों का बोझ भी नहीं बढ़ता।

लेकिन आज जो कुछ भी आपके पास है, आपको अपने आसपास नजर आता है, यहां तक कि आपका शरीर भी, सब कुछ आपने इस धरती से उधार लिया है। आप इसका इस्तेमाल कर सकते हैं, आप इसका आनंद ले सकते हैं, लेकिन जब आप यहां से जाएंगे तो आपको ये सब छोड़कर जाना होगा। देखा जाए तो आपका कुछ है ही नहीं। मूलरूप से देखें तो अगर आप कोई चीज दे सकते हैं, तो वह आप स्वयं ही हैं। आप खुद को दे सकते हैं, समर्पित कर सकते हैं।

सस्मिता राय की जहां तक बात है, इन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन ही योग को समर्पित कर दिया है। योग को यह बोझ नहीं सेवा मानती हैं। इन्हें बचपन से खेलों से अगाध लगाव है। स्कूली जीवन में शानदार एथलीट रहीं सस्मिता राय ने उत्कल यूनिवर्सिटी से योगा में मास्टर डिग्री ली। इनकी राह में रुकावटें डालने के भी प्रयास हुए लेकिन यह अपने संकल्प रत्ती भर नहीं डिगीं। योग साधना ने इन्हें वह कुछ दिया जोकि आजतक किसी महिला को हासिल नहीं हुआ। योगिनी सस्मिता सिर्फ योग साधक ही नहीं योग की जानी-मानी जज भी हैं। यह अब तक 50 से अधिक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय योग प्रतियोगिताओं में जज की भूमिका का ईमानदारी से निर्वहन कर चुकी हैं।

23 जून, 1960 में गांव उदाला, जिला मयूरभंज (उड़ीसा) में जन्मी योग को समर्पित सस्मिता राय को अब तक योग शिरोमणि, योग चारिणी, योग ज्योति, योगिनी, योग रत्न, योग गुरु, योग भूषण, भारत गौरव आदि सम्मान मिल चुके हैं। यह सम्मान योग के क्षेत्र में इनके त्याग और तपस्या का ही सुफल हैं। सस्मिता राय बेबाकी से कहती हैं कि आज योग के क्षेत्र में चुनौतियों की कमी नहीं है। योग से मुझे क्या मिलेगा यह सोच ठीक नहीं है। वह कहती हैं कि जो आप अपने जीवन में कर रहे हैं, उनमें से ज्यादातर चीजें वे हैं, जिन्हें खुद आपने चुना है। इसके बावजूद रोजमर्रा के जीवन में छोटे-मोटे काम भी आप बहुत संघर्ष के साथ कर रहे हैं, क्योंकि आप खुद को देना नहीं चाहते।

योग रत्न सस्मिता कहती हैं कि कोई भी आध्यात्मिक प्रक्रिया किसी इंसान के साथ तब तक घटित नहीं होगी जब तक वह स्वाभाविक रूप से इच्छुक नहीं होगा। इस इच्छा को पैदा करने के लिए सेवा करना एक जबर्दस्त साधन है। बैठे-बैठे आप सोच सकते हैं कि आप इच्छुक हैं, लेकिन जब आपसे वाकई करने को कहा जाता है, तो आप देखेंगे कि जीवन में हर चीज को लेकर आपके भीतर प्रतिरोध की कितनी परतें बनी हुई हैं।

वह कहती हैं कि स्वयंसेवी एक ऐसा इंसान होता है, जिसके भीतर कोई प्रतिरोध नहीं होता। क्या सही है, क्या गलत है, क्या किया जाना चाहिए, क्या नहीं, इसके बारे में उसके भीतर कोई भाव नहीं होते। मेरी यहां मौजूदगी मेरी इच्छा है, दूसरे शब्दों में कहूं तो मैं बहुत गहन स्वीकृति की अवस्था में हूं। मेरे भीतर कोई प्रतिरोध नहीं है। स्वयंसेवी एक ऐसा इंसान होता है, जिसके भीतर कोई प्रतिरोध नहीं होता। क्या सही है, क्या गलत है, क्या किया जाना चाहिए, क्या नहीं, इसके बारे में उसके भीतर कोई भाव नहीं होते। जो कुछ भी कहा जाएगा, बस वह उसे कर देगा।

योग भूषण सस्मिता कहती हैं कि मैं योग के क्षेत्र में किसी मजबूरी से नहीं बल्कि स्वयं की इच्छा और सेवाभाव के लिए काम कर रही हूं। वह कहती हैं कि कोई स्वयंसेवी इसलिए कोई काम नहीं कर रहा है, क्योंकि उसे फंसा लिया गया है। नहीं, वह सिर्फ इसलिए कर रहा है, क्योंकि वह काम करने को इच्छुक है, तत्पर है। वह यह नहीं सोचता कि मेरी इच्छा क्या है, वह बस यह देखता है कि जरूरत किस बात की है। जब भी जहां कहीं भी ऐसे लोग होते हैं, जो दूसरों की भलाई को अपनी भलाई से ऊपर रखते हैं, उनके आसपास की परिस्थितियां अपने आप ही बहुत सशक्त और खूबसूरत हो जाती हैं।

योग ज्योति सस्मिता कहती हैं कि जीवन में आपको एक सच्चा और पूर्ण स्वयंसेवी बनना चाहिए। दुनिया में जो भी हो रहा है, जब आप उस सबको अपनी जिम्मेदारी के रूप में देखते हैं, तो आप हमेशा एक स्वयंसेवी हैं, भले ही आप कहीं भी हों। आप कुछ कर रहे हों, या कुछ भी नहीं कर रहे हों, आपका अस्तित्व इच्छापूर्वक होना चाहिए, जबर्दस्ती नहीं। दुनिया भर में हमें ऐसे लोगों को तैयार करने की जरूरत है। वह कहती हैं कि जो लोग अपने कार्यों को इस तरह नहीं कर सकते कि उनके काम में उनका व्यक्तित्व झलके, अगर उन्हें अपने कर्मों का कोई मनचाहा परिणाम नहीं मिलता, तो उनमें से ज्यादातर लोग खुश नहीं रह पाते। दुनिया में किसी के भी काम आए बिना मैं आनंद में रह सकता हूँ। लेकिन ज्यादातर लोग इस तरह के नहीं होते।

सस्मिता राय बताती हैं कि मैंने ऐसे न जाने कितने लोगों को देखा है जो भाव स्पंदन जैसे कार्यक्रमों में जब आते हैं, तो खुद को पूरी तरह समर्पित कर पाने में सक्षम नहीं होते। लेकिन अगली बार जब स्वयंसेवी के तौर पर आते हैं तब खुद को सही मायने में समर्पित कर देते हैं, उनके अनुभवों की उड़ान ऊंची हो जाती है। कार्यक्रम में वे बहुत कुछ ज्यादा अनुभव नहीं कर पाए थे, लेकिन जब वे सेवा करने आए, उनके अनुभव का पूरा पहलू ही बदल गया। अंत में उन्होंने आह्वान किया कि योग हमारे जीवन का विशेष अंग बन जाए, हम सब भारतीय ऐसा संकल्प लें।

 

रिलेटेड पोस्ट्स