पहलवान योगेश्वर दत्त ने बताया कुश्ती और राजनीति का फर्क

कहा- कुश्ती में दांव आमने-सामने लगते हैं, लेकिन राजनीति में पीछे से लगते हैं

खेलपथ संवाद

गुरुग्राम। हरियाणा की खेल, संस्कृति सबसे जुदा है। पहलवान योगेश्वर दत्त कहते हैं कि 'जिंदगी मुश्किल है। यहां खेल और राजनीति की बात नहीं है। अगर हम यहां तक आए हैं तो संघर्ष करना पड़ेगा। आपने मुझे खेल की वजह से यहां पर बुलाया है और खेल की वजह से ही मैं राजनीति में आया हूं। राजनीति अलग है और खेल अलग है।

खेल हमें खुशी देता है, लेकिन राजनीति हम कुछ अलग से करते हैं ताकि समाज की मदद कर सकें। हम राजनीति इसलिए करते हैं ताकि बच्चों की मदद कर सकें और खेलों में आगे बढ़ा सकें। समाज के लिए कुछ अच्छा करने का जरिया है। कुश्ती में दांव आमने-सामने लगते हैं, लेकिन राजनीति में पीछे से लगते हैं।'

योगेश्वर से जब पूछा गया कि पिछले कुछ वक्त में कुश्ती में जो हमने ऊंचाइयां छुईं थीं उसमें एक रुकावट नजर आती है। तो इस पर उन्होंने कहा, 'कुश्ती में बिल्कुल रुकावट नहीं है क्योंकि पिछले पांच ओलम्पिक से कुश्ती में हमें पदक मिले हैं। आप ओवरऑल खेलों की बात करो तो बिल्कुल हम उन ऊंचाइयों तक नहीं पहुंच सके जहां तक हमें होना चाहिए था। सरकार खेलों पर काफी पैसा खर्च करती है, लेकिन मेरा मानना है कि खेलों को अगर और ऊंचाइयों तक ले जाना है तो कॉरपोरेट जगत को भी आगे आना चाहिए। खेलों में मदद करनी चाहिए। कुछ ऐसे भी हैं। जो पर्सनल एकेडमी चलाते हैं तो हमें उन पर ज्यादा फोकस करने की जरूरत है।'

'2036 ओलम्पिक अगर हम करवाते हैं तो...'

योगेश्वर ने कहा, 'सरकार जैसे टॉप्स स्कीम के आधार पर बच्चों की मदद कर रही है, वैसे ही हम सभी को एक टीम के तौर पर काम करना होगा तभी हम ओलम्पिक मेडल जीत सकते हैं। हम उतने मेडल नहीं जीत पाए जितने होने चाहिए थे। टोक्यो में हमारे सात पदक थे, लेकिन पेरिस में छह। हमारा मानना है कि 2036 ओलम्पिक अगर हम करवाते हैं तो 10-15 मेडल आएं या फिर हम शीर्ष पांच देशों में रह पाएं तो यह खेलों के लिए बहुत अच्छा होगा। साथ ही कॉरपोरेट जगत को आगे आना चाहिए। जो पर्सनल एकेडमी चलाते हैं, वो मदद करें और उन पर फोकस करें।'

हरियाणा के खिलाड़ियों के अंदर जोश की वजह क्या है?

योगेश्वर ने हरियाणा के खिलाड़ियों में जोश की वजह भी बताई। उन्होंने कहा, 'जब बात हरियाणा की आती है तो सबसे पहले हमारे ग्रामीण खेल हैं, कुश्ती है, कबड्डी है, बॉक्सिंग है, हॉकी है, इसकी आती है। हरियाणा के लोगों में इसको लेकर जुनून है। ये आती है हमारी संस्कृति से। हमें पुरखों से मिली है संस्कृति। वो चाहे खेल में हो, किसानी हो, समाज सेवा में हो, सेना में हो। आगे बढ़ने का जज्बा विरासत में मिला है। बड़ों से सीखा है। हमने ओलम्पिक में अगर छह पदक जीते तो तीन हरियाणा से हैं। एशियन गेम्स में भी आधे पदक हरियाणा लाता है। जो खिलाड़ी के कोच का बड़ा योगदान रहता है। सरकार का भी रोल रहता है। हरियाणा की मिट्टी में जो जोश है और संघर्ष है, उससे हमें पदक मिलते हैं।'

हरियाणा के गांव से निकले योगेश्वर दत्त ने भारतीय कुश्ती को नई पहचान दी। 14 साल की उम्र में घर छोड़कर छत्रसाल स्टेडियम पहुंचे योगेश्वर ने संघर्ष, चोट और निजी दुखों के बावजूद हार नहीं मानी। 2012 लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर उन्होंने इतिहास रचा और देशभर में प्रेरणा बने। एशियाई खेलों और राष्ट्रमंडल खेलों में भी पदक जीतने वाले योगेश्वर के लिए कुश्ती जीवन का आधार रही। संन्यास के बाद भी वे मेंटर के रूप में भारतीय कुश्ती की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।

रिलेटेड पोस्ट्स